इडासुर हयग्रीव मुरारे मधुसूदन।
मणिकूट कृतावास हयग्रीव नमोस्तुते।।
अर्थात हे इडासुर! हे हयग्रीव! हे मुरारे! हे मधुसूदन! हे मणिकूट में वास करने वाले! हे हृयग्रीव! मैं आपको नमस्कार करता हूं। मणिकूट पर्वत स्वयं शिवस्वरूप है। मणिकूट पर्वत को त्रिलोचन कहा गया है। मणिकूट पर्वत में नरसिंह व नागराजा की पूजा की महत्ता है। केदार खंड में चंद्रकूट पर्वत के ऊपर भगवती भुवनेश्वरी के मंदिर के होने का वर्णन है। कुछ लेखक चंद्रकूट व मणिकूट को एक ही नाम मानते हैं।
यदि इसमें तर्कसंगत है तो पवित्र बल्लभ नदी कालिकुण्ड होकर घूटगड़ में हेमवती/ हिवल नदी में मिलती है। वर्तमान में मणिकूट पर्वत को एक चोटी तक सीमित करके नहीं रखा जाता बल्कि ऋषिकेश से हरिद्वार के मध्य गंगा तट के पूर्वी भाग के पर्वत मालाओं का शिख मणिकूट कहलाता है। लक्ष्मण झूला फूलचट्टी से लेकर बिंदुवासिनी गौरीघाट तक मणिकूट पर्वत का आधार क्षेत्र है। मणिकूट के निकटवर्ती पर्वतों को मणिकूट पर्वत श्रृंखला नाम दिया गया है।
जहां मणिरत्नों का विशाल भंडार है तथा जो स्त्री पुत्र व धनधान्य दाता है। तपस्वी मणिकूट की परिक्रमा अलौकिक शक्तियों के संग्रह करने तथा परमात्मा प्राप्ति के लिए करते थे। गृहस्थ श्रद्धालु मणिकूट की परिक्रमा सांसारिक लाभ के लिए करते रहे हैं। अधिकांश श्रद्धालु पारिवारिक सुख, पुत्र प्राप्ति, धन सम्पदा चाहने हेतु करते रहे हैं।
मणिकूट परिक्रमा पहले एक ही दिन (सतवा तीज) मौन रहकर नंगे पैर भी की जाती थी, पदयात्रा को कठिन महसूस करने के कारण लोगों ने धीरे-धीरे इस यात्रा को त्याग ही दिया। हिमालय का महत्वपूर्ण क्षेत्र मणिकूट-हिमालय देवभूमि व तपोभूमि दोनों हैं। यहां महर्षि कण्व वंश के 33 ऋषि वेदमंत्रों के दृष्टा रहे हैं। इन ऋषियों का प्रमुख मुख्यालय कण्वाश्रम था।
नीलकंठ महादेव, भुवनेश्वरी मंदिर झिलमिल गुफा, विंदवासिनी मंदिर जैसे पवित्र तीर्थ स्थानों का वर्तमान समय में भक्तों के बीच प्रसिद्ध करने में संतो-साधुओं का योगदान है। कालीकुण्ड बाल कुवांरी मंदिर, गणेश गुफा आदि प्रसिद्धि बाहर के श्रद्धालुओं में धीरे-धीरे पहुंच रही है।