PUJAB KESHRI E-PAPER HAS COVERED THIS THREAD ON DEVELOPMENT OF UTTARAKHAND. KINDLY HAVE A LOOK.
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देहरादून : उत्तराखण्ड राज्य के अस्तित्व में आने से लेकर आज तक इस राज्य ने कि तनी तरक्की की है इसका खुलासा एक सर्वेक्षण मात्र से हो जाता है। राज्य के विकास को लेकर किए गए सर्वेक्षण में मात्र 13 फीसदी लोग ही 50 फीसदी विकास मानते हैं, जबकि 75 फीसदी विकास मानने वालों की संख्या लगभग 6.7 फीसदी है। सम्पूर्ण विकास को किसी ने भी नहीं माना है जबकि 10 फीसदी विकास मानने वालों की संख्या 26. 7 फीसदी है।
उत्तराखण्ड के विकास को लेकर एक पोर्टल ''मेरा पहाड़ डाट काम ÓÓ ने राज्य वासिंयों से कुछ प्रश्र पूछे जिनमें राज्य बनने के बाद आपके क्षेत्र में क्या मुख्य विकास हुआ?, उत्तराखण्ड बनने के बाद आपके गांव से और क्षेत्र से कितने लोगों को रोजगार मिला?, उत्तराखण्ड बनने के बाद क्या आपके क्षेत्र में सडक़ की सुविधा आई?, उत्तराखण्ड बनने के बाद क्या आपके गांव में स्वास्थ्य सुविधा आयी?, क्या आपके क्षेत्र मे ंबिजली पानी की सुविधा पहले से बेहतर हुई?, तो आप उत्तराखण्ड के विकास को 100 मे से कितने अंक देंगे? इन प्रश्रों के उत्तर में एम एस मेहता जारती गांव के निवासी जिला बागेश्वर ने बताया कि उनके गांव का मात्र 5 फीसदी विकास हुआ है। गांव की बात तो छोडिय़े आस-पास तक के गांवों के किसी भी बेरोजगार को नौकरी नहीं मिली, सडक़ अभी वहीं हैं जहां पहले थी, स्वास्थ्य सुधारों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, बिजली पानी की समस्या जस की तस है। उन्होने कहा कि कहने को तो बहुत कुछ है लेकिन क्या होगा।
इसी सर्वेक्षण पर अपना जवाब देते हुए संजू निवासी तल्ला जयूला, मनान, विकास खण्ड हवलबाग जिला अल्मोड़ा ने कहा राज्य बनने के बाद कुछ खास परिवर्तन नहीं दिखाई दे रहा है। मोबाईल फोन की सुविधा अच्छी हुई है। स्कूलों में कम्प्यूटर आए हैं सडक़ों में कुछ सुधार है बस। रोजगार के सवाल पर उनका उत्तर था कि कुछ लोगों को रोजगार तो मिला लेकिन वह राज्य से बाहर, हां पुलिस में कुछ को जरूर नौकरी मिली है। सडक़ की सुविधा पर उन्होने कहा कि उनके गांव से 2 किमी दूर अभी भी सडक़ है। चिकित्सा सुविधाओं पर उन्होने कहा कि वही पुराने हास्पिीटल हैं और सुविधाएं कोई परिवर्तन नहीं। इन्होने उत्तराखण्ड के विकास पर 100 में से 30 अंक दिये हैं।
वहीं अल्मोड़ा जिले के हवलबाग विकास खण्ड के ही एल एस तड़ागी जो रिखे दौलाघाट के निवासी है ने जवाब दिया कि मोबाईल की सुविधा जरूर अच्छी हु ई है। शेष यथावत ही है। किसी को रोजगार नहीं मिला, गांव में अभी भी सडक़ 2 किमी की दूरी पर है। बिजली पानी की सुविधा पहले से कुछ बेहतर होना इन्होने माना है। स्वास्थ्य सुुुविधाओं में कोई बदलाव नही मानते , इन्होने अब तक के विक ास कार्यों को 20 फीसदी अंक दिए हैं।
अल्मोड़ा जिले के ही पीपलतना गांव के कैलाश पाण्डेय का मानना है कि पहले गांव तक सडक़ नहीं थी जो अब आ गई है। रोजगार पर उन्होने कहा कि उन्हे पता नहीं क्योंकि वे दिल्ली मे रहते हैं। स्वास्थ्य सुविधा की उन्होने भी कमी बताई। बिजली पानी में थोड़ा सुधार की बात वे मानते है।
पिथौरागढ़ जिले के बिण विकासखण्ड के बांस मेल्टा गांव के रहने वाले राजेन्द्र सावंत ने सवालों का जबाब देते हुए कहा कि विकास के नाम पर कोई खास नहीं दिखाई देता। हां मोबाईल जरूर गांव तक आ गया है वह भी उसके पास जिसका एक सदस्य बाहर कमाने गया है। उन्होने कहा एक बदलाव वे महसूस करते हैं कि राजनैतिक प्रतिस्पर्धा के चलते आपसी भाई चारा कम होता जा रहा है। ग्राम पंचायत के प्रमुख अथवा सदस्य तक बनने के लिए लोग सारी मयार्दा को ताक पर रख रहे हैं। रोजगार के सवाल पर उन्होने कहा कि कोई प्रत्यक्ष रोजगार नहीं मिला है। सडक़ के मुद्दे पर उनका जवाब था कि जो सात साल पहले सडक़ थी वहीं हैं हां डामरीकरण जरूर हुआ है,आगे सडक़ बनने का कार्य जो दो दशक पहले से रूका हुआ था अभी भी रूका है। स्वास्थ्य सुविधा पर उन्होने कहा यह कभी न थी और न अब है। बिजली पानी पर उनका जवाब है कि बिजली कि स्थिति पहले जैसी बनी है। दिन में आती है रात को गायब हो जाती है। फिर रात 10-11 बजे बाद आती है जब लोग सो जाते हैं। बिजली के लिो ंकी उगाही में अवश्य उन्नति हुई है। राज्य के विकास को लेकर वे इसे मात्र 25 फीसदी अंक देते हैं। अपनी टिप्पणी में उनका कहना है कि कभी-कभी लगता है अलग राज्य के लिए जिन लोगों ने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था वह बेकार हुआ है और आम आदमी का जो सपना था वह टूटने के कगार पर है।
इस तरह से इन सवालों का जवाब देने वालों में कई और लोग भी है जो राज्य के अब तक विकास की पटरी पर आने की उम्मीद जगाए हुए हैं। राज्यवासिंयों की नजरें राज्य सरकार की ओर टकटकी लगाए हुए है कि कभी तो बहार आएगी। और इन पहाड़वासिंयों के जीवन में सुधार आएगा।
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http://www.punjabkesari.com/E-Pap/Uttrakhand/ut1.pdf