Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447710 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बीराणु

बीराणु बीराणु .......२ मुल्क मेरा बीराणु
बीराणु वहैगे बीराणु
मुल्की भी वहैगे बीराणु
अपरा भी वहैगे बीराणु
कीथै खोज्याणु वहालो
मनखी को आस कीथै खोज्याणु वहालो
बीराणु बीराणु .......२ मुल्क मेरा बीराणु
बीराणु वहैगे बीराणु ........................

कोई कैको णी राई
गढ़ देश मा अब भै मेरु
माया का झोला देखा
पुअडा ग्याई पुअडा ग्याई
नाती गोती भै बंद रिश्तेदारी सबकी सब
बीराणु बीराणु .......२ मुल्क मेरा बीराणु
बीराणु वहैगे बीराणु ........................

यखरा यखरा सब अब देखेंणी
दूधको ग्लास कखक लुकेणी
रुपयों का गोल गोल मा भुलोंहों
सब का सब मोल व्हैग्यानी
दगड़या दगडी सब छोडी गैनी
यख अब कोई णी रैणी
बीराणु बीराणु .......२ मुल्क मेरा बीराणु
बीराणु वहैगे बीराणु ........................

बाटा बाटा पोर रूडी गैनी
जीकोडी का खोला छुडी गैनी
थ्ग्ल्या लगया जींदगी मा
माया मेरी सब चोर लैगैनी
बिरला बाण रख्युं दूध भी
अब अंहकारी लोभ लैगैनी
कुछ भी णी राई यख भुल्हो
बची चीज सरकार लैगैनी
बीराणु बीराणु .......२ मुल्क मेरा बीराणु
बीराणु वहैगे बीराणु ........................

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

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मै बेटी हों

मन की नजर को खोलो
दिल को आपने टटोलो
किस लिये मै सहा रही
इतनी वेदना इतना दर्द
अब तो कुछ बोलो अब तो कुछ बोलो
मै बेटी हों तुम्हारी पिताजी
ना मुझे यों पराया करो
मै बेटी हों ....................

माँ से भी ज्यादा चाह मैने
पाप मेरे ना इस तरह नजर फेरो
मै भगवती तेरे घर की माता मेरी
मुझे ना तुम इस तरह कूड़े मै फैंको
९ माह गर्भ मै सींचकर मामी मेरी
जग मै आते ही ना तुम नाता तोड़ो
मै बेटी हों तुम्हारी पिताजी
ना मुझे यों पराया करो
मै बेटी हों ....................

अब भी याद आती है उस
९ माह की माता मेरी प्यारी
दूध की धारा भी ना छु पाई
तेरी अन्खीयाँ ऐ देख ना पाई
तेरे लिये मै कैसे होगई परायी
जग की तरहं तो होगई हरजाई
बाबा ने क्या तेरी ममता दबाई
किसको दो मै दुहाई किसको दो मै दुहाई
मै बेटी हों तुम्हारी पिताजी
ना मुझे यों पराया करो
मै बेटी हों ....................

जग देखा मैंने जिस दिन
वो लगा परया मेरे ईश्वर
कैसी है तेरी दुनिया कैसे लोग
जब मै ना रहूंगी इस विश्व
क्या तुझे पुजेंगें ऐ सब लोग
किस जीव्हा से तुझसे मांगेंगे लोग
बेटे के लालच मै मेरे प्रभु
ओर कितने बेटीयाँ मरेंगे ऐ लोग
देना आशीष मेरे पिता को
समझा देना बेटी से ही संसार रहेगा
ना ही तो यंहा ओर गुल ना खिलेगा
मै बेटी हों तुम्हारी पिताजी
ना मुझे यों पराया करो
मै बेटी हों ....................


मन की नजर को खोलो
दिल को आपने टटोलो
किस लिये मै सहा रही
इतनी वेदना इतना दर्द
अब तो कुछ बोलो अब तो कुछ बोलो
मै बेटी हों तुम्हारी पिताजी
ना मुझे यों पराया करो
मै बेटी हों ....................

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बीराणु

बीराणु बीराणु .......२ मुल्क मेरा बीराणु
बीराणु वहैगे बीराणु
मुल्की भी वहैगे बीराणु
अपरा भी वहैगे बीराणु
कीथै खोज्याणु वहालो
मनखी को आस कीथै खोज्याणु वहालो
बीराणु बीराणु .......२ मुल्क मेरा बीराणु
बीराणु वहैगे बीराणु ........................

कोई कैको णी राई
गढ़ देश मा अब भै मेरु
माया का झोला देखा
पुअडा ग्याई पुअडा ग्याई
नाती गोती भै बंद रिश्तेदारी सबकी सब
बीराणु बीराणु .......२ मुल्क मेरा बीराणु
बीराणु वहैगे बीराणु ........................

यखरा यखरा सब अब देखेंणी
दूधको ग्लास कखक लुकेणी
रुपयों का गोल गोल मा भुलोंहों
सब का सब मोल व्हैग्यानी
दगड़या दगडी सब छोडी गैनी
यख अब कोई णी रैणी
बीराणु बीराणु .......२ मुल्क मेरा बीराणु
बीराणु वहैगे बीराणु ........................

बाटा बाटा पोर रूडी गैनी
जीकोडी का खोला छुडी गैनी
थ्ग्ल्या लगया जींदगी मा
माया मेरी सब चोर लैगैनी
बिरला बाण रख्युं दूध भी
अब अंहकारी लोभ लैगैनी
कुछ भी णी राई यख भुल्हो
बची चीज सरकार लैगैनी
बीराणु बीराणु .......२ मुल्क मेरा बीराणु
बीराणु वहैगे बीराणु ........................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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ठीख ठाक

आज हर कुडा
भातैक एक आवाज आणी
बस रुणी रैंदी सुक सुक केकी
पुछाण जा जब रैबार कोइ
बस बुल्दी सब ठीख ठाक
ऐ गड़देश को हाल
बस ठीख ठाक ...............

चुप चाप होली वा
उजाड़ डंडा सजी बैठी होली वा
खैरी विपादा की पीड़ा मा
बंजा पुंगडा पडी वहली वा
यकुली यकुली नारी गढ़देशा की
पुछाण जावा हाल चाल
बस बताणद वा
बस ठीख ठाक ...............

डुबी टेहरी जणी
माया का दुःख मा डुबी वहाली वा
छुडीगै आँखों का लैट
लोड शैडिग चम चमकाण वहली वा
कभी लकलक कैकी
अंशु भैरी पुअडी जाल
तब जाकै को पुछालु
तब भी वा बुलाली
बस ठीख ठाक ...............

कण ऐ ठीख ठाक च
गढ़ देश उत्तराखंड मा
सब भैरा भीतर को णीच पर सब ठीख ठाक
ससारास मैत घर दूण सब बस ठीख ठाक
रीटा गढ़ ठीख ठाक
पलायन समयसा ठीख ठाक
बेटी बावरी ठीख ठाक
दारू की भट्टी सब ठीख ठाक
भुखी पोटी सब ठीख ठाक
अपरी खोटी ठीख ठाक
सरकार झूठी सब ठीख ठाक
चलणु कालू व्यापार सब ठीख ठाक
कण कैकी ठीख ठाक च रै भुल्हा
झट बुअडी की तो ऐजा
तो भी णी आणू सब ठीख ठाक
तब भी तुम बुलला
बस सब ठीख ठाक ...............

आज हर कुडा
भातैक एक आवाज आणी
बस रुणी रैंदी सुक सुक केकी
पुछाण जा जब रैबार कोइ
बस बुल्दी सब ठीख ठाक
ऐ गड़देश को हाल
बस ठीख ठाक ...............

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तुम साथ साथ मेरे

कुछ याद था कुछ भुल गया
तुम पास आयी तो सब याद आया
दूर गयी जब तुम सब भुल गया
सुरज उदय होआ यों साथ तेरे
साथ साथ तेरे ऐ दिन भी ढल गया
कुछ याद था कुछ भुल गया

जीवन से सकूंन तुझ से ही मीला
ऐ दिल का गुल तेरे संग ही खिला
बगीय ऐ दिल की तेरे संग महकी
बुलबल प्यार की तेरे साथ चहकी
चम्पा चमेली चारों ओर महकी
कुछ याद था कुछ भुल गया

तुम संगनी हो मेरी राहों की
तुम बंदगी हो मेरी निगाहों की
गीत बनकर मै तेरे लिये ही आया
बस तेरे अधरों पर गुन-गुनाया
बाँहों मै मै तेरे ऐसे ही समाया
कुछ याद था कुछ भुल गया

दुःख सुख के घेरे मैं जीवन के बेडे मै
तुम चली साथ साथ उस अंधेरे मै
दिल पुकारे तुम को दिल के फैरे मै
समाई हो सद अन्खीयों के डेरे मै
जुदा ना होना कभी इस खेले मै
कुछ याद था कुछ भुल गया

कुछ याद था कुछ भुल गया
तुम पास आयी तो सब याद आया
दूर गयी जब तुम सब भुल गया
सुरज उदय होआ यों साथ तेरे
साथ साथ तेरे ऐ दिन भी ढल गया
कुछ याद था कुछ भुल गया

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बाबा की डैर

बाबा जी गुस्सा देख
मी थै लगदी बड़ी डैर
बोई बोई बोल्दु मी आपरी
जीकोड़ी गेड वख खुल्दु मी
बाबा जी गुस्सा देख .................

तुम भी सुणा मेरी डैर
गढ़ देश को मी छों गेल
अब देखणा तुम ऐ चैल पैल
बाबा समण मेर छुटी रेल
बाबा जी गुस्सा देख .................

एक मी दोई भुली मेरी
वों दगडणा कभी बणी मेरी
बाबा की वा चुगालखैर
देर सबैर लगदी मेरी खैर
बाबा जी गुस्सा देख .................

कभी डाली छुप्युं मी
कभी कूल्हण मा लुक्युं मी
कभी आगील दमयु मी
कभी दोई लपट खायुं मी
बाबा जी गुस्सा देख .................

उछेदी मा मी आंकड़ा एक
पढाई मा शुन्य का ढेल
कभी णा गयाई बाबा को डैर
अब सुचणु क्या वहैगे देर
बाबा जी गुस्सा देख .................

जब हुग्युं एक नुँनु को बाप
तब ऐगे मीथै ऐगे बाबा की याद
तब जांण मील बाबा की माया
मिल सुधी बाबा थै बिसराया
बाबा जी गुस्सा देख .................

बाबा जी गुस्सा देख
मी थै लगदी बड़ी डैर
बोई बोई बोल्दु मी आपरी
जीकोड़ी गेड वख खुल्दु मी
बाबा जी गुस्सा देख .................

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कखक गै बोयै ?

अंख्युमा आँसुं ऐगै
अंख्युमा ऐकी आँसुं छेगै
खुद ऐगै बोई तेरी खुद ऐगै
दणमण आँसुं रुलैगै
तेर मुखडी याद ऐगै बोई तेर मुखडी याद ऐगै
अंख्युमा ऐकी आँसुं छेगै ..............

देख बहणा छण बोई
ऐ तेरा ही गहणा छण
टिप टिप कैकी पुडण छण
तैथै ही खुज्याण छण
तेर मुखडी याद ऐगै बोई तेर मुखडी याद ऐगै
अंख्युमा ऐकी आँसुं छेगै ..............

कखक लुकी बोई मेरी
कखक गयाई छोडी मीथै
टाप टपराण जीकोड़ी मेरी
लप लपका पुट्गी मेरी ऐजा ऐजा तो दुआडी
तेर मुखडी याद ऐगै बोई तेर मुखडी याद ऐगै
अंख्युमा ऐकी आँसुं छेगै ..............

आज मील खाणु बनाई
लता कपड़ा मील धुलाई
तैर याद ऐ ऐकी रुलैई
आवाज दैणु बोयै तो कखक गै झट ऐ बोई
तेर मुखडी याद ऐगै बोई तेर मुखडी याद ऐगै
अंख्युमा ऐकी आँसुं छेगै ..............

अंख्युमा आँसुं ऐगै
अंख्युमा ऐकी आँसुं छेगै
खुद ऐगै बोई तेरी खुद ऐगै
दणमण आँसुं रुलैगै
तेर मुखडी याद ऐगै बोई तेर मुखडी याद ऐगै
अंख्युमा ऐकी आँसुं छेगै ..............

बालकृष्ण डी ध्यानी
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शरीर चला जा राहा बस !!

मै जितना पास आता हों
ओ मुझ से उतना ही दूर चला जाता है
अपने आप को समझाता हों
पर समझ मै कुछ नहीं पाता हों
मै जितना पास आता हों

कैसा मोहा कैसी मया है की
मै बस खींचा ही चला जाता हों
अंधकार से उजाले की ओर या
उजाले से अंधकार बड़ा जा रहा हों
मै जितना पास आता हों

कुछ खबर नही कुछ डगर नहीं है
चला हों कीस लालसा को पाने
उसके लिये भी मुझे अब सब्र नहीं
कैसे मोहा जाला है मै धंसा जा राहा हों
मै जितना पास आता हों

पास था उसकी परख नहीं
दिल खिड़की है खुली पर दरक नहीं
विचारों का दरवाजा बंद किये
इस बंद कमरे मै चला जा राहा हों
मै जितना पास आता हों

मै जितना पास आता हों
ओ मुझ से उतना ही दूर चला जाता है
अपने आप को समझाता हों
पर समझ मै कुछ नहीं पाता हों
मै जितना पास आता हों

बालकृष्ण डी ध्यानी
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ठुमका
 
 देख देखा बांदा ऐ गढ़वाल
 कंण सजणी कंण लगाणी 
 लास्का ढस्का दगडी
 कंण चलणी  कंण हिटणी   
 देख देखा बांदा कंण हिटणी ................
 
 म्यार गढ़ देश की बांद
 बड़ी न्खरयाली ऐ बांद
 योंक ऐ न्खारयुं मा जीयु घ्याल
 क्या बुड्या क्या जावाँण
 योंका का ठुमका दिवाण
 तु भी लगा ठुमका का साथ ठुमका दीदा 
 देख देखा बांदा कंण हिटणी ................
 
 डोलकी की थाप
 पैर का घुन्गुरु की छम छम
 ली गड्वाली गीतों की धुन
 क्या संगीत गों चौक चौक माँ भुल्हा
 उंकी राष्याँण उंकी ध्स्याँण
 ओ या अंद हर-बार तियोहार
 म्यार संस्क्रती की पाछण
 तो भी नाच दीदा डोलकी बजा   
 देख देखा बांदा कंण हिटणी ................
 
 गर र र र र मारी गिरकी
 सबुका मुख लुँला तुअल छलकी
 कोई ऐ ढयां कोई वै ढयां लमडी
 बुआडा ल बुआडी को हाथ पकड़ी
 बुआडील  झट अपरू हाथ झटकी
 कंण सब थै  आपरू बाणद ऐ बांद
 म्यार लोगों थै रिझान्द हस्यंद
 दो घड़ी को प्रेम आनंद दी जंद ऐ बांद
 देख देखा बांदा कंण हिटणी ................
 
 देख देखा बांदा ऐ गढ़वाल
 कंण सजणी कंण लगाणी 
 लास्का ढस्का दगडी
 कंण चलणी  कंण हिटणी   
 देख देखा बांदा कंण हिटणी ................
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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गुब्बारे सा उड़ बैठा

खुद पै ही आज मै हंस बैठा
जीवन कैसे गुजरा मै बस बैठा
पलंग पर सोते सोते मै उठा बैठा
सपना मेरा जैसे अब कुछ कहा बैठा
खुद पै ही आज मै हंस बैठा ..............
गुब्बारे सा उड़ बैठा

चाँद सुरज को मैने बस देखा
सबेरे को मै यूँ ही बंद आँखों से छु बैठा
संध्या टहल टहल चली संग मेरे
रात को आगोश मै बस ले बैठा
खुद पै ही आज मै हंस बैठा ..................
गुब्बारे सा उड़ बैठा

राहों से कभी मै कभी बागों से गुजरा
ढलते सुरज की निगाहों से गुजरा
गलियों से देखा था कभी छत पर खड़े खड़े
आपने आप से यों ही बतीयाते होये
खुद पै ही आज मै हंस बैठा................
गुब्बारे सा उड़ बैठा

दोपहरी मै कभी पेड की छ्वों मै जा बैठा
कुऐं के पास प्यास सा मै आ बैठा
सितारों की कल्पना सागर पार कर बैठ
जीवन रूपी कविता को विराम अब मै दे बैठा
खुद पै ही आज मै हंस बैठा.................
गुब्बारे सा उड़ बैठा

खुद पै ही आज मै हंस बैठा
जीवन कैसे गुजरा मै बस बैठा
पलंग पर सोते सोते मै उठा बैठा
सपना मेरा जैसे अब कुछ कहा बैठा
खुद पै ही आज मै हंस बैठा
गुब्बारे सा उड़ बैठा

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