मेहता जी,
मैं आपके pole रिजल्ट से सहमत हूँ की समाज की ग़लत सोच ही महिलाओं की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है. हम महिलाओं द्वारा किए गए काम को महत्व नही देते हैं. मेरा कहना है की अगर महिलाऐं जो काम घर पर, खेतों में, जंगल जाकर करती हैं उसको भी ऑफिस या बाहर के काम की तरह ही महत्व दिया जाएगा तो अपने आप ही असमानता दूर हो जायेगी.
हमारे देश में समाज की काम के प्रति यह सोच की ऑफिस में काम करने वाला ज्यादा महत्वपूर्ण है की वजह से ही हमारा देश अभी भी पिछडे देशों की श्रेणी में आता है. क्योंकि यहाँ पर महिलाओं ही नही मजदूर या किसान द्वारा किए गए कार्य को महत्व नही दिया जाता. मेहनत के काम को कुर्सी के काम से कमतर अनका जाता है. किसान को, मजदूरों को या ऑफिस न जाने वाली महिलाओं को पिछड़ा समझा जाता है. किसकी वजह से कोई पढ़ा लिखा आदमी मेहनत मजदूरी के काम से जी चुराकर बेरोजगार घूमता है और असामाजिक कार्यों में लिप्त होता है.
हमें शिक्षा के प्रसार के साथ साथ लोगों में काम के मत्वा को भी समझाना होगा, तभी समाज में हर किसी को बराबरी का दर्जा मिल पायेगा.