Author Topic: Uttarakhand Suffering From Disaster - दैवीय आपदाओं से जूझता उत्तराखण्ड  (Read 69716 times)

हेम पन्त

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Some big Disasters which took place in Uttarakhand hills due to Coludburst and Landsliding, in las few years..
 
#अगस्त 1977 में तवाघाट (पिथौरागढ) में 44 लोग मारे गए. वर्ष1983 में धामगांव के दस लोग मलबे में दब गए.

#वर्ष 1996 में बेरीनाग तहसील (पिथौरागढ) के केलकोट और रताली में भूस्खलन से 18 लोगों की मौत हुई थी.

#2000 में पिथौरागढ़ ज़िले के हुडकी गांव में भूस्खलन में 19 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था.

#2002 में टिहरी ज़िले की घनसाली तहसील की बुढ़ाकेदार क्षेत्र में आई दैवी आपदा में चार गांव के 28 लोग काल के गाल में समा गए थे.

#2002 में ही टिहरी ज़िले के एक गांव में बादल फटने से दस ग्रामीणों की मौत हो गई थी.

#2007 में बरम (पिथौरागढ) में आई तबाही में डेढ़ दर्जन लोग मारे गए थे.

#2008 में भी चमोली ज़िले के हेमकुंड मार्ग पर ग्लेशियर टूट कर गिरने के कारण 11 लोगों की मौत हो गई.

हेम पन्त

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पिछले दशकों में उत्तराखण्ड में दैवीय आपदाओं की गिनती की जाये तो 29 मार्च 1999 को गढवाल के रुद्रप्रयाग, टिहरी और चमोली जिलों में आये भूकम्प को भुलाया नहीं जा सकता. इस विध्वंसकारी भूकम्प ने चमोली जिले में भारी नुकसान किया चमोली कस्बा, गोपेश्वर (चमोली जिला मुख्यालय), ऊखीमठ सहित कई गांवों में भारी तबाही हुई जिसमें लगभग 150 लोगों के हताहत होने का अन्देशा लगाया गया.
 
Photos of distruction due to earthquake in Chamoli Garhwal, Uttarakhand
 

 

पंकज सिंह महर

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बादल फटने की घटना से मिलकर निपटेंगे केंद्र-राज्य
13    अगस्त ,  2010
 
देहरादून। लेह की घटना से सबक लेते हुए बादल फटने के पूर्वानुमान के लिए उत्तराखण्ड और केन्द्र सरकार ने संयुक्त रूप से मिलकर निपटने की योजना बनाई है। आपदा ग्रसित एवं प्राकृतिक घटनाओं के लिए संवेदनशील उत्तराखण्ड राज्य में केन्द्र के सहयोग से मसूरी और नैनीताल में जल्द ही दो सैटेलाइट राडार केन्द्र स्थापित किए जाएंगे।
उत्तराखण्ड आपदा प्रबंधन सलाहकार समिति के अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत ने बताया कि बादल फटने के पूर्वानुमान एवं खतरे से निपटने के लिए सैटेलाइट राडार केन्द्र स्थापित करने के लिए केंद्र सरकार से अनुमति मांगी थी। केंद्र सरकार ने इसकी अनुमति दे दी है। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने स्थान के तौर पर मसूरी और नैनीताल का चयन कर लिया है। किन्तु भूमि का चयन अभी बाकी है। रावत ने बताया कि लेह की घटना से सबक लेते हुए राज्य सरकार इस योजना को अमल में तेजी लाने को प्रयासरत है। उन्होंने बताया कि यह आवश्यक एवं जरूरी है। राज्य और केन्द्र दोनों ही सरकारें मिलकर इस योजना को अंजाम देंगे।
उन्होंने बताया कि इस प्रकार की किसी भी योजना के लिए केंद्र सरकार से चर्चा आवश्यक है। साथ ही उन्होंने जो़डा कि प्राकृतिक आपदाओं की घटना के बाद की प्रक्रिया में भी सरलता एवं सुधार लाने के लिए नियमों में बदलाव के लिए केन्द्र से चर्चा चल रही है।
गौरतलब है कि बादल फटने की घटना पह़ाडी राज्यों में आए दिन होती रहती है जिससे लाखों जिंदगियों सहित भारी मात्रा में जानमाल का नुकसान उठाना प़डता है। आज वैज्ञानिक युग में भी अभी तक ऎसी प्राकृतिक घटनाओं के पूर्वानुमान के लिए कुछ ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
 
http://www.khaskhabar.com/flash-floods-from-the-event-center-deal-together-state-08201013809798206.html

पंकज सिंह महर

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वरुणावर्त के बाद भटवाड़ी

उत्तरकाशी में वरुणावर्त के पहाड़ के फटने की दिल दहलाने वाली यादें फिर ताज़ा हो गई है. भटवाड़ी के पास राजमार्ग का 50 मीटर हिस्सा भारी बारिश और भूस्खलन से धंस गया है.

300 से ज़्यादा दूकानें और मकान नष्ट हो गए हैं. गंगोत्री जाने वाला रास्ता बंद कर दिया गया है. सड़क दुरुस्त करने का काम जारी हैं. भटवाड़ी गंगोत्री से करीब 30 किमी पहले है और इस आपदा के कारण पूरे देश से गंगोत्री धाम का संपर्क कट गया है. इससे सेना और गंगोत्री धाम में रोज़मर्रा की ज़रूरत की चीजों की आपूर्ति नहीं हो पा रही है.

अनुमान के अनुसार क़रीब 200 यात्री वाहन वहां फंसे हुए हैं और फिलहाल गंगोत्री यात्रा रोक दी गई है. मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने भटवाड़ी का दौरा किया है और मुआवजे की घोषणा की है. हादसे में प्रभावित लोगों को फिलहाल जलविद्युत निगम की मनेरी स्थित कॉलोनी और अन्य सुरक्षित जगहों में शिफ्ट कर दिया गया है. एक वैज्ञानिक दल भी वहां भूस्खलन का जायज़ा लेने के लिये गया है.

उसका कहना है कि भागीरथी नदी की घाटी के तल में लगातार जमीन कटने औऱ पहाड़ पर अंधाधुंध हो रहे निर्माण के कारण ये हादसा हुआ है. सात साल पहले उत्तरकाशी में वरूणावर्त पर्वत की भीषण दरारों और उससे रह रहकर गिरते पत्थरों ने उत्तरकाशी शहर को हिला दिया था. इसके ट्रीटमेंट की कई योजनाएं बनीं लेकिन स्थायी समाधान दूर है. ताज़ा भूस्खलन ने एक बार फिर कुदरत में मनुष्य दखल की ओर गंभीर इशारा भी किया है.

साभार- हिलवाणी डाट काम

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तरकाशी हमेशा ही प्राकर्तिक आपदाओ का शिकार रहा है चाहे भूस्खलन हो या भूकम्प! इस जिले ने बहुत नही त्रसिदी देखी है !


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बादल फटने से चार घायल एक की मौत
17    अगस्त ,  2010
   देहारादून। उत्तराखंड के पौडी जिले के कुखड गांव में आज सुबह बादल फटने से आई जबर्दस्त बारिश के कारण एक व्यक्ति की मौत हो गई जबकि चार अन्य लोग घायल हो गए।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि आज सुबह एकाकए बादल फटने के बाद पहाड से भारी मलबा आ गया जिसकी चपेट में कुछ घर आ गये और मलबे में दबरकर एक व्यक्ति की मौत हो गई। सूत्रों के अनुसार घटनास्थल पर राहत दल के कर्मचारी पहुंच गए है। घायलों को पास के अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
   
http://www.khaskhabar.com/death-0820101724574811456.html

विनोद सिंह गढ़िया

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हरसिंग्याबगड़। कपकोट॒ के हरसिंग्याबगड़॒ में बादल फटने के चौबीस घंटे बीत जाने के बाद भी जिला प्रशासन का कोई नुमाइंदा घटना स्थल पर नहीं पहुंचा। बादल फटने के भय से रेवती घाटी के ग्रामीण सहमे हुए॒ हैं। रेवती नदी का रुख बदलने से घाटी के आधा दर्जन से भी अधिक गांवों में दहशत बनी हुई है। त्रासदी प्रभावित घाटी के ग्रामीणों का जिला मुख्यालय से संपर्क कट गया है।
विकास खंड कपकोट॒ हरसिंग्याबगड़॒ के बुरारी॒ में बुधवार शाम करीब ७.३० बजे बादल फटा था। बादल फटने की आवाज सुनकर समूचे रेवती घाटी के ग्रामीण घरों को छोड़कर बाहर निकल आए। यदि घटना रात में होती तो कई घरों के चिराग बुझ गए॒होते, गनीमत रही कि हादसा दिन में हुआ। खारबगड़॒के दीवान सिंह बैरती॒(७०) ने बताया कि गत वर्ष भी घाटी में बादल फटने की घटना हुई, तब क्षेत्र में इतनी क्षति नहीं हुई थी। उन्होंने रेवती नदी का तेज रुख अपने जीवन काल में कभी नहीं देखा। हरसिंग्याबगड़॒की प्रधान मंशा देवी ने बताया कि घटना के अगले दिन बारिश की क्षति का आकलन करने शामा॒के पटवारी पी गिरी॒ मौके पर आए थे। उन्होंने बताया बादल फटने की घटना के २४ घंटे बीत जाने के बाद भी शासन-प्रशासन॒का कोई बड़ा नुमाइंदा घटनास्थल पर नहीं पहुंचा। इधर, बादल फटने से खारबगड़, चनोली, बुरमुला,मसराड़ी,॒नावर खेत के काश्तकारों की चार सौ नाली से अधिक भूमि नदी में समा गई है। अधिकांश खेतों में मलबा भर गया है। जिला प्रशासन खारबगड़॒में नदी का रुख समय पर नहीं बदलता तो खारबगड़॒ गांव रेवती नदी में समा सकता है। नदी का तेज रुख होने से खारबगड़ गांव को जोड़ने वाला साठ साल पुराना पुल नहर में समा गया है, जिससे ग्रामीणों का जिला मुख्यालय से संपर्क कट गया है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sumgarh incident has added another black chapter in the list of natural calamites in uttarakhand.
Natural calamities are unforeseen. However, somewhere human being are also responsible for such incident. Deforestation is one of the reasons.

सत्यदेव सिंह नेगी

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पारिस्थितिकी (अंग्रेज़ी:इकोलॉजी) जीवविज्ञान की एक शाखा है जिसमें जीव समुदायों का उसके वातावरण के साथ पारस्परिक संबंधों का अध्ययन करतें हैं । प्रत्येक जन्तु या वनस्पति एक निशिचत वातावरण में रहतें हैं । पारिस्थितिज्ञ इस तथ्य का पता लगाते हैं कि जीव आपस में और पर्यावरण के साथ किस तरह क्रिया करते हैं और वह पृथ्वी पर जीवन की जटिल संरचना का पता लगाते हैं। पारिस्थितिकी को (एन्वायरनमेंटल बायोलॉजी) भी कहा जाता है। इस विषय में व्यक्ति, जनसंख्या, समुदायों और इकोसिस्टम का अध्ययन होता है। ईकोलॉजी अर्थात पारिस्थितिकी (जर्मन: Oekologie) शब्द का प्रथम प्रयोग १८६६ में जैमन जीववैज्ञानिक अर्नेस्ट हैकल ने अपनी पुस्तक जनरेल मोर्पोलॉजी देर ऑर्गैनिज़्मेन में किया था। प्राकृतिक वातावरण बेहद जटिल है इसलिए शोधकर्ता अधिकांशत: किसी एक किस्म के प्राणियों की नस्ल या पौधों पर शोध करते हैं। उदाहरण के लिए मानवजाति धरती पर निर्माण करती है और वनस्पति पर भी असर डालती है। मनुष्य वनस्पति का कुछ भाग सेवन करते हैं, और कुछ भाग बिल्कुल ही अनोपयोगी छोड़ देते हैं। वे पौधे लगातार अपना फैलाव करते रहते हैं।
बीसवीं शताब्दी सदी में ये ज्ञात हुआ कि मनुष्यों की गतिविधियों का प्रभाव पृथ्वी और प्रकृति पर सर्वदा सकारात्मक ही नहीं पड़ता रहा है। तब मनुष्य पर्यावरण पर पड़ने वाले गंभीर प्रभाव के प्रति जागरूक हुए। नदियों में विषाक्त औद्योगिक कचरे का निकास उन्हें प्रदूषित कर रहा है, उसी तरह जंगल काटने से जानवरों के रहने का स्थान खत्म हो रहा है।पृथ्वी के प्रत्येक इकोसिस्टम में अनेक तरह के पौधे और जानवरों की प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनके अध्ययन से पारिस्थितिज्ञ किसी स्थान विशेष के इकोसिस्टम के इतिहास और गठन का पता लगाते हैं। इसके अतिरिक्त पारिस्थितिकी का अध्ययन शहरी परिवेश में भी हो सकता है। वैसे इकोलॉजी का अध्ययन पृथ्वी की सतह तक ही सीमित नहीं, समुद्री जनजीवन, और जलस्रोतों आदि पर भी यह अध्ययन किया जाता है। समुद्री जनजीवन पर अभी तक अध्ययन बहुत कम हो पाया है, क्योंकि बीसवीं शताब्दी में समुद्री तह के बारे में नई जानकारियों के साथ कई पुराने मिथक टूटे और गहराई में अधिक दबाव और कम ऑक्सीजन पर रहने वाले जीवों का पता चला था।
हिन्दू दर्शन में
अन्य प्राचीन धर्मो की तरह वैदिक दर्शन की भी यही मान्यता रही है कि प्रकृति प्राणधारा से स्पन्दित होती है। सम्पूर्ण चराचर जगत अर्थात् पृथ्वी, आकाश, स्वर्ग, आग, वायु, जल, वनस्पति और जीव-जंतु सब में दैवत्व की धारा प्रवाहित है। इस दृष्टिकोण का ज्ञान इस बात से होता है कि जब प्रकृति की गोद में स्थित एक आश्रम में पली-पोसी कालीदास की शकुन्तला अपने पति दुष्यन्त से मिलने के लिए शहर जाने लगी तो उसके विछोह से उसके द्वारा सिंचित पौधे व फूल, पोषित मृग अत्यधिक दुखी हुए। यहां तक कि लताओं ने भी अपने पीले पत्ते झाड़कर रूदन करना शुरू कर दिया। उस युग में मानव व प्रकृति के बीच पूर्ण तादात्म्य और सीधा सम्पर्क था। मनुष्य की आवश्यकताएं सीमित थीं, और संतोष इतन था कि प्रकृति के शोषण की बात तो वह सपने में भी नहीं सोच सकता था। प्रकृति के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध ही सभी धर्मो का मर्म था।
समय के साथ शहरीकरण और औद्योगीकरण के चलते मनुष्य का प्रकृति से सम्पर्क टूटता गया और तथाकथित विकास की अंधी दौड़ में उसकी यह अनुभूति समाप्त हो गई कि प्रकृति भी एक जीवन्त शक्ति है। वैदिक लोकाचार ऐसे समग्र जीवन का उल्लेख करता है, जिसमें शरीर, बुद्धि, मन और आत्मा सभी की आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाता हो। शरीर की मूलभूत आवश्यकता है खाना, कपड़ा, मकान, और इसके बाद चिकित्सा व अन्य सभी भौतिक सुख-सुविधाएं। मन इच्छाओं का केन्द्र है, जो चाहता है कि इच्छाएं पूरी हों । लेकिन बुद्धि आवश्यकताओं को सीमित करने तथा इच्छाओं को नियंत्रित करने के लिए इस तरह मार्गदर्शन करती है कि प्रकृति के पुनर्चक्रीकरण की प्रक्रिया व सभ्य समाज के महीन तन्तु अस्त-व्यस्त नहीं हों।
श्री गुलाब कोठारी द्वारा मेलबर्न में प्रस्तुत एक शोधपत्र के अनुसार तथाकथित शिक्षित लोग ही पारिस्थितिकी और पर्यावरण समरसता के विनाश के लिए उत्तरदायी होते हैं। वे प्रकृति को जड़ वस्तु मानते हैं जो मानो मानव के उपयोग और "शोषण के लिए ही बनी हो। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा वर्ष १९९५ में प्रकाशित जनसंख्या व जीवन स्तर पर स्वतंत्र आयोग इंडिपेंडेंट कमीशन ऑन पापुलेशन एंड क्वालिटी ऑफ लाइफ की रिपोर्ट के अनुसार[३] मनुष्य के अस्तित्व के लिए प्राकृतिक पर्यावरण बहुत महत्त्वपूर्ण है। भावी पीढियों के लिए पर्यावरण का पोषण और देखभाल आवश्यक है, जिसकी उपेक्षा की जा रही है।

Blue Linckia Starfish.JPG Male lion on savanna.jpg
Hawk eating prey.jpg European honey bee extracts nectar.jpg
   पारिस्थितिकी का वैज्ञानिक साम्राज्य वैश्विक प्रक्रियाओं (ऊपर), से सागरीय एवं पार्थिव सतही प्रवासियों (मध्य) से लेकर अन्तर्विशःइष्ट इंटरैक्शंस जैसे प्रिडेशन एवं परागण (नीचे) तक होता है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Uttarakhand to shift 100 disaster prone villages
« Reply #39 on: August 24, 2010, 01:24:10 PM »
 
This is a good step being taken by the Uttarakhand Govt to shift the vilalge in safe places which come in danger zone in view of Natural calamities:
 
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 Uttarakhand to shift 100 disaster prone villages     These villages are almost ‘sitting ducks’ for tragedies in view of their susceptible position under rick projections  Dehradun: The Uttarakhand government has drawn a plan to rehabilitate around 100 villages of the state in view of the natural calamities, landslides and seismic activity.

Uttarakhand is a mountainous state and witnesses widespread natural disasters and calamities every year, mainly during the rainy season on account of landslides, cloudburst, falling of rocks and flooding of rivers and water sources.

More villages would be shifted in the next phase. The state government has also sought central help for carrying out this exercise.

These villages are almost ‘sitting ducks’ for tragedies in view of their susceptible position under rick projections.

The government has conducted a survey throughout the state through experts and technical specialist and drawn the list of villages that need immediate shifting.

The move has been prompted by the recent tragedy in which a school collapsed in Kapkot in Bageshwar killing 18 students. Around 69 people have lost their lives since June this year in various natural calamities in the state.

Uttarakhand Chief Minister Ramesh Pokhriyal ‘Nishank’ said that the state has incurred loss of 3500 crore due to the calamities.

Around 945 roads have been damaged and 7 lakh people have been affected by the calamities.
He said that the villages in Pithoragarh, Bageshwar  and Chamoli would be shifted in the first phase. The houses that sank in Bhatwari in Uttarkashi due to the landslides would also be shifted elsewhere.
 
http://www.igovernment.in/site/uttarakhand-shift-100-disaster-prone-villages-38259

 

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