Author Topic: Justice for Muzzaffarnagar Case, State Struggle-न्याय की मांग- मुज्ज़फ्फर नगर  (Read 53560 times)

विनोद सिंह गढ़िया

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राज्य आंदोलन का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट

कई सवाल अनुत्तरित


रामपुर तिराहा कांड के बहाने उत्तराखंड आंदोलन के नेपथ्य में जाने की जरूरत है। अनुत्तरित सवालों के हल ढूंढने की जरूरत भी। जरा पीछे चलें। राज्य आंदोलन की ओर। तब हर चेहरा आग उगल रहा था। कहीं अराजकता भी हावी थी। कहीं अतिवाद भी। इस सबके बावजूद सड़कें लोगों से भरी थीं। तनी मुट्ठियां लहरा रही थीं। नारे गूंज रहे थे। इस माहौल के बीच खामोशी ओढे़ दिल्ली की चुप्पी तोड़नी थी। तय हुआ गांधी जयंती पर दिल्ली में दस्तक दी जाएगी। तैयारियां शुरू हुई। हर कोई रैली में शामिल होना चहता था। उत्तरकाशी में जब दिल्ली रैली की तैयारी के लिए बैठक हुई तो कई आशंकाएं सवालों के रूप में तैरी। हरिद्वार से लेकर गाजियाबाद के बीच तत्कालीन मुलायम सरकार की ओर से आंदोलनकारियों को रोकने और उनके दमन की आशंकाओं पर भी चर्चा हुई। ऐसी स्थिति में हमारी रणनीति क्या होगी। कहा गया कि महिलाएं दिल्ली रैली में नहीं जाएंगी। प्रस्ताव आते ही महिलाओं ने सवाल दागने शुरू कर दिए। महिलाओं की ओर से पहाड़ में चलाए जाने वाले आंदोलनों के उदाहरण दिए गए। कहा गया कि नहीं, हम जरूर जाएंगे। बमुश्किल उन्हें समझाया गया कि सत्ता के गुंडे हमला कर सकते हैं। दिल्ली जाने वालों को रोका जा सकता है। लाठी और गोली भी चल सकती है। ऐसे में महिलाओं की सुरक्षा देखना पहला फर्ज हो जाएगा, तब आंदोलन की धारा कुंद हो सकती है। बेहतर होगा कि महिलाएं स्थानीय स्तर पर आंदोलन चलाएं और पुरुष दिल्ली जाएं। यही फैसला हुआ। बाद में उस बैठक में उठी आशंका सच साबित हुई। आंदोलनकारियों को रोकने का सिलसिला हरिद्वार के बाद ही शुरू हो गया था। लाठी और गोलियां भी चली। शहादतें हुई। उत्तरकाशी की महिलाएं भले दिल्ली नहीं गई। लेकिन उन्होंने रामपुर तिराहा कांड की प्रतिक्रिया में उत्तरकाशी में ही जबरदस्त आंदोलन चलाया। युवाओं ने प्रतिक्रिया स्वरूप सरकारी संपत्तियों को क्षति पहुंचाई। सरकारी आंकड़ों में बताया गया कि राज्य आंदोलन में सबसे अधिक सरकारी संपत्ति को उत्तरकाशी में ही नुकसान हुआ। रामपुर तिराह कांड की प्रतिक्रिया में उपजे गुस्से से हुई हिंसक कार्रवाई के अपवाद को छोड़ दें तो उत्तरकाशी में व्यवस्थित आंदोलन चला। रामपुर तिराहा कांड राज्य आंदोलन का बड़ा टर्निंग प्वाइंट था। राज्य बने हुए बारह वर्ष गुजर गए। लेकिन सपनों का उत्तराखंड राजनीतिक धमाचौकड़ी में खो गया। इन वर्षों में राज्य आंदोलन के दौरान मिट गई गढ़वाल- कुमाऊं की दूरी फिर से बढ़ी। पलायन पहले से तेज हुआ है। पूरा पहाड़ जैसे देहरादून, हल्द्वानी, कोटद्वार, ऋषिकेश, रामनगर, ऊधमसिंह नगरों की ओर मुड़ गया। असल आंदोलनकारी हाशिये पर चले गए।

लेख : रमेश कुड़ियाल
अमर उजाला

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 उत्तराखंड आंदोलन के शहीदों को किया याद Updated on: Wed, 03 Oct 2012 01:06 AM (IST)            उत्तराखंड आंदोलन के शहीदों को किया याद
   जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : मंगलवार को सेक्टर-29 स्थित गढ़वाल भवन में जुटे लोगों ने वर्ष 1994 के उत्तराखंड अंादोलन में शहीद हुए युवाओं को श्रद्धांजलि अर्पित की। उत्तराखंड युवा मंच ने इस अवसर पर एक फोटो प्रदर्शनी भी आयोजित की गई। इसमें उत्तराखंड आदोलन पर विस्तृत प्रकाश डाला गया। वहीं शहीदों की याद में एक भजन गायन सत्र आयोजित किया गया। कमलेश्िदर सिंह ने गीत व भजन गाकर शहीदों को याद किया। उत्तराखंड युवा मंच के राजेन्द्र प्रसाद नौडियाल ने कहा कि शहीदों की शहादत को भुलाना हमारे लिए जीवनभर आसान नहीं होगा। उत्तराखंड के गठन के लिए उनका योगदान को सदैव याद रखा जाएगा। कार्यक्रम के अंत में शहीदों की स्मृति में एक मिनट का मौन भी रखा गया।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ढ़वाली हास्य व्यंग्य हौंसि  हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा?                                                                मुज्जफर नगर कांड का पुलिस बलात्कार्युं बाराम किलै हल्ला नि होणु च?                                   कुज्याण किलै म्यार दिलमा यि विचार आंदन  धौं ?                                                        चबोड्या: भीष्म कुकरेती (s=-माने  आधी  अ )      म्यार बडा जि मेखुण बुल्दा छा बल रे भीष्म जु तू विचार करण छोड़ि देलि त तीन बडो नेता ह्वे जाण। मीन विचार करण बंद नि कार अर इख तलक कि नामौ राजनैतिक पार्टी जन कि उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी या  उत्तराखंड सेना पार्टी बि चुनावों टिकेट त छवाड़ो चुनावी प्रचारों वास्ता बि नि बुलांदन अर ना हि अपण बुलणो  (तथाकथित ) मुखपत्रोंम म्यार लेख  नि छापदन। राजनैतिक  पार्ट्यूं बुलण च बल विचारों से या आचार -विचार से राजनीति नि  चलदि।             खैर मि बुलणु छौं बल म्यार दिलम बचपन से इ विचार आणा रौंदन।                  ब्याळि उत्ताराखंडौ ब्याळौ मुख्यमंत्री डा.रमेश पोखरियालs बयान सूण बल विजय बहुगुणा की सरकारम उत्तराखंड विकास का बाराम ना त दिशा च ना हि क्वी निर्देश।  कुज्याण दिलम विचार किलै  आंदन धौं बल कौन सा भाजापाइ मुख्यमंत्रीन उत्तराखंड विकास का बाराम क्वी ठोस दिशा दे होलु? यो त इनि च जन सैकड़ो दुंळ वळि   छणि  चंळु दुंळुक दोष गणनि ह्वावो। विचार आँदन बल पिथौरा गढ़ को मुनस्यारीम बि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्कीइंग खेल ह्वे सकदन अर पर्यटन तै बढ़ावा मिल सकद। पण यांकुण राजनीतिज्ञों अर अधिकार्युंम पर्यटन अकल  अर आत्मबल हूण जरूरी च। विचार आंदन बल बलात्कार पर इथगा बुल्याणु च त मुज्जफर नगर कांड का पुलिस बलात्कार्युं बाराम किलै हल्ला नि होणु च? अब जन कि विचार आंदन  बल भौत सि पार्टी जन कि डी . ऐम .के या तृणमूल पार्टी या क्वी बि जख्या भंगुल पार्टी जब तलक भाजापा वळो दगड़ सत्ता का डवालाम खुट पसारिक रौंस लीणा रौंदन तब तलक यूं धर्म निपरेक्ष पार्ट्यु तै पता इ नि चलदो बल सत्ता रुपी ड्वालाs  डुलेर धर्मांध छन अर जनि यी सत्ता रुपी ड्वाला छुड़दन यूं तै पता चलदो बल डुलेर याने भारतीय जनता पार्टी धर्म निरप्रेक्ष पार्टी नी च। कथगा दै बहुजन समाज पार्टीक नेत्याणि भाजापा  डुलेरूं बदौलत सत्ता रुपी ड्वालाम बैठि तब तलक बहुजन समाज पार्टीक नेत्याणि तै पता इ नि चौल बल डुलेर  धर्म निरपरेक्ष  नि छन अर अब वा नेत्याणि कौंग्रेस तै इलै समर्थन दीणि च कि नौन सेक्युलर पार्टी सत्ता से भैर रावो। म्यार दिलम विचार आंद बल धर्म निरपरेक्ष की असली परिभाषा क्या च ? श्रीमती गांधीन ब्याळि मनरेगाक बैठकम ब्वाल बल मनरेगाम भ्रष्टाचार खतम हूण चयेंद। इनि भग्यान राजीव गांधीन बि बोलि थौ बल भारत से भ्रष्टाचार खतम हूण चयेंद। म्यार दिलम कुज्याण किलै विचार आंदन धौं बल जब सोनिया गांधी सरीखी शक्ति शाली नेत्याणि या  नेता भारत बिटेन भ्रष्टाचार खतम नि कौर सकदन त अमेरिका या चीन बिटेन कै तै बुलाण जो  भारत बिटेन भ्रष्टाचार खतम कौरल?              फिर कुज्याण दिलम विचार किलै  आंदन धौं बल जब कौंग्रेस की सरकार ही डी . ऐम . के, शरद पवार , लालू प्रसाद यादव , मुलायम सिंह यादव , मायावती  या इनि हौरुंक  समर्थन से चलणि ह्वावो त सोनिया गाँधिक भ्रष्टाचार खत्म करणै बात लोगुं तै बौगाणै बात ही त होलि?                                  Copyright@ Bhishma Kukreti 3/02/2013
 
--


Regards
B. C. Kukreti

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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It has been more than one decade.. Justice for Muzaffarnagar case has not yet come out.

पंकज सिंह महर

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शहीदों हम शर्मिन्दा हैं, तुम्हारे हत्यारे जिन्दा हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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शहीदों हम शर्मिन्दा हैं, तुम्हारे हत्यारे जिन्दा हैं।

Shame Shame Shame ...

It has been almost 19 years and people are still awaiting for justice...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Rampur Tiraha firing caseFrom Wikipedia, the free encyclopedia   The Rampur Tiraha firing case refers to police firing on unarmed Uttarakhand activists at Rampur Tiraha (crossing) in Muzaffarnagar district in Uttar Pradesh in India on the night of October 1-2, 1994.The activists, part of the agitation for the separate state of Uttarakhand, were going to Delhi to stage a dharna at Raj Ghat on Gandhi Jayanti, the following day, when alleged unprovoked police firing in the night of October 1 led to the death of six activists, and some women were allegedly raped and molested in the ensuing melee. Mulayam Singh Yadav was Chief Minister of Uttar Pradesh, when the incident occurred.
  Contents 
  • 1 Case history
  • 2 Legacy
  • 3 Further reading
  • 4 See also
  • 5 References
  • 6 External links
Case history
  • 1994: First Information Reports (FIRs), entails that the activists damaged public property, burnt shops and vehicles and tried to force their way through the barricades, forcing A.K. Singh, who was present at the spot, to order firing, leading to the death of six activists and several others getting injured.[1]
  • 1995: The Allahabad High Court orders the Central Bureau of Investigation (CBI) on January 12, to probe into the issue, taking cognizance of the Uttarakhand Sangharsh Samiti's petition. The CBI later, examines 72 witnesses and files cases against 28 police personnel.[2] All the accused face charges under sections 376 (rape), 392 (robbery), 354 (assault or criminal force on women), 332 (voluntarily causing hurt), 509 (intent to insult the modesty of women) and 120 (b) (criminal conspiracy) of the Indian Penal Code (IPC).[3] Though initially, the State government, then headed by Mulayam Singh Yadav, ordered a judicial inquiry by a retired judge, Justice Zaheer Hassan, which reported, 'the use of force was just and reasonable'.[1] Later, at the Uttaranchal High Court, the CBI admitted, "The case of the CBI in the charge-sheet is that the petitioner and other police officers under the garb of checking tried to stop the rallyists from going to Delhi, provoked them to resort to violence and when they dispersed after the use of rubber bullets, the remaining few protesters were unnecessarily shot dead." [1]
  • 2000: Rajnath Singh, Chief Minister of Uttar Pradesh under Section 197 of the Criminal Procedure Code (CrPC) in November, refuses CBI), the permission to prosecute then district magistrate Muzaffarnagar, Anant Kumar Singh.[1]
  • 2003: July: Uttaranchal High Court quashes the CBI charge sheet and absolved then district magistrate Muzaffarnagar, Anant Kumar Singh in criminal proceedings.[4] Motivation by a widespread public uproar, the State government soon filed for a review petition, which resulted in the High Court recalling its own earlier order.[1] November: A CBI special court has convicted two Uttar Pradesh State police officials and a constable for killing a man while firing indiscriminately on a crowd of Uttarakhand demonstrators in 1994. The Sub-inspector, Ramesh Chand Chowdhary was sentenced to rigorous imprisonment for two years and fined Rs 2,000 while the other two — Anil Singh Manral and Bhopal Singh were awarded a seven years’ rigorous imprisonment and fined Rs 5,000 each.[5]
  • 2005: A special CBI Judicial Magistrate, at Moradabad in Uttar Pradesh acquits the four police personnel had been accused of tampering with police records after the firing over alleged rioters.[6]
  • 2007: July: A special CBI court in Muzaffarnagar acquittes, Rajendra Pal Singh, then city Superintendent of Police, in connection with the alleged police firing, refusing the agency permission to prosecute him without the Uttar Pradesh governor's consent. After prior refusal of the State Government to prosecute him, CBI later prosecutes him on a statement of co-accused in the case, Rajbir Singh, who was then the SHO of Chapar police.[2] October: Uttarakhand Chief Minister Bhuvan Chandra Khanduri, visited the 'Sahid Samarak' at Rampur Tiraha at Muzaffarnagar, and announced that the state government will pursue all the five pending court cases, with greater dedicated [7]
LegacyThe incident left an indelible mark on the agitation for the state of Uttarakhand and eventually led to the division of the state of Uttar Pradesh in 1998.[citation needed]The Uttarakhand State government has built a 'Sahid Samarak' (Martyr's Memorial) at the Rampur Tiraha, the site of the incident, and a memorial function is observed here, each year.[7] Further reading
  • History of Uttaranchal by O. C. Handa. 2002, Indus Publishing, Uttaranchal (India), ISBN

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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photo uttarakhandrajyaaandolan.jpgUpdated by Priyank Nautiyal
 महिला दिवस था, और सब जगह देख रहा था की महिला ओ का सम्मान किया जा रहा था, लेकिन एक बात दिल पे लगी की उनको श्रद्धांजलि देना किसी को सही नही लगा! उत्तराखंड आंदोलन के समय "मुजफ्फर नगर कांड" जो हुआ था , जब महिला ओ के साथ दुष्कर्म हुआ था ! महिलाओ को नमन करता हु, जो अलग राज्य की रैली के लिये जाते समय सरकारी दमन का शिकार हुई थी ! जय भारत

Mani Ram Sharma

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पुलिस अत्याचार अक्सर सत्ताधीशों की छत्रछाया में होते हैं| प्रकरण में मानव अधिकार आयोग मददगार हो सकते हैं|  आवश्यकता होने पर पर इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी उठाया जा सकता है जब देश में न्याय की उम्मीद ना रहे |

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Justice for Uttarakhand Andolankari in Mujaffarnagar kandLiked · October 5, 2012
After the massacre on the night of 1st October, courtesy Mulayam Singh, execution by Anant Kumar Singh and Bua Singh,  Uttarakhand activist at Rampur Tiraha, Muzaffarnagar on the morning on 2nd October 1994, the birth day of the father of nation Mahatama Gandhi !
 Incidentally Raj Nath Singh refused to grant permission to the CBI for the formal prosecution of Anant Kumar Singh and in fact promoted him as his PA. Now same Raj Nath Singh is the BJP in-charge of Uttarakhand and spineless BJP minions from Uttarakhand still talk about Bharat Mata while compromising the dignity of the Matra Shakti of Uttarakhand. What a joke !
 sk (..)

 

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