महंत बद्रीनारायण दास ने शिखर व संगाड मंदिर का जीणोधार कर (बन्जेन )भनार का मंदिर बनाने पहुंचे| ऐसा कहते है की एक रात उनको स्वप्न हुआ की वो भनार के मंदिर के साथ छेद्खान न करें| अगले दिन जब शक्तिपीठ के आसपास की खुदाई करने लगे तो वह एक सर्प मिला| उस सर्प को महंत जी ने एक नौले में डाल दिया और उसी रात महंत जी के मृत्यु हो गयी|
इसके बाद एक और व्यक्ति ने उस शक्तिपीठ की खुदाई का जिम्मा उठाया| और उसकी भी उसी रात मृत्यु हो गयी| इसके बाद महंत जी के कुछ भक्तो ने शक्ति पीठ को वैसा ही छोड़कर उसके चारो तरफ मंदिर बनाकर मंदिर बनाने के काम संपन्न किया|