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पहाड़ का पानी, पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नही आती क्या आप इस तथ्य से सहमत है ?

Yes
35 (83.3%)
Not
6 (14.3%)
Can't Say
1 (2.4%)

Total Members Voted: 42

Voting closes: February 07, 2106, 11:58:15 AM

Author Topic: No Water, No Youth - पहाड़ का पानी, पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नही आती  (Read 21655 times)

पंकज सिंह महर

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जहां तक पानी की बात है तो पानी तो हमारे यहां बहुत है, एक तरफ गंगा, यमुना, काली गंगा, राम गंगा, कोसी जैसी बड़ी नदियां हमारे प्रदेश में हैं, लेकिन पूरा पहाड़ प्यासा है, पिथौरागढ़, अल्मोडा, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, नैनीताल, उधम सिह नगर पूरा प्रदेश प्यासा है, पानी की सब जगह कमी है, आज भी हमारी मातायें बहनें १०-१० किलोमीटर से पानी लाने को मजबूर हैं।
      शहरी क्षेत्रों में किसी भी समय टैंकर की राह देखते जरकीन और कन्टर लिये लोग आपको दिखाई देंगे। उ०प्र० से प०बंगाल और राजस्थान तक को सिंचाई के साधन उपलब्ध कराने वाला उत्तराखण्ड में रौपाई लगाने के लिये पानी नही है, घराट चलाने के लिये पानी नहीं, पीने के लिये पानी नहीं, आखिर सरकार कोई ऎसी योजना क्यों नहीं बनाती कि सब जगह पानी पहुचे, हाईड्रम योजना से, खाल-ताल बनाकर पंचाचूली में भी पानी पहुचाया जा सकता है, तो हमारे गांवों में क्यों नहीं?
       सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि पहाड़ का पानी किसी भी परियोजना को देने से पहले उत्तराखण्ड के गांवों को शुद्द पेयजल मुहैया कराना जरुरी हो। टिहरी बांध के लिये अपनी पैतृक जमीन सहर्ष दे देने वाले लोग आज पानी के लिये तरस रहे हैं, भागीरथी के पावन पानी में नित्य स्नान करने वाले अपना सब कुछ बांध को देकर आज प्यासे हैं, इससे दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण हमारे लिये और क्या हो सकता है?

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mahar Ji,

Fully agree with your views. Well said

जहां तक पानी की बात है तो पानी तो हमारे यहां बहुत है, एक तरफ गंगा, यमुना, काली गंगा, राम गंगा, कोसी जैसी बड़ी नदियां हमारे प्रदेश में हैं, लेकिन पूरा पहाड़ प्यासा है, पिथौरागढ़, अल्मोडा, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, नैनीताल, उधम सिह नगर पूरा प्रदेश प्यासा है, पानी की सब जगह कमी है, आज भी हमारी मातायें बहनें १०-१० किलोमीटर से पानी लाने को मजबूर हैं।
      शहरी क्षेत्रों में किसी भी समय टैंकर की राह देखते जरकीन और कन्टर लिये लोग आपको दिखाई देंगे। उ०प्र० से प०बंगाल और राजस्थान तक को सिंचाई के साधन उपलब्ध कराने वाला उत्तराखण्ड में रौपाई लगाने के लिये पानी नही है, घराट चलाने के लिये पानी नहीं, पीने के लिये पानी नहीं, आखिर सरकार कोई ऎसी योजना क्यों नहीं बनाती कि सब जगह पानी पहुचे, हाईड्रम योजना से, खाल-ताल बनाकर पंचाचूली में भी पानी पहुचाया जा सकता है, तो हमारे गांवों में क्यों नहीं?
       सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि पहाड़ का पानी किसी भी परियोजना को देने से पहले उत्तराखण्ड के गांवों को शुद्द पेयजल मुहैया कराना जरुरी हो। टिहरी बांध के लिये अपनी पैतृक जमीन सहर्ष दे देने वाले लोग आज पानी के लिये तरस रहे हैं, भागीरथी के पावन पानी में नित्य स्नान करने वाले अपना सब कुछ बांध को देकर आज प्यासे हैं, इससे दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण हमारे लिये और क्या हो सकता है?


पंकज सिंह महर

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मेहता जी,
          बहुत सही बात आपने कही, इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण आप स्वयं हैं, आप दिल्ली गये, आपकी जवानी moser-bear के काम आ रही है, यदि आप अपने proffession से related काम उत्तराखण्ड में कर पाते या यहां की किसी संस्था के लिय कार्य करते तो निश्चित रुप से वह पहाड़ के काम आता, लेकिन मजबूरी है, पेट पालना है और अपनी योग्यता के अनुरुप काम पाना है, तो बाहर तो जाना ही पड़ेगा। यही बात सभी के लिये लागू है।
       पहाड़ से mostly लोग army  मै हैं, उनकी जवानी देश के काम तो आ रही है, लेकिन जब वह रिटायर होकर घर आता है तो बूढा हो कर आता है और अपने गांव, खेत में भी काम नही कर पात्ता। तो जवानी इस मायने में तो और भी कुर्बान है कि वह देश के काम आ रही है।
        लेकिन जवानी इस मामले में कतई कुरबान नहीं की जा सकती कि बिहार और उ०प्र० से लोग यहां आकर नौकरी करें और हमारे पढे-लिखे भाई दो रोटी की खातिर दिल्ली या मुंबई के किसी ढाबे में बर्तन मले। हमारी सरकार को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिये कि कम से कम तृतीय और चतुर्थ श्रेणी का रोजगार उत्तराखण्ड मूल के लोगों के लिये आरक्षित कर दी जांय, अन्यथा इसके गंभीर परिणाम हमारी आने वाली पीढी को परेशान करेंगे और वह हमें कोसेंगे कि हमारे पुरखों ने हमारे लिये कुछ भी नहीं किया।

जय उत्तराखण्ड!


इस पर आपने कुछ नहीं कहा मेहता जी?

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Bahut Sahi kaha mahar Ji..

We are not able to contribute anything for our state.


मेहता जी,
          बहुत सही बात आपने कही, इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण आप स्वयं हैं, आप दिल्ली गये, आपकी जवानी Company के काम आ रही है, यदि आप अपने proffession से related काम उत्तराखण्ड में कर पाते या यहां की किसी संस्था के लिय कार्य करते तो निश्चित रुप से वह पहाड़ के काम आता, लेकिन मजबूरी है, पेट पालना है और अपनी योग्यता के अनुरुप काम पाना है, तो बाहर तो जाना ही पड़ेगा। यही बात सभी के लिये लागू है।
       पहाड़ से mostly लोग army  मै हैं, उनकी जवानी देश के काम तो आ रही है, लेकिन जब वह रिटायर होकर घर आता है तो बूढा हो कर आता है और अपने गांव, खेत में भी काम नही कर पात्ता। तो जवानी इस मायने में तो और भी कुर्बान है कि वह देश के काम आ रही है।
        लेकिन जवानी इस मामले में कतई कुरबान नहीं की जा सकती कि बिहार और उ०प्र० से लोग यहां आकर नौकरी करें और हमारे पढे-लिखे भाई दो रोटी की खातिर दिल्ली या मुंबई के किसी ढाबे में बर्तन मले। हमारी सरकार को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिये कि कम से कम तृतीय और चतुर्थ श्रेणी का रोजगार उत्तराखण्ड मूल के लोगों के लिये आरक्षित कर दी जांय, अन्यथा इसके गंभीर परिणाम हमारी आने वाली पीढी को परेशान करेंगे और वह हमें कोसेंगे कि हमारे पुरखों ने हमारे लिये कुछ भी नहीं किया।

जय उत्तराखण्ड!


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पेयजल मंत्री के क्षेत्र में पानी की किल्लतApr 23, 02:23 am

रुद्रप्रयाग। जिले की सुदूरवर्ती ग्राम सभा पपड़ासू में विगत दिनों से पेयजल की भारी किल्लत के चलते ग्रामीणों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पपड़ासू ग्रामसभा पेयजल मंत्री के विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने के बावजूद यहां के ग्रामीणों को दो किमी दूर नदी से पानी लाना पड़ रहा है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने संबन्धित विभाग पर अनदेखी का आरोप लगाया है।

पिछले कई दिनों से पानी की भारी अव्यवस्था के चलते पपड़ासू के ग्रामीणों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। पेयजल लाइनों पर आपूर्ति नियमित न होने से लोग किसी तरह से पानी जुटा रहे है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों का आरोप है कि संबन्धित विभाग को समस्या से कई बार अवगत कराया जा चुका है लेकिन अभी तक आपूर्ति सुचारु नही की गई है। भूतपूर्व सैनिक अमरदेव जुगरान का कहना है कि गांव में लगभग तीस से अधिक परिवार रहते है लेकिन पानी की व्यवस्था बदहाल है अधिकांश लाइनों पर पानी की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। जल निगम द्वारा पेयजल योजना के रख-रखाव के लिए फीटर की व्यवस्था भी नहीं की गई है, जिसके चलते अधिकांश योजनाओं पर आपूर्ति ठप है। स्थानीय लोग बड़ी कठनाइयों से किसी तरह पानी जूटा पा रहे है। कहा गया कि कई स्थानों पर पेयजल लाइनें लीकेज हो रही हैं जिससे पानी का अनावश्यक दुरुपयोग हो रहा है। निगम की लापरवाही का खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है। ग्रामीण विक्रम सिंह, अन्नी जुगरान सहित कई ग्र्र्रामीणों ने निगम की लचर व्यवस्था के प्रति आक्रोश जताया है।

पंकज सिंह महर

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पहाड़ के बारे में प्रसिद्ध कवि श्री शिव दत्त सती जी ने कहा है-

पहाड़ को रौणो भलो, जन पड़ा माल।
अपणो मुलुक भलो, जां आपणी थात।
मंडुवा की रोटी भली, मदीरा को भात।
कटि जानि दिन-मास, निभी जांछ साल।
भट्ट का डुबुका भला, सिशोणा का साग।
माल पड़ी कशो हलो, संग रौंछ भाग।
माल ला बिसीला घाम, एक चोट होली।
निग्वालो गुसैं को मरो, घरवाली रोली।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Well said.. I don't know when this theory will change.


पहाड़ के बारे में प्रसिद्ध कवि श्री शिव दत्त सती जी ने कहा है-

पहाड़ को रौणो भलो, जन पड़ा माल।
अपणो मुलुक भलो, जां आपणी थात।
मंडुवा की रोटी भली, मदीरा को भात।
कटि जानि दिन-मास, निभी जांछ साल।
भट्ट का डुबुका भला, सिशोणा का साग।
माल पड़ी कशो हलो, संग रौंछ भाग।
माल ला बिसीला घाम, एक चोट होली।
निग्वालो गुसैं को मरो, घरवाली रोली।


Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Dheere dheere mere khayal se jab saare hydro projects chaalu honge to Pahad ka paani dhan dhaanya le ke aaega.

पंकज सिंह महर

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इसी से संबंधित है ऎतिहासिक कवि "गौर्दा" की यह पंक्तियां-

हमरो कुमाऊं, हम छौ कुमय्यां, हम्री छ सब खेती-बाड़ी!
तराई-भाबर बण, बोट, घट, गाड़ हमरा पहाड़-पहाड़ी!
यां ई भया, यां ई रुंला, यां ई छुटलिन नाड़ी!
पितरकुड़ी छ यां ई हमरी, कां जूंला ये के छाड़ी!
यां ई जनम फिरि-फिरि ल्यूंला, यो थाती हमन लाड़ी!!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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इसी से संबंधित है ऎतिहासिक कवि "गौर्दा" की यह पंक्तियां-

हमरो कुमाऊं, हम छौ कुमय्यां, हम्री छ सब खेती-बाड़ी!
तराई-भाबर बण, बोट, घट, गाड़ हमरा पहाड़-पहाड़ी!
यां ई भया, यां ई रुंला, यां ई छुटलिन नाड़ी!
पितरकुड़ी छ यां ई हमरी, कां जूंला ये के छाड़ी!
यां ई जनम फिरि-फिरि ल्यूंला, यो थाती हमन लाड़ी!!


Situation is is same from all other  areas of UK.


 

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