Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 253912 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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तू ऐ जांदी सुप्नियु मा
(ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर भग्यानी तू (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर रुपै कि खज्यानी(ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर माय कि थैली (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर बिगरेली पियारी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर रानी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर रस्वड़ी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर छन्नी -गोठ्यारि (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर सिरणि-चदरी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर थकुलि (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर बस्ग्याल -रुड़ि-ह्यून्द (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर पुंगड़ी -कुड़ी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर स्वाणि (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर रौतेली (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर लाटी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर गरीबी की रुवाटी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर नथुली (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर गोलोबंदा जांझरी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर कमरपट्टा (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर खुटी पैजनी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर कंचे की चुरी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर माथे की बिंदी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर पहाड़े की नारी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर उत्तराखंड की दुलारी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर डाली बोटी तू (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
बालकृष्ण डी ध्यानी
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दिल्ली वालोँ सुनि लिंवा ये बात
दिल्ली वालोँ सुनि लिंवा ये बात
अप्डी जिकोड़ी को झकझायट
वै को रागरायट मनि लिंवा वै की बात
ऐ जावा अब त अपरा पहाड़ों मा......
धुँआ ही धुँआ ई दिल्ली खाणु रे
हे भुल्हा गढ़ छोड़ी की कख अब तिल जानू रे
शुद्ध हवा अब म्यारा पहाड़ों मा ही मिळाली
मिल ये मा भी एक दिन टैक्स लगाणु रे
तिल भी वैथे चुकनु रे
फस फुस ऊ तेरो फेफड़ो करनु लग्युं च
उकाळ छोड़ी ऊ फिर बी उन्दरु मा जनि लग्युं च
चैती जावा अब तक ना बिगड़ी बात
तुमि त ऐल्या कैल्या पैल सुरवात
ऐ जावा अब त अपरा पहाड़ों मा......
ना तेरो फिर घार रहलो ना तेरो मुल्क रालो
ये हवा को टैक्स चुकणु ना तेरो टाक्को रलो
फिर ते थे अपरी भूल समजली
तब तक भांड्या देर व्है गे हुली ईं देर हुन से पैल
ऐ जावा अब त अपरा पहाड़ों मा......
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
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तू ऐ जांदी सुप्नियु मा
(ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर भग्यानी तू (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर रुपै कि खज्यानी(ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर माय कि थैली (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर बिगरेली पियारी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर रानी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर रस्वड़ी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर छन्नी -गोठ्यारि (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर सिरणि-चदरी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर थकुलि (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर बस्ग्याल -रुड़ि-ह्यून्द (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर पुंगड़ी -कुड़ी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर स्वाणि (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर रौतेली (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर लाटी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर गरीबी की रुवाटी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर नथुली (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर गोलोबंदा जांझरी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर कमरपट्टा (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर खुटी पैजनी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर कंचे की चुरी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर माथे की बिंदी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर पहाड़े की नारी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर उत्तराखंड की दुलारी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर डाली बोटी तू (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
बालकृष्ण डी ध्यानी
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देखदा ही ते थे मिथे पियार व्हैग्याई
देखदा ही ते थे मिथे पियार व्हैग्याई
ये जिकोड़ी मेरी मिल तेरो नौ कैर द्याई
हर्ची हर्ची ग्याई मि मेसे हर्ची ग्याई ...... २
तेर आंख्युं न जबै मि थे प्रेम घुटी पिलै द्याई
देखदा ही ते थे मिथे पियार व्हैग्याई ...........
रौतेंली मुखडी तेरी बिगरैली आँखी
कन तेरो ये रूपन मिथे बौल्या बनेई
सुध बुध मेर हर्ची हर्ची ग्याई ...... २
अंदा जांदा मिथे जब तू अद बाटा मां दिखेग्याई
देखदा ही ते थे मिथे पियार व्हैग्याई ...........
मेरो मेरो अब मेरो पास मेरो कुच नि बी राई
कुच बी छ्या मेरो पास ऊ अब तेरो व्हैग्याई
ये मेर गैल्याणी तेर छुईं मां मि हर्ची हर्ची ग्याई ...... २
अब त ऐजा मेर ये जीबन मां देक देर ना व्है जाई
बालकृष्ण डी ध्यानी
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कब बसंत अलो बोई
कब बसंत अलो बोई
म्यार पहाड़ा मा बोई ये उजड़ा मा
हिरी हिरी पाखी उड़दा आला
रंग बिरंगी बल तब यख फूल खिलाला
बिरला रंगों तब भूमि सजगे ले हुली
म्यार पहाड़ा मा बोई ये उजाड़ा मा
ब्योलि रूप मा वा रूपमती रुपेनि ऊ हुली
शृंगार रसों दगडी दगड़्यूं दगड सजैनी ऊ हुली
कब कुद्गेली लगेली यूँ नंगी खुठ्यूँ मा
म्यार पहाड़ा मा बोई ये उजाड़ा मा
जख द्याख तख तब मेरी तिस नि बुझेली
मेरी धरती तब मिथे चौदिशा बाटा मा भरमेलि
कन कख ऊ कब मेर यूँ वा नजरि मा समेली
म्यार पहाड़ा मा बोई ये उजाड़ा मा
बालकृष्ण डी ध्यानी
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दिल्ली वालोँ सुनि लिंवा ये बात
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अप्डी जिकोड़ी को झकझायट
वै को रागरायट मनि लिंवा वै की बात
ऐ जावा अब त अपरा पहाड़ों मा......
धुँआ ही धुँआ ई दिल्ली खाणु रे
हे भुल्हा गढ़ छोड़ी की कख अब तिल जानू रे
शुद्ध हवा अब म्यारा पहाड़ों मा ही मिळाली
मिल ये मा भी एक दिन टैक्स लगाणु रे
तिल भी वैथे चुकनु रे
फस फुस ऊ तेरो फेफड़ो करनु लग्युं च
उकाळ छोड़ी ऊ फिर बी उन्दरु मा जनि लग्युं च
चैती जावा अब तक ना बिगड़ी बात
तुमि त ऐल्या कैल्या पैल सुरवात
ऐ जावा अब त अपरा पहाड़ों मा......
ना तेरो फिर घार रहलो ना तेरो मुल्क रालो
ये हवा को टैक्स चुकणु ना तेरो टाक्को रलो
फिर ते थे अपरी भूल समजली
तब तक भांड्या देर व्है गे हुली ईं देर हुन से पैल
ऐ जावा अब त अपरा पहाड़ों मा......
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ये मेर भग्यानी तू (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर रुपै कि खज्यानी(ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर माय कि थैली (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर बिगरेली पियारी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर रानी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर रस्वड़ी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर छन्नी -गोठ्यारि (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर सिरणि-चदरी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर थकुलि (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर बस्ग्याल -रुड़ि-ह्यून्द (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर पुंगड़ी -कुड़ी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर स्वाणि (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर रौतेली (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर लाटी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर गरीबी की रुवाटी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर नथुली (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर गोलोबंदा जांझरी (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
ये मेर कमरपट्टा (ऐ जांदी सुप्नियु मा) ... २
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छम छम शराब छम
छम छम शराब छम
मेरा पहाड़ों में शराब छम छम
ब्यो बारातों मा
मसाणों को कामकाजों मा छम छम
बरखण लगि झर झर
देस बिदेस हारे मेरो पहाड़ी बाज मारी
तुण्ड फुंड मा
पोड़ि हर पहाड़ी करम मा छम छम
देक ना देकि हुली तिल कख कख
मिल जै बी पी ले तू जख तख
नि हुनि थम थम
कन बगनी नि थमनि छम छम
आन्दु दिस शराब छम छम
ब्योखून दोपहरी मा शराब छम छम
रति सुबेर कु देक शराब छम छम
बोतलों पोतलों को धिंगतालो छम छम
छम छम शराब छम
बालकृष्ण डी ध्यानी
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म्यार पहाड़ा मा बोई ये उजड़ा मा
हिरी हिरी पाखी उड़दा आला
रंग बिरंगी बल तब यख फूल खिलाला
बिरला रंगों तब भूमि सजगे ले हुली
म्यार पहाड़ा मा बोई ये उजाड़ा मा
ब्योलि रूप मा वा रूपमती रुपेनि ऊ हुली
शृंगार रसों दगडी दगड़्यूं दगड सजैनी ऊ हुली
कब कुद्गेली लगेली यूँ नंगी खुठ्यूँ मा
म्यार पहाड़ा मा बोई ये उजाड़ा मा
जख द्याख तख तब मेरी तिस नि बुझेली
मेरी धरती तब मिथे चौदिशा बाटा मा भरमेलि
कन कख ऊ कब मेर यूँ वा नजरि मा समेली
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भै बिमार पड्नु बी अब अपराध चा
हालात भंडया खराब च
जार चङयूं यु सौ को पार च
नकुडी बैहणी मेरी आज च
ये गलोड़ी खैंसनी दिन रात च
बरमंड को बारा बज्यूं चा
सरीर कंपकांपि को थारु लग्युं चा
कन हुंयुँ भुलूँ मेरो ये बुरु हाल च
रजै भीतर लिप्टयूं मि आज च
खैनीपानी छूटगे मेरो आज च
बिस्तर मां सिमटीगे मेरो राज च
दवैपानी को लग्युं दरबार चा
जद्ग गीच उत्गा ऊँका बिचार चा
जार थे जनि मिल ही न्यूत दे बोलैई
अपरा सरीर मां मिन वैथे प्रेवश कराई
लोकों कथा सुनी की मेरो अनुमान चा
भै बिमार पड्नु बी अब अपराध चा
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