नारायण तुलसी विवाह संग शुरू होगा पांडव नृत्य
जागरण प्रतिनिधि, रुद्रप्रयाग: केदारघाटी के दरमोला में पांडव नृत्य की अनूठी परम्परा है, यहां पांडवों को गढ़वाल के प्राचीन इतिहास से जोड़ते हुए प्रत्येक वर्ष एकादशी पर्व पर भगवान नारायण एवं तुलसी विवाह के साथ पांडव नृत्य का आयोजन किय जाता है। स्थानीय लोग इसे शुभ मानते हैं। इन तथ्यों का स्कन्द पुराण एवं केदारखंड में विस्तार से वर्णन मिलता है।
गढ़वाल क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर प्रत्येक वर्ष नवंबर माह से लेकर फरवरी तक पाण्डव नृत्य का आयोजन होता है। जिला मुख्यालय से सटी ग्राम पंचायत दरमोला एकमात्र ऐसा गांव है, जहां सदियों से चली आ रही परम्परा के अनुसार प्रत्येक वर्ष एकादशी पर्व पर ग्रामीण देव निशाणो के साथ मंदाकिनी व अलकनंदा के तट पर स्नान के लिए पहुंचते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान नारायण एवं तुलसी का विवाह हुआ था, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु पांच महीनों की निन्द्रा से जागते हैं। वहीं भगवान बद्रीविशाल, लक्ष्मीनारायण, शंकरनाथ, नागराजा, देवी, हित, ब्रहमडुंगी, भैरवनाथ समेत कई नेजा-निशाण एकादशी की पूर्व संध्या पर संगम तट पर स्नान के लिए लाए जाते हैं। पूरी रात जागरण के पश्चात एकादशी पर्व पर सुबह सभी देवताओं की पूजा-अर्चना एवं हवन के बाद ही देवताओं के निशाणों को गांव में ले जाया जाता है। इसी दिन से ही पांडव नृत्य का भव्य आयोजन शुरु हो जाता है।
इस दौरान मुख्य रुप से पाण्डवों के बाणों एवं अस्त्र-शस्त्रों की पूजा की अनूठी परंपरा है। ग्रामीणों का कहना है कि स्वर्ग जाने से पहले भगवान कृष्ण के आदेश पर पाण्डव अपने अस्त्र-शस्त्र यहीं छोड़ कर मोक्ष के लिए स्वर्गारोहणी की ओर चल दिए थे। इसी लिए यहां के लोग पाण्डवों के अस्त्रों के साथ नृत्य करते हैं।
क्या कहते हैं पुजारी
गढ़वाल क्षेत्र का दरमोला गांव ऐसा गांव है, जहां प्रतिवर्ष पांडव नृत्य का आगाज बड़ी आस्था के साथ किया जाता है। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है।
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