हां, पम्पिंग योजनाओं की बात सही है, लेकिन मुद्दा यह भी तो है कि सरकार इस राज्य के लिये इस राज्य के हिसाब से योजनायें बनायेगी? अभी तक तो सरकारें दूसरे प्रदेशों की ही कापी कर रही हैं, कहा जाता है कि नकल के लिये अकल चाहिये, तो हमारी सरकारों को भी अकल से साथ नकल करनी चाहिये। हमें पहाड़ी प्रदेशों नार्थ ईस्ट, हिमांचल, कश्मीर आदि की योजनाओं का अध्ययन करके योजनायें बनानी चाहिये, न कि उ०प्र०, म०प्र० या स्विटजरलैंड की। लेकिन खेद है कि अभी तक इसमें कुछ नहीं हुआ, असल में सरकार एक साथ अधिक मुनाफा चाहती है(यह मुनाफा प्रदेश के लिये है या अपने लिये, पता नहीं) और अंतर्राष्ट्रीय बैकों से कर्जा लेकर बड़ी योजनाओं, जल विद्युत, ऊर्जा प्रदेश के नाम पर सिर्फ जनता को बरगलाना ही चाहती है।
सरकार अगर कुछ करना ही चाहती है तो मेरी समझ में यह नहीं आता कि पानी देने की कसरत समय रहते जाड़ों से ही क्यों नहीं शुरु हो जाती। पानी मानव की मूलभूत और सबसे जरुरी आवश्यकता है, हमें अपने शरीर को चलाने के लिये सबसे ज्यादा जरुरत पानी की ही होती है। अगर हम सबसे आवश्यक चीज नहीं दे पा रहे, तो सड़क, पानी, स्वास्थ्य आदि का क्या करेंगे? आदमी इन सुविधाओं का उपभोग करने के लिये बचना भी तो चाहिये।
क्या यह दुर्भाग्यपूर्ण नहीं है कि हमारी सरकार यह बयान दे रही है कि पानी की कमी नहीं होने देंगे, टैंकरों से पानी दिया जायेगा। टैंकरों से कितना पानी कहां-कहां दे पाओगे महाराज, आज भी उत्तराखण्ड मे सैकड़ों ऐसे गांव हैं, जहां सड़क नहीं है और है भी तो टैंकर के चलने लायक नहीं है। पहाड़ तो पहाड़ हुये आप मैदानी क्षेत्रों में ही पानी नहीं दे पा रहे हैं, जहां पर नलकूप हैण्ड पम्प आसानी से लग सकते हैं। हरिद्वार जैसे जिले में जहां गंगा जैसी नदी है, वहां का वाटर लेबल १०० मीटर पहुंच गया है। देहरादून जिला, जिसके एक ओर गंगा और दूसरी ओर यमुना बहती है, वहां पर आप पानी नहीं दे पा रहे हैं। कारण क्या है...........जहां पूरे विश्व में पानी के लिये लोग परेशान हैं और तीसरा विश्व युद्ध पानी के कारण होने की आशंका जता रहे हैं, लेकिन उत्तराखण्ड एक ऐसा राज्य है, जहां पर पानी की कोई कमी नहीं है, कमी है उस पानी को नियोजित रुप से आम आदमी तक पहुंचाने की, इसके लिये नीति-रीति की जरुरत है, जो सरकारें बनाती हैं, लेकिन सरकार सोई है..............।