Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447838 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बस मी

बस मी खोव्ल्या रैगयुं
बस मी बोव्ल्या होगयुं
गीची खोव्ली खोव्ली की रहाई
मनखी बोव्ल्यु होग्याई
बस मी ....................

देख जमाण को चलण
मील णी टिकाण योंका समण
भीतर अपरा अपरी मी रूंयूँ
ह्युंद सी अब मी जमी गयुं
बस मी ....................

ना चडी मै पर यों की रंग
कंण होंयांचाण सब दांग
क्ख्क ग्याई क्ख्क लुकी ग्याई
सबैर ब्य्खोंण ईणी ग्याई
बस मी ....................

तसा खेली बीडी प्याई
सीप लगे थैली ऐगे
बाटल थैली की दारू पी
चड़गै नशा ऐ भरमंड
बस मी ....................

नशा कैकी सै सै सैकी की गै
पहडा रुलूं ढुंगा पर बरसे
कै कुल्हंण अब मी लुक्कै
जमाण बल क्ख्क को गै
बस मी ....................

बस मी खोव्ल्या रैगयुं
बस मी बोव्ल्या होगयुं
गीची खोव्ली खोव्ली की रहाई
मनखी बोव्ल्या होग्याई
बस मी ....................

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बात ही कुछ और चा

मयारू गढ़ देशा की दीदा
बात ही कुछ और चा ..२
सब ठीख ठख यख ....२ बल
सारा गढ़ नेता चोर चा
मयारू गढ़ देशा की .......

रुँतैला मुल्क मयारू
गड्वाला रयफल फौजचा
दस बरस बिरडी गैणी यख
राजधनी बल अब भी गैर चा
मयारू गढ़ देशा की .......

क्रांती होईं कभी यख भी
अब सीयँ सभी लोग चा
अपरा अपरी मा लाग्यां सब
टक्का की माया को भोगचा
मयारू गढ़ देशा की .......

देबता रूठी यख अबैर
टेहरी डूबी बल सबैर सबैर
प्रतापनगर छायूँ कंण अंधेर
बिजली भी गयाई अब की बेल
मयारू गढ़ देशा की .......

नेताओं ना रचाई ऐ खेल
जनता होयेगे रेल पैल
सौ बरसों बणी योजना
ना पहुंची अब भी गढ़ रेल
मयारू गढ़ देशा की .......

कुछ भी होंया यख भुल्हा
पहडा थै ना लगदी ठेस
हस्दु रुंदु रैंदु ऐ गढ़ वासी
कटे जंदु ऐ उमरी की बेल
मयारू गढ़ देशा की .......

मयारू गढ़ देशा की दीदा
बात ही कुछ और चा ..२
सब ठीख ठख यख ....२ बल
सारा गढ़ नेता चोर चा
मयारू गढ़ देशा की .......

बालकृष्ण डी ध्यानी
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किले वहाली बोई?

कैका बाटा हेरणी बोई
कैका बाण तु छे रोणी...२
को होलो ..२ आणु वाहलो बोई
उन्दारीयुं भातैक बोउडी
को होलो..२ आणु वाहलो............

सबैर ब्योखनी तो बैठी
तै आम की डाली की छेलु
भुखी तीसी होली तो माँजी
तो ईजा ऐजा ऐ अपरू घरु
को होलो..२ आणु वाहलो............

कुणी आणु च मेर बोई
ढुंगा कांडू का ऐ गढ़देश
हरी माया भोगी सब वख
हरी मायाणी जणी कैल यख
को होलो..२ आणु वाहलो............

कीले वहली जूंण झुराणी
किले वहाली माया लागणी
किले वहाली धीर बंधाणी
किले वहाली किले वहाली

कैका बाटा हेरणी बोई
कैका बाण तु छे रोणी...२
को होलो ..२ आणु वाहलो बोई
उन्दारीयुं भातैक बोउडी
को होलो..२ आणु वाहलो............

बालकृष्ण डी ध्यानी
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लुट पुट नेता

देख लुट पुट
मची ये गढ़ धनी मा
नेताओं की सयणी मा
घार दूँण की बाणी मा
देख लुट पुट.....................

जेलैबी जणच
ओ मुख का तलु मा
झट चुलह जंद
पर भ्यां णी आंद
वो की मेहरबाणी मा
देख लुट पुट.....................

वादा ओंका
उखली को मुशला जणी
चुनवा (उखली )मा कपाल जंद
थप पडी तब भैर णी अंद
देख लुट पुट.....................

पञ्च बरसा को बकासुर
खांद खांद पर थकी णी जंद
पञ्च बरसा बाद भुल्हों
ओं थै गढ़देशा की याद अंद
देख लुट पुट.....................

नेता दिशा ध्याणी
वों की झूठी वाणी जी
कखक भातैक आयां ऐ
यों की झूठी राजधनी जी
देख लुट पुट.....................

देख लुट पुट
मची ये गढ़ धनी मा
नेताओं की सयणी मा
घार दूँण की बाणी मा
देख लुट पुट.....................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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धन्यवाद आप के चित्र के लिये

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ना जुदा होना

अब अक्सर
तुम्हारी तस्वीरों से बातें करतें हैं
तनहाई मै
भी हम तुम से रूठते हैं
अब अक्सर .....................

दीवारों पर
लिखकर तेरा नाम
सुबह शाम
पैगाम अब भी तुझे भेजतैं हैं
अब अक्सर .....................

इस दिल मै
छुपा है जो तेरा नाम
वंही है मेरा मक़ाम
फिरता रहता हो वही पर मै
अब अक्सर .....................

ना जुदा होना तुम
मेरी परछाईयूँ से
देखता रहता हों यादों की
उन अंगडईयों से
अब अक्सर .....................

बेवफा तुम नहीं
वफ़ा ही नहीं थी उन राहों पै
चला था मै अकेला ही
अपनी बोझल आँखों से
अब अक्सर .....................

अब भी माध्यम रोशनी
आती है उन बीहड़ वीरानो मै
चला चलता हों उस रोशनी मै
फिर भी तुम्हे पाने को
अब अक्सर .....................

अब अक्सर
तुम्हारी तस्वीरों से बातें करतें हैं
तनहाई मै
भी हम तुम से रूठते हैं
अब अक्सर .....................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बीरालू सी माया
 
 मील सुधी ही बोली जी
 नोकारी छुडी तुम किले आयं जी
 छुंयीं मेर जीकोडी का जी
 अपरी जीकोडी मा णा लीयां जी
 मील सुधी ही बोली जी...........
 
 माया च मेरा ऐ माया जी
 ईल ही जीकोडी खोली जी
 मील कुछ भी णी बोली जी
 सब ईणी माया णी ही बोली जी 
 मील सुधी ही बोली जी..................
 
 अपरी अपरी मा लगीरायुं
 निर्भागी माया कैमाण बोली जी
 चुप रै सब का सब मा ऐ माया
 तुम दगडी ऐ माया बोली जी
 मील सुधी ही बोली जी..................
 
 मील सुधी ही बोली जी
 नोकारी छुडी तुम किले आयं जी
 छुंयीं मेर जीकोडी का जी
 अपरी जीकोडी मा णा लीयां जी
 मील सुधी ही बोली जी...........
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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गरीबी

गरीबी मार गयी
जींदा था कभी मेरे साथ वो
वो भी अब हार गयी
मंहगाई के चूल्हे पर वो वार गयी
सात फेरों पर भी वो मात दे गयी
गरीबी मार गयी ....................

राहा पर पडी धुल थी
अब उसे भी अब उड़ाले गयी
गुल तो मुरझा गया यूँ ही सनम
काँटों को भी वो देखो चुरा गयी
महीने हफ्ते अब हार श्नण रोला गयी
गरीबी मार गयी ....................

चलती थी कभी वो दूर कंही
अब इतने पास वो देखो आ गयी
पैजाम बैठाकर बैठ था कभी शाम को
अब मेरी निकार भी वो उतार गयी
शर्म थी कभी मुझे ही अब वो उत्तार गयी
गरीबी मार गयी ....................

आँखों सै अब वो चाट गयी
एक पैंसा दो पैसा चवनी भुला गयी
दल चावल रोटी को पुकारा गयी
बस भुके पेट अब वो मुझे सुला गयी
गरीबी अमीरी से अब हार गयी
गरीबी मार गयी ....................

गरीबी मार गयी
जींदा था कभी मेरे साथ वो
वो भी अब हार गयी
मंहगाई के चूल्हे पर वो वार गयी
सात फेरों पर भी वो मात दे गयी
गरीबी मार गयी ....................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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जी को रैबार

भरमंड ज्वार आई
खुद ओंकी दगड दगडी लाई
बीता उंण बातों की
बीता उंण दीण रातों की
रुलैगे रुलैगे ऐ अन्ख्न्युं थै जीकोडी मेरी

भरमंड ज्वार आई
खुद ओंकी दगड दगडी लाई
रुलैगे रुलैगे ऐ अन्ख्न्युं थै जीकोडी मेरी

ओंकी खुद रहैन्दी दगडी सदनी
आज किले आणी वा यकुली सी
याद ओंकी अंद आज भर भोरीकी
दवाई मा लगी माया टक टाकोरीकी

भरमंड ज्वार आई
खुद ओंकी दगड दगडी लाई
रुलैगे रुलैगे ऐ अन्ख्न्युं थै जीकोडी मेरी

कोणीच आज साथ कपाल
मसलाणा को वों का हाथ
दोई छुंयीं वा माया म्यार स्वामी की
को लगालु मेरा साथ आज

भरमंड ज्वार आई
खुद ओंकी दगड दगडी लाई
रुलैगे रुलैगे ऐ अन्ख्न्युं थै जीकोडी मेरी

साथ सदनी तुम रहंदा स्वामी
णा होंदी याणी कभी भी ऐ बात
तुम च मेर संजीवनी जीवन की
तुम दगडी च बस्युं मेरु प्राण

भरमंड ज्वार आई
खुद ओंकी दगड दगडी लाई
रुलैगे रुलैगे ऐ अन्ख्न्युं थै जीकोडी मेरी

च्खुला हेरे दादा च्खुला
भुली हीलंसा घुघूती मेरी
भेजी दे तेर दादा थै मेरु रैबार
तुम्हारी जी पडी च बीमार

भरमंड ज्वार आई
खुद ओंकी दगड दगडी लाई
रुलैगे रुलैगे ऐ अन्ख्न्युं थै जीकोडी मेरी

भरमंड ज्वार आई
खुद ओंकी दगड दगडी लाई
बीता उंण बातों की
बीता उंण दीण रातों की
रुलैगे रुलैगे ऐ अन्ख्न्युं थै जीकोडी मेरी

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ऊँचा अकाशा

सरग देखी ऐ ऊँचा अकाशा
भीर भीर गै ऐ मेरु माथा
लगी अब मी थै पाणी की प्यासा
बटा भरी दे दै पाणी ऐ माता
कब जुना की प्यास भुझाली हे विधाता
सरग देखी ऐ ऊँचा अकाशा ......................

थंडू मीठू पाणी मेर गढ़देश को
अब प्यास बुझली क्या मेर माता
तिसलू शरीर तिशलु पराण
वख घाम भातैक ध्याड़ी कैकी मी आणु
थ्क्युन्चुं मी अब बल सुस्ताणु
सरग देखी ऐ ऊँचा अकाशा ......................

जाखा देख वख बांज पड़यूँच
क्या पुंगडा क्या डंडा क्या घारा
गढ़देशा लगणु आज तिशालु
गड्नीयाँ रुलाँ सुखी गेंणी हे सारु
पाणी की गठरी कब खुलेणी
सरग देखी ऐ ऊँचा अकाशा ......................

भुखी तीसी मेर लादुऔडा
कख्क भरण अब मील जर मील सोची
ये सुच्यांण सुच्यांण मा सारी
उमरी ईणी ही चली गईणी
मी दोई घोंट पाणी को शांत णी पीणी
सरग देखी ऐ ऊँचा अकाशा ......................

सरग देखी ऐ ऊँचा अकाशा
भीर भीर गै ऐ मेरु माथा
लगी अब मी थै पाणी की प्यासा
बटा भरी दे दै पाणी ऐ माता
कब जुना की प्यास भुझाली हे विधाता
सरग देखी ऐ ऊँचा अकाशा ......................

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पिया मै परछायी

परछायीयों का अहसास हो मै
खामोशीयों की बरसाता हो मै
गिर गिर छाये ..२ मनवा बदरवा
पिया करन आयी तोसे बात हो मै
परछायीयों का अहसास................

झीलमील सितारों की ऐ रात हो मै
माध्यम दमकता दूर वो चाँद हो मै
बद्ली ओढे तुमको लिये पिया मै
घूँघट सा सरकता वो अफ्ताबा हो मै
परछायीयों का अहसास ................

रेतों पर उभरती लकीर हो मै
चिलमीलती धुप के ढलने के साथ हो मै
संध्या मै छुप जओंगी इस तरह पिया मै
विहंगों भर होगा वो अकाशा हो मै
परछायीयों का अहसास ................

ओस की ठंडी बुंद पत्तों पर बनबनकर
मन मै उगता होआ पिया सुरज हों मै
मन तन छालक जाओंगी इस तरहं पिया मै
मै तेरी जीवन संगनी बस परछायी हो मै
परछायीयों का अहसास................

परछायीयों का अहसास हो मै
खामोशीयों की बरसाता हो मै
गिर गिर छाये ..२ मनवा बदरवा
पिया वो करन आयी तोसे बात हो मै
परछायीयों का अहसास................

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