Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253912 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चलो मौसम बदलने वाला है

चलो मौसम बदलने वाला है
पहाड़ की चोटियों पर अब ठंडी बर्फ बरसने वाली है
शुष्क गर्मी से वो देगी छुटकारा
बरखा से मिला था जो थोड़ा सहारा
शीत लहर गूंजेगी इन हवाओं में
सर्द बहेगी इन फिजाओं में
जल श्रोत इन राहों के ठोस हो जाएंगे
तब हर वो तन मन जन ठिठुरेगा
आग की लपटों में वो अब झुलसेगा
सुबह अब थोड़ी और देर से जागेगी
रातें और थोड़ी देर हमारे संग अँधेरे में भागेंगी
उस सुबह में धुंध की एक लहर बिछी होगी
ओस की नम आँखों में वो कमी दबी होगी
उसे उस किरण का बेसब्री से इंतजार होगा
वो सूरज ना जाने आज उसका कहाँ छुपा होगा
आलस से थमी रोकी जिंदगी जवाँ होगी
मोहब्बत ही मोहब्बत अब यंहा होगी
फिर भी हमे ना रोकना है
किसी औरों के आगे ना झुकना है
आलस त्याग अपने कर्म पथ पर
सदैव निरंतर यूँ ही आगे बढ़ना है आगे बढ़ना है
चलो मौसम बदलने वाला है .......

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पहाड़ों तुम हो मेरे
पहाड़ों तुम हो मेरे , नजारों तुम हो मेरे
मेरी दिल की आँखों ने खींचे , हर एक वो चित्र तेरे
कभी सर्दी का था आलम , कभी बरखा ने की थी झम झम
वो पतझड़ तेरा मेरा मौसम , गर्मी में हुआ वो तीर्थों का संगम
हर एक वो कोना तेरा , खिला हुआ वो सोना तेरा
पहचान अगर ना पाया वो , उसे पड़ेगा अब उस सुख से वंचित होना
खेल ही खेल बिछाया कुदरत ने , कैसा ये मिलन रचाया कुदरत ने
इतनी दौलत देकर भी हमको , हम ने ही इस दौलत को ठुकराया
ये कैसी विडंबना है कैसा ये रोना है , दूर जाके ही क्यों दुःख होना है
रोना था तुझे तो यहीं ही रोना था , ये मोती तेरे मुझ से दूर नहीं खोना था
पहाड़ों तुम हो मेरे , नजारों तुम हो मेरे
मेरी दिल की आँखों ने खींचे , हर एक वो चित्र तेरे
बालकृष्ण डी ध्यानी
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इनी भलि लगे
देकी तेर मुखडी इनी भलि लगे मिथे
ना भलि लगे मिथे अब अब कै कि मुखडी
देकी तेर मुखडी हो हो अ
बिसरि गयूं मि मैसे कै गौं बाटू जाणु
हर्ची गयूं मि मैसे क्ख्क मेरु ठीकाणु
देकी तेर मुखडी हो हो अ
ह्यूंद पडि इनी पैलि बारि त्यु डांडीयूँ माथा
ऊ बि लगणु आयू छुईं तेर ग्लुड़ी दगड आजा
देकी तेर मुखडी हो हो अ
बिगरेली मुखड़ी मा सजे वा कनुडी कि झूमकि
हाथा मा फूल ले बैठी वा हँसेली दंतु कि पंक्ति
देकी तेर मुखडी हो हो अ
चूड़ी का गोल गोल नि सब करयुं च घोल
ब्याल आज भोल मा मेर ब्योली बल तेंन ही हुँण
देकी तेर मुखडी हो हो अ
देकी तेर मुखडी इनी भलि लगे मिथे
ना भलि लगे मिथे अब अब कै कि मुखडी
देकी तेर मुखडी हो हो अ
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
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अब की बार इनि मिलोंलू
अब की बार इनि मिलोंलू
ये सुख थे इन दुःख का दगडी
ऐ बार ऐजा ये निंदी इन आँखों मा
बिगेर आँसूं ढोलिकी
अब की बार मिलोंलू ……
तरसलु ये सरीर मेरो
किले हुन ये मेरो जियू थे तर्पणू
कन और्री कब बरखली ये बरखा
वो बीजाणु कैथे हुलु हाक देणु
अब की बार मिलोंलू ……
मि त अब यख इनि गिजि गियूं
बल अब रेगे रे बाकि तेरो गिज्याणू
तेरो आणु इनि आणु व्हाई सदनी कू
मि देखदी रेग्युं रे बस सदनी तेरो जाणू
अब की बार मिलोंलू ……
अपरी मा ही ग्याई रे
कैल विंथे अब तक देख ना पाई रे
सुकी सुकी डाली वा
द्वि चार ही हैरा पाता बस गिण पाई रे
अब की बार मिलोंलू ……
बालकृष्ण डी ध्यानी
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अब मेरो पहाड़ा मा
अब मेरो पहाड़ा मा
कन चलो इन फैशण
स्कर्ट छोटू व्हैग्या
जिंस व्हैग्या टाइट टनाटन
अब मेरो मुल्का
छोरों का काना का कुंडला
बाल व्हैग्या रंग बिरंगा
दुरुल्या व्हैकि टनाटन
शरम लाज बेचिकि
सरया बजारा घूमना छना छन
ऊंचा सैंडिल गलोड़ी लाला
नौनी व्हैगे अब टनाटन
रोज रोज कैरी कि न्यू फैशण
पहाड़ी हरेगे आपरी पछाण
बुढ्या खोलो रैगै अब
जवानु कु देखि कि ये चल चलण
बालकृष्ण डी ध्यानी
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तै देख्द ही
तै देख्द ही
मि मि ना राई
देख ईं म्यळी मुखडी थे
ईं जिकोड़ी मा जादू व्हैग्याई
कया तेरो रूप च
कैल हुलु येथे इन बणाई
सरया सरीर मा मेरो
वैल अब कंप कपि कैग्याई
सुदी नि बुल्दु मि
ऐ गिच इनि नि खोल्दो मि
कैथे भी बिचार दे तू अब
मिल त झूठ ना सच ब्वाली
लिखणा कुण मिल
ना खुद कुछ इनि मिस्ल द्याई
तू ही कलम व्हैगै अब मेरी
तू ही अब वो गीत बणग्याई
तै देख्द ही .....
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ऐ भुंदरा बौ
ऐ भुंदरा बौ
तू कख कख गौ
कख च तेरो गांऊं
मि थे बथे तू जौ
ऐ भुंदरा बौ ....... ये मेरी बौ
कनि तेरि छुई चा
थमेनि नि अब थमेनि
तेर बिगर ऐ बौ
ऐ मजलिस नि भरेनी
झट दौड़ी औ
ऐ भुंदरा बौ ....... ये मेरी बौ
कुच ना कुच
तू ऐमा जोड़ देंदी
अपरू छुई तू
सब मा थोप देंदी
जल्द लपोड़ी औ
ऐ भुंदरा बौ ....... ये मेरी बौ
तेर बक बाकि
सुन सुनेकी अब
कैकु जी नि भरौंदी
नींदि नि आंदी बौ
अब मुंड मलेसी जौ
ऐ भुंदरा बौ ....... ये मेरी बौ
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हैंस्दा हैंस्दा अब मेरी आंखि किैलै रुंदी जांदी
हैंस्दा हैंस्दा अब मेरी आंखि किैलै रुंदी जांदी
मिथे अब लजलू कै जांदू दुख मेरो अपड़ो ही जी
बात जबै पत्ते लगै जांदी घरै बिपदा ऐने कि
पैल अपरा ही अब अपरा घार आनू जानू कम कै देंदा जी
अब पेटणु च पाणी बी आग दगडी दगडी रे
और्री कबी आग बी अब किैलै पाणी व्है जांदी जी
अबी त ये दुनि की बथौं देख बदलणी च
और्री बाकि अपरो मन को काम ये बहम कै जांदी जी
ठुलि ठुलि बात कैकि कुछ समजा का हल्का लोक
अपरा लोकों का गैरु जिबन अब किैलै कै दिंदा जी
आख़िर कै संस्कृति मा ऐकि रुकी गै छन हम लोक
अपड़ा ही लोक अपडा लोक थे सियु जमा कै दे दिंदा जी
अपड़ो सैलु बी अब अपड़ा से क्द्गा दूर चली जांदू
समझ नि आन्दु वै दगडि कया हम इनि कैर दिनि जी
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आज झम झम
आज झम झम
तेर खुद फिर बौडी ऐगे
कोयेड़ी सी तू ऐकि
यक्ली मा मि फिर रुवैगे
रूडी का ये दिन झम झम
कख तू इने तू चुलगै
रूडी का रति थे
तू किलै इत्गा भंड्या कैगै
मेरो नि राई जियु झम झम
तेरो ही कबैर को अब हैगे
ह्युंद जमण लगै बोई
भारी जदू ऐ बारी पौडेगै
आज झम झम
तेर खुद फिर बौडी ऐगे ....
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तै देख्द ही
तै देख्द ही
मि मि ना राई
देख ईं म्यळी मुखडी थे
ईं जिकोड़ी मा जादू व्हैग्याई
कया तेरो रूप च
कैल हुलु येथे इन बणाई
सरया सरीर मा मेरो
वैल अब कंप कपि कैग्याई
सुदी नि बुल्दु मि
ऐ गिच इनि नि खोल्दो मि
कैथे भी बिचार दे तू अब
मिल त झूठ ना सच ब्वाली
लिखणा कुण मिल
ना खुद कुछ इनि मिस्ल द्याई
तू ही कलम व्हैगै अब मेरी
तू ही अब वो गीत बणग्याई
तै देख्द ही .....
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