Poll

Do you feel that the Capital of Uttarakhand should be shifted Gairsain ?

Yes
97 (70.8%)
No
26 (19%)
Yes But at later stage
9 (6.6%)
Can't say
5 (3.6%)

Total Members Voted: 136

Voting closed: March 21, 2024, 12:04:57 PM

Author Topic: Should Gairsain Be Capital? - क्या उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण होनी चाहिए?  (Read 247679 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Namaskar Sundriyal Ji,


I fully agree what you have quoted. Uttarahand has been victim of politics so far.  The basic need of people was never met. Most astonishing factor is that none of the govt which rules in UK had never took this capital issue seriously.

These 5 yrs tenure of BJP Govt will also elapsed the same way without any major development or shifting the capital.


Namaskar,
The popular vote was kidnapped first by Nityanand Swami when he was just thrust on us from the BJP High Command.  Thereafter, Koshyari had his chance but he failed miserably which paved way for Congress victory.  During that election, Harish Rawat was the unifying factor over all the four regions, Garhwal, Kumayun, Jaunsaar and Pithoragarh.  But because he did not have a say in the RAAJMAATAA's darbaar, ND Tiwari was sent to Pahad.  People still remember Tiwari as the UP Chief Minister who was quite vocal against the Uttarakhand.  But give the devil its due.  He created a scene where Satpal Maharaj quite foolishly presented his candidature and then the question of Garhwal-Kumayun rivalry was unnecessarily raised.  It was just a bogey as there is no divide as such in political field.  But it was played very well by Tiwari and got himself the gaddi. 

So far as this election is concerned, I have been watching the scenario for a long time.  When Pramod Mahajan was alive, he had carried out an exercise to know the people's mood.  After getting feedback, he recommended Khanduri's name.  Lest we forget, he too was against Khanduri's nomination at first.  But he had also seen the Koshyari regime's performance.  Therefore, he had to recommend Khanduri.  Unfortunately, Mahajan died prematurely.  With the sudden demise of Tehri Maharaja also, Khanduri lost completely control over distribution of tickets.  Koshyari managed to distribute tickets to his own men.  Therefore, at this very moment all the MLAs of BJP in UK are pro-Koshyari.  Though, it was not a vote for Koshyari because all along Khanduri had been projected as CM-designate.  People also had seen Khanduri's performance as Central Minister and his penchant for developmental work. 
Namaskar


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मुजफ्फरनगर व राजधानी का मुद्दा छाया रहाDec 10, 02:37 am

अल्मोड़ा। उत्तराखण्ड लोक वाहिनी के दो दिनी सम्मेलन में मुजफ्फरनगर काण्ड व राजधानी के मुद्दे प्रमुखता से उठे। सम्मेलन में निर्णय लिया गया है कि राज्य हित के मुद्दों के साथ ही लोक वाहिनी जल, जंगल व जमीनों की रक्षा संबंधी आंदोलनों में बढ़-चढ़ कर भागीदारी करेगी।

आर्य समाज मंदिर के सभागार में आयोजित सम्मेलन में वक्ताओं ने राज्य के विभिन्न मुद्दों पर गहन चर्चा हुई। मुजफ्फरनगर काण्ड के दोषियों को सजा न मिलने तथा स्थाई राजधानी घोषित न करने पर आक्रोश व्यक्त किया गया। वक्ताओं ने राज्य में आंदोलनकारी सम्मान परिषद बनाने पर टिप्पणी करते हुए इसे धोखा करार दिया गया और कहा कि परिषद बनाने से नहीं बल्कि आंदोलनकारियों की मूल भावना के अनुरूप ही कार्य करने से सम्मान होगा। सम्मेलन में चर्चा के बाद नौ प्रस्ताव पारित किये गये। जिसमें दीक्षित आयोग को भंग करके राज्य की राजधानी गैरसैंण बनाने, मुजफ्फरनगर काण्ड के दोषियों को दण्डित करने की मांग प्रमुखता से रखी गई है। वहीं संगठन के ब्लाक स्तर पर सम्मेलन करने का प्रस्ताव पास हुआ। एक अन्य प्रस्ताव में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा राज्य में जल, जंगल व जमीन पर कब्जों के खिलाफ चल रहे आंदोलनों व जनवरी, 08 के प्रथम पखवाड़े में चलने वाले नदी बचाओ आंदोलन में भागीदारी का निर्णय लिया गया है।

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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मेहता जी,
आपने विषय तो अच्छा चुना है पर मेरा कहना है की इस विषय पर काम कम और राजनीति ज्यादा हो रही है.  दोनों पार्टियों की सरकारें इसके लिए बराबर जिम्मेदार हैं.  उ०क्रा०द० के अलावा कोई भी दल नारेबाजी के अलावा गैरसैन राजधानी नही चाहता.  उसमें उन सबके अपने स्वार्थ हैं, यह आरोप है की उ०क्रा०द० के लोगों ने राजधानी के लालच में वहाँ पर जमीनी खरीद ली थी.  आपने गैरसेन का नाम सुना है पर निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम/हल्द्वानी से करीब १५० किलोमीटर जाने में वहाँ तक कितना समय लगता है ये शायद कम लोग ही जानते हैं.  अगर सरकार की इच्छा लोगों के साथ होती तो अब तक कम से कम गैरसेन में कुछ विकास तो किया होता.  राजधानी नही तो वहाँ तक पहुँचने की सुविधा तो विकसित की होती, कोई जन सुविधाओं का विकास तो गैरसेन के लिए किया होता.   
राजनीतिज्ञ और नौकरशाह देहरादून जैसी फाइव स्तर सुविधाएं छोड़कर गैरसेन कभी जाने वाले नही हैं.  गैरसेन केवल एक राजनैतिक नारा बन कर रह गया है.  हमारे देश में जनतंत्र जैसी कोई चीज़ नही है यह जनता को महसूस करना होगा.  अंग्रेजों के जाने के बाद नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों का गठजोड़ इस देश को बरबाद करने में लगा है.  जिसके लिए जनता पुरी तरह से जिम्मेदार है, क्योंकि हम ही अपने निजी स्वार्थों की वजह से इन लोगों की कठपुतली बने हुए हैं.  नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों के गठजोड़ द्वारा भोली भाले पड़ी लोगों को गैरसेन राजधानी का सपना दिखाकर अपने स्वार्थ पूरे किए गए हैं.  उत्तराखंड राज्य बनने से राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों के अलावा किसी को लाभ हुवा हो तो बताएं.  जिन नेताओं की हैसियत ग्राम प्रधान या ब्लाक प्रमुख बनने की नही थी वह विधायक बने हुए हैं.  नया जिला बनने से किसको लाभ होता है नौकरशाहों को क्योंकि जनता के लिए तो वह फ़िर भी अपनी सीट पर नही होते.  गैरसेन का नारा ये लोग भुना चुके हैं और अब यह देहरादून छोड़कर कहीं जाने वाले नही हैं.  अब सात साल तक मामला लटकाकर किसी दिन कोई भी आधार बताकर गैरसेन को राजधानी के लिए अनुपयुक्त बता देंगें और फ़िर देहरादून में बैठे रहेंगे.
जनता को अपने निजी स्वार्थ छोड़कर और इनके बहलावे न आकर अपने विवेक से काम करना होगा और इन नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों को अपनी मांग पुरी करने के लिए मजबूर करना होगा.  ताकि ये टाई और खादी वाले वास्तव में जनतंत्र का अर्थ समझ सकें.   यह केवल गैरसेन राजधानी ही नही हमारी सभी समस्याओं के समाधान हेतु अति आवश्यक है.
अंत में मेरा कहना यही है की हर पहाड़ का वासी चाहता है की राजधानी गैरसैन बने तथा मैदान के लोग भी शायद इसके लिए कुछ शर्तों के साथ तैयार हो जाएं. पर इसके लिए हमारे राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों का सहयोग कभी भी हमें आसानी से मिलने वाला नही है. 

पंकज सिंह महर

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मेहता जी,
आपने विषय तो अच्छा चुना है पर मेरा कहना है की इस विषय पर काम कम और राजनीति ज्यादा हो रही है.  दोनों पार्टियों की सरकारें इसके लिए बराबर जिम्मेदार हैं.  उ०क्रा०द० के अलावा कोई भी दल नारेबाजी के अलावा गैरसैन राजधानी नही चाहता.  उसमें उन सबके अपने स्वार्थ हैं, यह आरोप है की उ०क्रा०द० के लोगों ने राजधानी के लालच में वहाँ पर जमीनी खरीद ली थी.  आपने गैरसेन का नाम सुना है पर निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम/हल्द्वानी से करीब १५० किलोमीटर जाने में वहाँ तक कितना समय लगता है ये शायद कम लोग ही जानते हैं.  अगर सरकार की इच्छा लोगों के साथ होती तो अब तक कम से कम गैरसेन में कुछ विकास तो किया होता.  राजधानी नही तो वहाँ तक पहुँचने की सुविधा तो विकसित की होती, कोई जन सुविधाओं का विकास तो गैरसेन के लिए किया होता.   
राजनीतिज्ञ और नौकरशाह देहरादून जैसी फाइव स्तर सुविधाएं छोड़कर गैरसेन कभी जाने वाले नही हैं.  गैरसेन केवल एक राजनैतिक नारा बन कर रह गया है.  हमारे देश में जनतंत्र जैसी कोई चीज़ नही है यह जनता को महसूस करना होगा.  अंग्रेजों के जाने के बाद नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों का गठजोड़ इस देश को बरबाद करने में लगा है.  जिसके लिए जनता पुरी तरह से जिम्मेदार है, क्योंकि हम ही अपने निजी स्वार्थों की वजह से इन लोगों की कठपुतली बने हुए हैं.  नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों के गठजोड़ द्वारा भोली भाले पड़ी लोगों को गैरसेन राजधानी का सपना दिखाकर अपने स्वार्थ पूरे किए गए हैं.  उत्तराखंड राज्य बनने से राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों के अलावा किसी को लाभ हुवा हो तो बताएं.  जिन नेताओं की हैसियत ग्राम प्रधान या ब्लाक प्रमुख बनने की नही थी वह विधायक बने हुए हैं.  नया जिला बनने से किसको लाभ होता है नौकरशाहों को क्योंकि जनता के लिए तो वह फ़िर भी अपनी सीट पर नही होते.  गैरसेन का नारा ये लोग भुना चुके हैं और अब यह देहरादून छोड़कर कहीं जाने वाले नही हैं.  अब सात साल तक मामला लटकाकर किसी दिन कोई भी आधार बताकर गैरसेन को राजधानी के लिए अनुपयुक्त बता देंगें और फ़िर देहरादून में बैठे रहेंगे.
जनता को अपने निजी स्वार्थ छोड़कर और इनके बहलावे न आकर अपने विवेक से काम करना होगा और इन नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों को अपनी मांग पुरी करने के लिए मजबूर करना होगा.  ताकि ये tie और खड़ी वाले वास्तव में जनतंत्र का अर्थ समझ सकें.   यह केवल गैरसेन राजधानी ही नही हमारी सभी समस्याओं के समाधान हेतु अति आवश्यक है.

100 %  sahi baat ke hai aapne joshi jee, i'm 100% agree agree with ur view

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Well said Rajesh Ji,

When there was Govt of Congress in the State, BJP used to accuse them for delay and now they are ruling there but the this issue is again going pending & pening.

Only one thing is being done i..e mudsluding politics. In case capital is not shifted during BJP Tenure, people of Uttarkhand should give their mandate to UKD who deserve the rule in the state.




मेहता जी,
आपने विषय तो अच्छा चुना है पर मेरा कहना है की इस विषय पर काम कम और राजनीति ज्यादा हो रही है.  दोनों पार्टियों की सरकारें इसके लिए बराबर जिम्मेदार हैं.  उ०क्रा०द० के अलावा कोई भी दल नारेबाजी के अलावा गैरसैन राजधानी नही चाहता.  उसमें उन सबके अपने स्वार्थ हैं, यह आरोप है की उ०क्रा०द० के लोगों ने राजधानी के लालच में वहाँ पर जमीनी खरीद ली थी.  आपने गैरसेन का नाम सुना है पर निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम/हल्द्वानी से करीब १५० किलोमीटर जाने में वहाँ तक कितना समय लगता है ये शायद कम लोग ही जानते हैं.  अगर सरकार की इच्छा लोगों के साथ होती तो अब तक कम से कम गैरसेन में कुछ विकास तो किया होता.  राजधानी नही तो वहाँ तक पहुँचने की सुविधा तो विकसित की होती, कोई जन सुविधाओं का विकास तो गैरसेन के लिए किया होता.  
राजनीतिज्ञ और नौकरशाह देहरादून जैसी फाइव स्तर सुविधाएं छोड़कर गैरसेन कभी जाने वाले नही हैं.  गैरसेन केवल एक राजनैतिक नारा बन कर रह गया है.  हमारे देश में जनतंत्र जैसी कोई चीज़ नही है यह जनता को महसूस करना होगा.  अंग्रेजों के जाने के बाद नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों का गठजोड़ इस देश को बरबाद करने में लगा है.  जिसके लिए जनता पुरी तरह से जिम्मेदार है, क्योंकि हम ही अपने निजी स्वार्थों की वजह से इन लोगों की कठपुतली बने हुए हैं.  नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों के गठजोड़ द्वारा भोली भाले पड़ी लोगों को गैरसेन राजधानी का सपना दिखाकर अपने स्वार्थ पूरे किए गए हैं.  उत्तराखंड राज्य बनने से राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों के अलावा किसी को लाभ हुवा हो तो बताएं.  जिन नेताओं की हैसियत ग्राम प्रधान या ब्लाक प्रमुख बनने की नही थी वह विधायक बने हुए हैं.  नया जिला बनने से किसको लाभ होता है नौकरशाहों को क्योंकि जनता के लिए तो वह फ़िर भी अपनी सीट पर नही होते.  गैरसेन का नारा ये लोग भुना चुके हैं और अब यह देहरादून छोड़कर कहीं जाने वाले नही हैं.  अब सात साल तक मामला लटकाकर किसी दिन कोई भी आधार बताकर गैरसेन को राजधानी के लिए अनुपयुक्त बता देंगें और फ़िर देहरादून में बैठे रहेंगे.
जनता को अपने निजी स्वार्थ छोड़कर और इनके बहलावे न आकर अपने विवेक से काम करना होगा और इन नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों को अपनी मांग पुरी करने के लिए मजबूर करना होगा.  ताकि ये tie और खड़ी वाले वास्तव में जनतंत्र का अर्थ समझ सकें.   यह केवल गैरसेन राजधानी ही नही हमारी सभी समस्याओं के समाधान हेतु अति आवश्यक है.

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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Mehta ji,
Though most of the UKD leaders are more known to me, but my view is that UKD is not a substitute of Congress or BJP, Politically UKD people are very immature, there is no leadership at all or other words there is no member.  All the member of UKD are leader of the party, there attitude as political party is very irresponsible.  UKD people are not mature enough to run the Uttarakhand government.
Other point is that UKD is never in a position to get absolute majority on its own as they have no base in plains and in next settlement of MLA seats the seat of hill area are decreasing.  It does not matter which party, it matters the mandate of the people, since those politicians and bureaucrates also change their side according to the mandate of people secure them.  Public have to compel them to shift the capital from Dehradun to Gairsain.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Joshi Ji,

Sorry slight late to wite on this issue as i had struck in a urgent work.

Ok.. sir.. I do agree with you that at present i also do not see any strong leader from UKD to strongly take up this issue. UKD is the party and only regional party which had taken up the new state matter and continously striving on captial issue now.

We must support tht notion of this party which has been fighting over this issue.





Mehta ji,
Though most of the UKD leaders are more known to me, but my view is that UKD is not a substitute of Congress or BJP, Politically UKD people are very immature, there is no leadership at all or other words there is no member.  All the member of UKD are leader of the party, there attitude as political party is very irresponsible.  UKD people are not mature enough to run the Uttarakhand government.
Other point is that UKD is never in a position to get absolute majority on its own as they have no base in plains and in next settlement of MLA seats the seat of hill area are decreasing.  It does not matter which party, it matters the mandate of the people, since those politicians and bureaucrates also change their side according to the mandate of people secure them.  Public have to compel them to shift the capital from Dehradun to Gairsain.

mahender_sundriyal

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नमस्कार,

जोशी जी के विचार बहुत अच्छे लगे.  इस विषय में मेरी एक जिज्ञासा है -(१) क्या हम लोग जो इन इंटरनेट फोरा में लिखते रहते हैं और अपने विचार प्रकट करते हैं वो हमारे खद्दर-धारियों और अफसरों को पता चलते हैं?  (२)क्या इन लोगों ने कभी जन भावना को जानने का कोई प्रयास नहीं किया?

यदि पहले सवाल का जवाब हाँ है तो प्रश्न है कि फिर इन्होने क्या किया.  यदि प्रश्न का उत्तर नहीं में है, तो क्या हम अपने विचार उन तक पहुंचाने के लिए कुछ कर सकते हैं. 

यदि दूसरे प्रश्न का उत्तर हाँ में है तो क्या इन लोगों से ये पूछने का कोई तरीका है कि उन तक क्या जानकारी पहुँची जन भावना के बारे में.  यदि दूसरे प्रश्न का उत्तर नहीं है तो क्या हम लोगों के पास कोई तरीका है इन तक अपनी बात पहुंचाने का?

मेरा सभी माननीय सदस्यों से अनुरोध है कि इस विषय में वे क्या सोचते हैं अवश्य लिखें?

नमस्कार

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sundiryal Ji,

At present we do not have system or procedure to reach our voice to the authorities concnered. We will thik over this issue and try to find out some sources to reach upto them.


नमस्कार,

जोशी जी के विचार बहुत अच्छे लगे.  इस विषय में मेरी एक जिज्ञासा है -(१) क्या हम लोग जो इन इंटरनेट फोरा में लिखते रहते हैं और अपने विचार प्रकट करते हैं वो हमारे खद्दर-धारियों और अफसरों को पता चलते हैं?  (२)क्या इन लोगों ने कभी जन भावना को जानने का कोई प्रयास नहीं किया?

यदि पहले सवाल का जवाब हाँ है तो प्रश्न है कि फिर इन्होने क्या किया.  यदि प्रश्न का उत्तर नहीं में है, तो क्या हम अपने विचार उन तक पहुंचाने के लिए कुछ कर सकते हैं. 

यदि दूसरे प्रश्न का उत्तर हाँ में है तो क्या इन लोगों से ये पूछने का कोई तरीका है कि उन तक क्या जानकारी पहुँची जन भावना के बारे में.  यदि दूसरे प्रश्न का उत्तर नहीं है तो क्या हम लोगों के पास कोई तरीका है इन तक अपनी बात पहुंचाने का?

मेरा सभी माननीय सदस्यों से अनुरोध है कि इस विषय में वे क्या सोचते हैं अवश्य लिखें?

नमस्कार

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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Actually we are came out of track I feel, we were started with that should capital be in Gairsain?  I am very clear about it that yes. if you ask why because
1. The Uttarakhand movement started with the issue of Gairsain as capital.
2. Our Uttarakhandi friends gave their supreame sacrifice on the name of Gairsain.
3. Gairsain is most suitable place for capital in the hill region of this state.
4. Gairsain is the central place accessable to all region of the state.
But it will take atleast 5 years to develop neccessary infrastructure for capital in Gairsain.  If it would be decided that capita should be Gairsain I think no Dixit Commission was required.
Dixit Commission can never decide that where should be the capital and why he is mere govt. administrator.  He is not mature enough and suitable to decide where should be the capital of a state.  This should be decided by the mandate of the public.  If issue of deciding the capital of state is given to an administrator or decided on the basis of tecnicallties, it never be decided.  If you measure capitals on the basis of technicalties, I feel most of the capitals of states and even countries are not suitable for capital.
Govt is for the public, but since it run by the polytical parties and the polytician try to get their share out of each issue the simplest way is devide and rule.
The polyticians not hesitate to devide the mandate on basis of cast, community or regions.  same happpend with the issue of capital of Uttarakhand.
But we should get united and say Capital should be at Gairsain the only issue remains is how long it will take to develop neccessary infrastructure at that place, I say 5 years.
I also know that what will be going to be happen on govt part.  That at last government will reject all the places for capital on the bases of fake technicalties and Dehradun will remain the capital of Uttarakhand.
If Gairsain becomes the capital of Uttarakhand, it wll be the greatest achievement of the public and a real homage to our Uttarakhandi martyors starting from hero of Peshawar Kand Veer Cahandra Singh Garhwali ji.

 

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