Author Topic: Latu Devta Temple,opens for only one day- लाटू देवता का मंदिर, गोपेश्वर गढ़वाल  (Read 11463 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Dosto,

Latu Devta (distance brother of Nanda Devi) is situated in Gopeshwar Uttarakhand. It is said that this temple is opened only one day during the year and priest perform worship after binding his eyes with a cloth.

Here is the detailed information on Latu Devta.

सनातन धर्म में चौतीस करोड़ देवी-देवताओं को अलग- अलग रूप में पूजा जाता है, लेकिन चमोली जिले के देवाल ब्लाक में एक ऐसे भी देवता हैं, जिनके दर्शन भक्त तो रहे दूर खुद पुजारी नहीं कर सकता। इस देवता के मंदिर के कपाट एक ही दिन के लिए खुलते हैं और पुजारी भी आंख पर पट्टी बांधकर कपाट खोलते हैं। श्रद्धालु भी दिनभर दूर से ही दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं।
देवाल विकासखंड के वाण गांव में स्थिति लाटू देवता का मंदिर है।  इस मंदिर के कपाट एक दिन के लिए खुलते है और उसी दिन सांय को बंद कर दिए । इस दिन लाटू देवता मंदिर में श्रद्धालु भारी संख्या में आकर पूजा अर्चना कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं। इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां श्रद्धालु तो दूर स्वयं पुजारी भी भगवान के दर्शन नहीं कर पाता है। पुजारी आंखों व मुंह पर पट्टियां बांधकर लाटू देवता की पूजा अर्चना करता है। मंदिर से कोई अंदर न देखे इसके लिए मंदिर के मुख्य कपाट पर पर्दा लगाया जाता है। माना जाता है कि इस मंदिर के अंदर साक्षात रूप में नागराजा मणि के साथ निवास करते हैं। श्रद्धालु साक्षात नाग को देखकर डरे न इसलिए मुंह और आंख पर पट्टी बांधी जाती है। यह भी कहा जाता है कि पुजारी के मुंह की गंध देवता तक न पहुंचे इसलिए उसके मुंह पर पूजा अर्चना के दौरान भी पट्टी बंधी रहती है। जिस दिन लाटू देवता के कपाट खुलते हैं उस दिन यहां पर विष्णु सहस्रनाम व भगवती चंडिका का पाठ भी आयोजित किया जाता है। लाटू देवता को उत्तराखंड की आराध्या देवी नंदा देवी का धर्म भाई माना जाता है।
मान्यताओं के अनुसार लाटू कन्नौज के गर्ग गोत्र का कान्याकुंज ब्राह्मण था। वह भगवती नंदा का पता करने के लिए कैलाश पर्वत पर जा रहा था। उसी दौरान वाण गांव के दोदा नामक तोक में लाटू एक घर में एक बूढ़ी स्त्री से पीने का पानी मांगता है। बताते हैं कि लाटू व बूढ़ी स्त्री दोनों एक दूसरे के भाषाओं को समझ नहीं पाए। इशारे कर बुढि़या ने उसे घर के अंदर पानी पीने के लिए भेजा। घर के अंदर कांच के घड़े में जान (स्थानीय स्तर पर बनने वाली कच्ची शराब) और मिट्टी के दूसरे घड़े में पानी था, लेकिन जान इतना स्वच्छ रहता है कि लाटू उसे साफ पानी समझकर पी लेता है। जब लाटू को पता चलता है कि उसने पानी की जगह शराब पी ली है और उसका कर्म भ्रष्ट हो गया है तो उसे अपने पर घृणा आती है। अपराध बोध होने पर वह दरवाजे पर अपनी जीभ बाहर निकालता है।
'लाटू देवता स्थानीय लोगों का आराध्य देवता माना जाता है। वाण में स्थित लाटू देवता के मंदिर के कपाट सालभर में एक ही बार खुलते हैं। इस दिन यहां विशाल मेला लगता है।'डीडी कुनियाल, स्थानीय निवासी। (source dainik jagran)

 
M S Mehta

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

चमोली जिले का सुदूर गाँव वाँण जो कि प्रशिद्ध बैदनी बुग्याल व रूपकुण्ड जाने के लिए अंतिम गाँव है। वहाँ पर लाटू देवता का छोटा सा प्राचीन मंदिर है जिसके प्रति स्थानीय लोगों में बहुत श्रद्धा व भक्ति है। 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

New from Amar Ujala

वैदिक मंत्रोच्चार के बीच खुले लाटू देव के कपाट
Story Update : Sunday, May 06, 2012    12:01 AM
देवाल। धार्मिक अनुष्ठान एवं वैदिक मंत्रोच्चार के बाद शनिवार को सिद्धपीठ लाटू देवता मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। इस मौके पर गढ़वाल एवं कुमाऊं क्षेत्र से आए हजारों श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना करते हुए मनौतियां मांगी। देव नृत्य को देखने के लिए भी ग्रामीणों की भारी भीड़ जुटी रही।
मां श्रीनंदा के धर्म भाई लाटू देवता के कपाट छह माह तक खुले रहते हैं। शनिवार सुबह से ही पूरा देवाल क्षेत्र देवी-देवताओं की जागर से गूंजायमान रहा। इस मौके पर लगभग एक दर्जन पंडितों ने परिसर में लाटू देवता की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। परिसर में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ अपने आराध्य की जयकार करने लगी। पूजा-अर्चना के उपरांत ब्राह्मणों ने जोत जलाते हुए लाटू के डांगरिया (पुजारी) के हाथों में दी एवं उसकी आंखों पर पट्टी बांधी। आंखों पर पट्टी बांधे डांगरिया मंदिर के अंदर गए और जोत वहां रखते बाहर आए। डांगरिया के मंदिर से बाहर आने पर वहां पर उपस्थित श्रद्धालुओं ने मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए विशेष पूजा अर्चना की।
 इस मौके पर लाटू देवता के मंदिर परिसर में आयोजित कार्यक्रम में पश्वाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में देव नृत्य किया। जबकि ग्रामीण महिलाओं ने पौराणिक जागरों के साथ झोड़ा एवं नंदा की मनमोहक प्रस्तुति दी। देर शाम तक चले धार्मिक अनुष्ठान के उपरांत श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरण किया गया। 



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0



photo of latu devta temple

photo courtesy - sulekha.com





Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
                     Latu Devta: Adopted Brother of Goddess Nanda Devi
Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Kumaon-Garhwal, Uttarkahnd-1
                           Bhishma Kukreti

                         Latu deity is one of the important deities worshipped in northern Garhwal. Nanda Devi is one of the most worshipped goddesses in Kumaon and Garhwal.
               There is folk story about Latu deity.
                   Once, in Kailash, Bhagwati Nanda was feeling sadness. She was very unrest mentally and was sitting still for hours. Lord Shiva asked the reasons for her sadness. Goddess Nanda told that she does not have any brother to remind her seasonal changes. Goddess Nanda requested Shiva her to find a brother. Lord gave permission.
   Goddess Nanda reached to prime minister of Kannauj. The name of wife of prime minister was maina too as Nanda’s mother’s name was also Maina. Maina asked the reasons for Nanda’s coming to Kannauj. Nanda told that she does not have brother to provide her seasonal gifts. Maina had two brilliant sons Batu and Latu. Nanda requested Maina to give her Latu as Nanda’s adopted brother. After continuous persuasion from Nanda, Maina gave her son to Nanda.
   Nanda reached Ban village by passing Bans Bhabhar, Ringal Bhabhar, Anvala Bhabhar, Ver Bhabhar and Burans Bhabhar. Nanda went to KailNadi for bathing. Latu was sitting on the road. Latu felt thirsty and he asked water from village women of ban village. The women, instead of offering water to Latu, gave some jand-mand (addictive) juice to Latu. Latu became unconscious. Nanda came to know the realities through her potent spiritual knowledge and cured Latu. Nanda told to Latu that there would be his temple in Ban village. Nanda also promised Latu that Nautiyals of Nauti village would be priest for that Latu temple.  Nanda told to her brother Latu that when at every twelve years people would bring Nanda Jat procession, people will also worship Latu. She promised that none other than Nauitylas would be permitted to enter into Latu temple.
 From that day, people worship Latu along with Nanda deity. People also offer goat as sacrifice to deity.
 Nautiyals open the Latu temple of Ban village and they only shut the door of Latu temple.

Curtsey and references:
 Dr Trilochan Pandey, Kumaoni Bhasha aur Uska Sahity
Dr Siva Nand Nautiyal, Garhwal ke Lok Nrityageet 
Dr Govind Chatak, Garhwali Lokgathayen
Dr Urbi datt Upadhyaya, Kumaon ki Lokgathaon ka Sahityik Adhyan
Dr. Prayag Joshi, Kumaon Garhwal ki Lokgathaon ka Vivechnatmak Adhyayan
Dr Dinesh Chandra Baluni, Uttarakhand ki Lokgathayen
Dr Jagdish (Jaggu) Naudiyal, Uttarakhand ki Sanskritik Dharohar, (Ravain) 
Copyright (Interpretation) @ Bhishma Kukreti, 8/4/2013
Folklore, Folk Legends, Folk Myths of Kumaun-Garhwal, Uttarakhand- to be continued…2

vipin gaur

  • Newbie
  • *
  • Posts: 23
  • Karma: +0/-0
नन्दा देवी राजजात जो कि दुनिया की सबसे लम्बी पैदल यात्रा है। जिसमेँ कि सर्वप्रथम चमोली जनपद के घाट(नन्दप्रयाग से मात्र 18 किमी आगे) मेँ नन्दाकिनी नदी की आँचल मेँ बसेँ "कुरुड़" गाँव से बाजे भुंकारे के साथ नन्दादेवी की नवीँ सदी पूर्व राजराजेश्वरी नन्दा देवी तथा दशौली क्षेत्र की ईष्ट साक्षात नन्दा भगवती की दो स्वर्णमयी डोलियाँ जाती हैँ
इसके पीछे से चौसिँग्योँ को ले जाया जाता है तथा उसके बाद काँसुवा के कुँवर अपनी छँतोली लेकर चलते हैँ ।

नन्दा देवी की डोलियोँ के साथ कन्नौजी गौड़ (कुरुड़ के पुजारी) चलते हैँ।

राजजात की शुरुआत तब होती है जब नन्दा के क्षेत्र मेँ दुर्भिक्ष(अपशगुन) पैदा होता है।
यह अपशगुन चौसिँग्या खाड़ू के रुप मेँ होते हैँ

2013 मेँ नन्दा देवी धाम कुरुड़ के सामने लुन्तरा गाँव मे तथा एक चौसिँग्या खाड़ू कुरुड़ गाँव के ही अनुसूचित जाति के नन्दा देवी के ओजी पुष्कर लाल के यहाँ तथा हाल ही मेँ एक चौसिँग्या कुरुड़ के समीप सुंग गाँव मे भी हुआ है।
सन 2000 मेँ ये चरबंग मेँ पैदा हुआ था
और इस बार 3 चौसिँग्या कुरुड़ क्षेत्र मे पैदा होने के कारण लोगोँ को परम विश्वास हो गया कि कुरुड़ ही नन्दा राजजात का मुख्य थान है।

नन्दा देवी राजजात के मुख्य दो मुख्य रास्ते हैँ
1--प्रथम रास्ता कुरुड़ से  चरबंग,कुण्डबगड़,धरगाँव, फाली उस्तोली सरपाणी लॉखी भेँटी स्यारी,बंगाली बूंगा डुंग्री कैरा-मैना सूनाथराली, राडीबगड़  चेपड़यू कोटि, रात्रि नन्दकेशरी इच्छोली हाट रात्रि फल्दियागाँव काण्डई,लब्बू ,पिलखड़ा ,ल्वाणी ,बगरीगाड रात्रि मुन्दोली लोहाजंग,कार्चबगड़ रात्रि वाण लाटू देवता तथावाण से होमकुण्ड ।
नन्दकेशरी मेँ अद्भुत नजारा रहता है यहाँ पर काँसुवा तथा नौटी की राजछतोली का मिलन कुरुड़ बधाण की नन्दा राजराजेश्वरी से होता है यहीँ से राजजात का प्रारम्भिक बिन्दु शुरु होता है यहाँ पर कुमाउँ की जात भी अपनी छंतोलियोँ के साथ शामिल होती है तथा यहाँ से यात्रा कई पड़ावोँ से  होकर वाण पहुँचती है।

तथा नन्दा देवी राजजात का दूसरा रास्ता
2--नन्दा देवी दशोली की डोली का कुरुड़ से धरगाँव कुमजुग
से कुण्डबगड़, लुणतरा,कांडा मल्ला,खुनाना,लामसोड़ा लाटू मन्दिर माणखी,चोपड़ा कोट.चॉरी  काण्डई
खलतरा,मोठा  चाका,सेमा बैराशकुण्ड
 बैरो,इतमोली,मटई, दाणू मन्दिर
पगना देवी मन्दिर भौदार,चरबंग ल्वाणी
 सुंग,बोटाखला रामणी आला,जोखना, कनोल से वाण लाटू देवता। ये रास्ता नन्दाकिनी के साथ साथ चलता है ।रामणी में  विशाल भव्य मेला लगता है रामणी मेँ आते आते कुरुड़  नन्दा देवी डोली के साथ कुरुड़ कीनन्दामय लाटू, हिण्डोली, दशमद्वार की नन्दामय लाटू, मोठा का लाटू, केदारु पौल्यां, नौना दशोली की नन्दादेवी, नौली का लाटू, बालम्पा देवी, कुमजुग से ज्वाल्पा देवी की डोली, ल्वाणी से लासी का जाख, खैनुरी का जाख, मझौटी की नन्दा, फर्सवाण फाट के जाख, जैसिंग देवता, काण्डई लांखी का रुप दानू, बूरा का द्यौसिंह, जस्यारा, कनखुल, कपीरी, बदरीश पंचायत, बदरीनाथ की छतोली, उमट्टा, डिम्मर, द्यौसिंह, सुतोल, स्यारी, भेंटी की भगवती, बूरा की नन्दा, रामणी का त्यूण, रजकोटी, लाटू, चन्दनिय्यां, पैनखण्डा लाटा की भगवती आदि २०० से अधिक देवी-देवताओं का मिलन होता है।अतः रामणी एक पवित्र स्थल है ।रामणी मेँ जाख देवता का अद्भुत कटार भेद दर्शन भी होता है।यहां से आगे कुरुड़ की नन्दा के पीछे पीछे चलते वाण पहुँचते हैँ जहाँ पर राजजता के दोनो रास्ते मिलकर एक हो जाते हैँ  वाण मेँ स्वर्का का केदारु, मैखुरा की चण्डिका, घाट कनोल होकर तथा रैंस असेड़ सिमली, डुंगरी, सणकोट, नाखाली व जुनेर की छलोलियां चार ताल व चार बुग्यालों को पार करके वाण में राजजात में शामिल होती हैं।।

वाण राजजात का आखिरी गाँव है। यहाँ से आगे वीरान है।
वाण गाँव के बाद गेरोली पातळ में रण की धार नामक जगह पर देवी नंदा ने आखिरी राक्षस को मार गिराया था। लाटू की वीरता से प्रसन्न होकर देवी ने आदेश दिया कि आगे से वो ही यात्रा की अगुवाई करेंगे। रण की धार के बाद यात्री कालीगंगा में स्नान कर तिलपत्र आदि चढाते हैं!
रास्ते मेँ वेदिनी बुग्याल है।
बेदिनी  बुग्याल उत्तराखंड का सबसे बड़ा और सुंदर बुग्याल माना जाता है। यहाँ पर यात्री वैतरणी  कुंड  में स्नान करते हैं। राजकुंवर यहाँ पर अपने पित्तरों की पूजा करते हैं। एक बांस पर धागा बाँधा जाता है। श्रद्धालु धागा थामकर अपनें पित्तरों का तर्पण करते हैं। हर साल यहाँ पर नन्दा धाम कुरुड़ की नन्दा देवी की जात होती है।रास्ते मेँ
पातर  नचौणिया है। कहा जाता है कि यहाँ पर कन्नौज के रजा यशधवल ने पात्तर यानि नाचने-गाने वालियों का नाच गाना देखा। यशधवल के इस कृत्य से नंदा कुपित हो गयी और देवी के श्राप से नाचने-गाने वालियां शिलाओं में परिवर्तित हो गयी!
आगे कैलवा विनायक है।यहाँ से हिमालय का बहुत ही सुंदर दृश्य दिखता है। यहाँ से बेदिनी, आली और भूना बुग्याल देखते ही बनते हैं।
इस जगह  कन्नौज के राजा की गर्भवती रानी वल्लभा ने गर्भ की पीड़ा के समय विश्राम किया था। यहीं पर उसने एक शिशु को जन्म भी दिया था। इस दौरान राजा का लाव-लश्कर रूपकुंड में डेरा डाले रहा। गर्भवती रानी की छूत से कुपित होकर देवी के श्राप से ऐसी हिम की आंधी चली कि राजा के सारे सिपाही और दरबारी मारे गए।चेरिनाग से  रूपकुंड के लिए यात्रा बहुत ही खतरनाक रास्तों से गुजरती है। चट्टानों को काटकर बनायीं गयी बेतरतीब सीढ़ियां यात्रा को और मुश्किल बना देती हैं।रूपकुंड का  निर्माण भगवान् शिव ने नंदा की प्यास बुझाने के लिए किया था। मौसम के अनुसार अपना रूप और आकार बदलने के लिए विख्यात रूपकुंड बहुत ही सुंदर दिखता  है।खतरनाक  उतार-चढ़ाव के कारण ज्युरांगली को मौत की घाटी भी कहा जाता है।ज्युरांगली  के खतरनाक उतार-चढ़ाव के बाद यात्री शिला समुद्र में विश्राम के लिए रुकते हैं।
शिला समुद्र  में रात्रि विश्राम के बाद होमकुंड के लिए प्रस्थान करते हैं। होमकुंड पहुंचकर यात्री पूजा-अर्चना करते हैं। यहाँ पर चौसिँग्या खाड़ू को छोड़ दिया जाता है।
vipin gaur

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22