ये है हमारे सपनों का उत्तराखंड ,दवा नहीं, बस दुआ का भरोसा
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तमाम दावे किए जा रहे हैं। गांव-गांव तक बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने की घोषणाएं की जा रही हैं, लेकिन नतीजा? सिफर। कम से कम टिहरी जिले के भिलंगना ब्लॉक में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली तो इस सवाल का यही जवाब देती है। राज्य गठन के दस साल बाद भी इलाके के ग्रामीणों को मामूली बीमारी पर भी 18 से 20 किमी पैदल चलना पड़ता है। सुविधाओं का अंदाजा इसीसे लगाया जा सकता है कि अकेले पिंसवाड़ गांव में एक वर्ष में नौ बच्चे समय पर उपचार न मिलने से अकाल मृत्यु के शिकार बन गए। बार-बार डायरिया, मलेरिया और अन्य संक्रामक रोगों की चपेट में आना क्षेत्र के लोगों की नियति सी बन गई है। ऐसे में उन्हें दवाओं से ज्यादा दुआओं पर ही भरोसा रहता है।
टिहरी जिले में भिलंगना प्रखंड के पिंसवाड़, मेड, मरवाड़ी, उर्णी, गंगी, निवाल गांव, अगुंडा, कांगड़ा, भट्टगांव, आर्स, अमरसर गांवों का दर्द एक सा है। राज्य गठन के बाद ग्रामीणों में बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध होने की आस जगी थी, लेकिन यह अब तक पूरी नहीं हुई है। हालांकि, सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें, तो इन सभी गांवों में स्वास्थ्य उपकेन्द्र खुले हुए हैं, लेकिन जमीन पर हकीकत कुछ और है। ये सभी उपकेंद्र या तो महज कागजों पर हैं, या जहां हैं भी वहां शोपीस बनकर रह गए हैं। क्षेत्र में स्थिति कितनी बदतर है, इसीसे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पिंसवाड़ गांव में एक साल के अंदर नौ नौनिहाल विभिन्न बीमारियों से काल के ग्रास बन गए। आलम यह है कि बीमार होने पर ग्रामीणों को 18-20 किमी पैदल चलकर बूढ़ाकेदार आना पड़ता है।
ग्रामीण प्रेम सिंह नेगी, भरत सिंह नेगी, सरब सिंह नेगी आदि लोगों का कहना है कि इसके लिए वह जनप्रतिनिधियों से लेकर स्वास्थ्य विभाग व सरकार तक गुहार लगा चुके हैं, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है। लोगों का कहना है कि पिंसवाड़ गांव में महिलाओं को प्रसव कराने के लिए दो साल पूर्व प्रसूति गृह खोला गया था, लेकिन विभागीय उपेक्षा के चलते उसे भी झाड़ियों ने पाट दिया है।
इस संबंध में मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. बीसी पाठक का कहना है कि मानकों के अनुसार गांवों में उप स्वास्थ्य केन्द्र खोले गए हैं जहां पर एएनएम को तैनात किया गया है।
Source Dainik jagran