Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447838 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गढ़ बरखा
 
 घिर घिर की ऐ बरखा
 च्खाल पखाल कैगै बरखा   
 एक सर पडी डंडों पुँर तक
 सब चीखलाणु कैगै बरखा   
 घिर घिर की ऐ बरखा ...................
 
 सबथै घिर भीर कैगै बरखा   
 भिजलाणु माया दैगै बरखा
 हरयालो मन बसेगै बरखा
 जीकोडी तिस जगगै बरखा
 घिर घिर की ऐ बरखा ...................
 
 कण ऐ तो कण चलगै बरखा
 म्यार गढ़ देशा की तो छे बरखा
 एक धार पाडीकी ऐ बरखा
 कण झट तो रुअडी गै बरखा
 घिर घिर की ऐ बरखा ...................
 
 दाणा लोगों थै भरमीगै बरखा
 कण मुंडा मारयु ऐ बरखा की बल
 इत्गा पुडणा बाण तो किले ऐ बरखा
 बस झोला पडी सर चलीगै बरखा 
 घिर घिर की ऐ बरखा ...................
 
 घिर घिर की ऐ बरखा
 च्खाल पखाल कैगै बरखा   
 एक सर पडी डंडों पुँर तक
 सब चीखलाणु कैगै बरखा   
 घिर घिर की ऐ बरखा ...................
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
 मेरा ब्लोग्स
 http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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"कुहलण"
 
 क्या धलुयांचा
 क्या वख पड़युंचा 
 ऐ माटा का कुडा मा 
 ऐ उम्भार  भीतरा ............
 
 वख को बैठ्युं वहाली
 वख को दमीयुं वहाली
 वख कैकी माया वहाली
 वख को  रुणु वहाली
 ऐ उम्भार  भीतरा ............
 
 वा हेरती आंखी वा
 मनखी बोलती बत्ती वा
 कुहलण छीपी दीण राती वा
 यकुली रहाई बाछी वा
 ऐ उम्भार  भीतरा ............
 
 मया च मेर माया वा
 मेर माया की छ्या च वा
 कबैर घाम कबैर सैलूमा गढ़ मा
 कबैर बैठी वहाली वा कुहलण मा 
 ऐ उम्भार  भीतरा ............
 
 क्या धलुयांचा
 क्या वख पड़युंचा 
 ऐ माटा का कुडा मा 
 ऐ उम्भार  भीतरा ............
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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"कुहलण"
 
 क्या धलुयांचा
 क्या वख पड़युंचा 
 ऐ माटा का कुडा मा 
 ऐ उम्भार  भीतरा ............
 
 वख को बैठ्युं वहाली
 वख को दमीयुं वहाली
 वख कैकी माया वहाली
 वख को  रुणु वहाली
 ऐ उम्भार  भीतरा ............
 
 वा हेरती आंखी वा
 मनखी बोलती बत्ती वा
 कुहलण छीपी दीण राती वा
 यकुली रहाई बाछी वा
 ऐ उम्भार  भीतरा ............
 
 मया च मेर माया वा
 मेर माया की छ्या च वा
 कबैर घाम कबैर सैलूमा गढ़ मा
 कबैर बैठी वहाली वा कुहलण मा 
 ऐ उम्भार  भीतरा ............
 
 क्या धलुयांचा
 क्या वख पड़युंचा 
 ऐ माटा का कुडा मा 
 ऐ उम्भार  भीतरा ............
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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पिया मै परछायी
 
 परछायीयों का अहसास हो मै
 खामोशीयों की बरसाता हो मै
 गिर गिर छाये ..२ मनवा बदरवा
 पिया करन आयी तोसे बात हो मै
 परछायीयों का अहसास................
 
 झीलमील सितारों की ऐ रात हो मै
 माध्यम दमकता दूर वो चाँद हो मै
 बद्ली ओढे तुमको लिये पिया मै
 घूँघट सा सरकता वो अफ्ताबा हो मै
 परछायीयों का अहसास ................
 
 रेतों पर उभरती लकीर हो मै
 चिलमीलती धुप के ढलने के साथ हो मै
 संध्या मै छुप जओंगी इस तरह पिया मै
 विहंगों भर होगा वो अकाशा हो मै
 परछायीयों का अहसास ................
 
 ओस की ठंडी बुंद पत्तों पर बनबनकर
 मन मै उगता होआ पिया सुरज हों मै
 मन तन छालक जाओंगी इस तरहं पिया मै
 मै तेरी जीवन संगनी बस परछायी हो मै
 परछायीयों का अहसास................
 
 परछायीयों का अहसास हो मै
 खामोशीयों की बरसाता हो मै
 गिर गिर छाये ..२ मनवा बदरवा
 पिया वो करन आयी तोसे बात हो मै
 परछायीयों का अहसास................
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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पगडंडीयां

याद तुम्हे जब आती होगी
हरपल वो सताती होगी
बैचैन कर जाती होगी
अकेले अकेले आंखें भीगाती होगी
वो छुटी पगडंडीयां जब बुलाती होंगी
गावं की याद आ जाती होगी .............

तेडे मेडे जब चलता था
तेडे मेडे पथ पर सहरा लेकर
उन हाथों को क्यों भुला
बड़ा होआ उन राहों पर चलकर
अब भी छुपी होगी याद कंही छुटी
बचपन उन पगडंडीयां पर
वो छुटी पगडंडीयां जब बुलाती होंगी
गावं की याद आ जाती होगी .............

श्नण प्रतिश्नण तेरा गुजरा यंहा
पल पल तेरा जो अपना छुटा यहं
बढता जो गया रिश्ता छुटता गया
पगडंडी जो जाती थी घर तक
उससे ही तो आज दूर हो गया
कभी तो उस घर की यादा आती होगी
सपनों मे तुम्हे वो लै जाती होगी
जवानी नै छुटी वो पगडंडी
गावं की याद आ जाती होगी .............

याद तुम्हे जब आती होगी
हरपल वो सताती होगी
बैचैन कर जाती होगी
अकेले अकेले आंखें भीगाती होगी
वो छुटी पगडंडीयां जब बुलाती होंगी
गावं की याद आ जाती होगी .............

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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हे भुल्हा गड्वाली
 
 हे भुल्हा गड्वाली ..........२
 कखक छे तो भुल्हा गड्वाली
 धन मेरा भुल्हा गढ़वाली
 क्या करदू भुल्हा गढ़वाली
 छुडी की ऐ गढ़वाला 
 हे भुल्हा गड्वाली ..........२
 
 कख्क छे गढ़ को भग्याविधात
 कख्क लैकी गै ऐ गढ़ को भाग
 ऐ भूलह गढ़वाली बोल भुल्हा गढ़वाली
 कै बाटा गै तो परती णी ऐ
 हे भुल्हा गड्वाली ..........२
 
 कंण छे तो कंण तेरु कमा 
 जुगराज रै छुडी की ऐ धमा   
 गढ़ देश की याद तीथै कभी ऐ
 हम थै रूलेगै सबैर शामा
 हे भुल्हा गड्वाली ..........२
 
 चौक तै डंड्ली बोलाण छिण
 वो हौज वा तिबारी बोलाण छिण
 तो बिसरी गै होलो भुल्हा गढ़वाली
 म्यार दगडी सब ती थै  ध्यै लगाण छिण
 हे भुल्हा गड्वाली ..........२ ]
 
 हे भुल्हा गड्वाली ..........२
 कखक छे तो भुल्हा गड्वाली
 धन मेरा भुल्हा गढ़वाली
 क्या करदू भुल्हा गढ़वाली
 छुडी की ऐ गढ़वाला 
 हे भुल्हा गड्वाली ..........२
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बात ही  कुछ  और  चा
 
 मयारू गढ़ देशा की  दीदा
 बात ही  कुछ  और  चा ..२
 सब ठीख ठख यख ....२ बल
 सारा गढ़ नेता चोर चा
 मयारू गढ़ देशा की .......
 
 रुँतैला मुल्क मयारू
 गड्वाला रयफल फौजचा
 दस बरस बिरडी गैणी यख
 राजधनी बल अब भी गैर चा     
 मयारू गढ़ देशा की .......
 
 क्रांती होईं कभी यख भी
 अब सीयँ सभी लोग चा
 अपरा अपरी मा लाग्यां सब
 टक्का की माया को भोगचा
 मयारू गढ़ देशा की .......
 
 देबता रूठी यख अबैर
 टेहरी डूबी बल सबैर सबैर
 प्रतापनगर छायूँ कंण अंधेर
 बिजली भी गयाई अब की बेल
 मयारू गढ़ देशा की .......
 
 नेताओं ना रचाई ऐ खेल
 जनता होयेगे रेल पैल
 सौ बरसों बणी योजना
 ना पहुंची अब भी गढ़ रेल 
 मयारू गढ़ देशा की .......
 
 कुछ भी होंया यख भुल्हा
 पहडा थै ना लगदी ठेस
 हस्दु रुंदु रैंदु ऐ गढ़ वासी
 कटे जंदु ऐ उमरी की बेल
 मयारू गढ़ देशा की .......
 
 मयारू गढ़ देशा की  दीदा
 बात ही  कुछ  और  चा ..२
 सब ठीख ठख यख ....२ बल
 सारा गढ़ नेता चोर चा
 मयारू गढ़ देशा की .......
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
‎"मी छुं उत्तराखंडी"

मी छुं ध्यानी मी छुं उत्तराखंडी
गढ़ देश गढ़वाल को मी छुं उत्तराखंडी
मेर मया देश उत्तराखंड को मी उत्तराखंडी
म्यार भारत विशला को मी छुं उत्तराखंडी
मी छुं उत्तराखंडी मी छुं उत्तराखंडी
अब भुल्हा नेगी अब दादा देवरानी
अब तुम भी बोला तुम भी मी छों उत्तराखंडी
बोला बिस्टा जी बोला शर्मा जी
सब मिलकेकी बोलाल मी छों उत्तराखंडी

देखा डंडा कंडा भी बुल्दाण
ऊँचा डाला देवदार का भी बुल्दाण
झुमैला बयार भी कहदाण
घुघती हिलांस भी बुल्दाण
हम छों उत्तराखंडी हम छों उत्तराखंडी
दिदो भंडरी अब तुम भी बुला
ऐ रावत जी तुम किले चुप बैठ्याँ
देख शर्मा जी बुल्दा अब
की हम भी छों उत्तराखंडी

घार दार गौं गौठ्यार चौक बीच बाजार
तिबारी डड्ली भैर भीतर
अल छाल पल छाल मैला खोला तैला खोला
अल्मोड़ा, उत्तर काशी ,ऊधम सिंह नगर
चंपावत,चमोली,टिहरी,देहरादून,नैनीताल
पिथौरागढ़,पौड़ी,बागेश्वर,रूद्रप्रयाग,रामपुर
हरिद्वार सब बुलणा छीण ध्यानी
हम छों उत्तराखंडी हम छों उत्तराखंडी

बेटी बावरी एक साथ
नानाह भुलह दाणा बुढया बोड़ी बोला
देब्ताओं की भी अब लगी हाक
हीमला भी गरजी उत्तराखंड आज
देख बोलायाली बद्री-केदार को धाम
गंगा माँ बोगणी सब का मन मा विचार
केले वहालो तो अब विचार
सब मिल्की बोलाल हम उत्तराखंडी हम छों उत्तराखंडी

मी छुं ध्यानी उत्तराखंडी
गढ़ देश गढ़वाल को मी छुं उत्तराखंडी
मेर मया देश उत्तराखंड को मी उत्तराखंडी
म्यार भारत विशला को मी छुं उत्तराखंडी
मी छुं उत्तराखंडी मी छुं उत्तराखंडी
अब भुल्हा नेगी अब दादा देवरानी
अब तुम भी बोला तुम भी मी छों उत्तराखंडी
बोला बिस्टा जी बोला शर्मा जी
सब मिलकेकी बोलाल मी छों उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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मोक्ष अवरुद !!
 
 ना कोई गुरु यंह
 ना कोई शिष्या यंह
 बस बाजार लगा है माया का
 खुद को खुद से तो बेच रहा यंहा
 
 जंह जाऊं वंहा तो दिखे
 इस अंतर मन मै अब तो ही हंसें
 भगवे रंग मै तो खुब अब सजै
 धर्म का रंग कपड़ों पर अब चडे
 जंह जाऊं वंहा तो दिखे............
 
 भीड़ ही भीड़ देखो खुब जमै
 सदगुरु मगर ना कंही मीले
 जादुगर ने खुब जादु दिखया
 माया ने मुझे और  भरमाया
 जंह जाऊं वंहा तो दिखे.................   
 
 आज मुझे भी मया ने हंसाया
 मोक्ष का मार्ग मुझे बिसराया
 भौतिक सुख पाने को ल्लच्या
 आलोकिक सुख मुझसे दुर भगाया 
 जंह जाऊं वंहा तो दिखे.................   
 
 मन रावण तन रावण आज
 जंह देखों वँह रावण खडा आज
 खुद के भीतर छुपा रावण के अंत को
 प्रभु श्री राम को बुलाओं कंह
 जंह जाऊं वंहा तो दिखे.................   
 
 ना कोई गुरु यंह
 ना कोई शिष्या यंह
 बस बाजार लगा है माया का
 खुद को खुद से तो बेच रहा यंहा
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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"मी छुं उत्तराखंडी"
 
 मी छुं ध्यानी मी छुं उत्तराखंडी
 गढ़ देश गढ़वाल को मी छुं उत्तराखंडी
 मेर मया देश उत्तराखंड को मी उत्तराखंडी
 म्यार भारत विशला को  मी छुं उत्तराखंडी
 मी छुं उत्तराखंडी मी छुं उत्तराखंडी
 अब भुल्हा नेगी अब दादा देवरानी
 अब तुम भी बोला तुम भी मी छों  उत्तराखंडी
 बोला बिस्टा जी बोला शर्मा जी
 सब मिलकेकी बोलाल   मी छों  उत्तराखंडी
 
 देखा डंडा कंडा भी बुल्दाण 
 ऊँचा डाला देवदार का भी बुल्दाण 
 झुमैला बयार भी कहदाण
 घुघती हिलांस भी बुल्दाण 
 हम छों उत्तराखंडी हम छों उत्तराखंडी
 दिदो भंडरी अब तुम भी बुला
 ऐ रावत जी तुम किले चुप बैठ्याँ
 देख शर्मा जी बुल्दा अब
 की हम भी छों उत्तराखंडी
 
 घार दार गौं गौठ्यार चौक बीच बाजार 
 तिबारी डड्ली भैर भीतर
 अल छाल पल छाल मैला खोला तैला खोला
 अल्मोड़ा, उत्तर काशी ,ऊधम सिंह नगर
 चंपावत,चमोली,टिहरी,देहरादून,नैनीताल
 पिथौरागढ़,पौड़ी,बागेश्वर,रूद्रप्रयाग,रामपुर
 हरिद्वार सब बुलणा छीण ध्यानी 
 हम छों उत्तराखंडी हम छों उत्तराखंडी
 
 बेटी बावरी एक साथ
 नानाह भुलह दाणा बुढया बोड़ी बोला
 देब्ताओं की भी अब लगी हाक
 हीमला भी गरजी उत्तराखंड आज
 देख बोलायाली बद्री-केदार  को धाम
 गंगा माँ बोगणी सब का मन मा विचार 
 केले वहालो तो अब विचार
 सब मिल्की बोलाल हम उत्तराखंडी हम छों उत्तराखंडी
 
 मी छुं ध्यानी उत्तराखंडी
 गढ़ देश गढ़वाल को मी छुं उत्तराखंडी
 मेर मया देश उत्तराखंड को मी उत्तराखंडी
 म्यार भारत विशला को  मी छुं उत्तराखंडी
 मी छुं उत्तराखंडी मी छुं उत्तराखंडी
 अब भुल्हा नेगी अब दादा देवरानी
 अब तुम भी बोला तुम भी मी छों  उत्तराखंडी
 बोला बिस्टा जी बोला शर्मा जी
 सब मिलकेकी बोलाल   मी छों  उत्तराखंडी
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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