September 20
एक गढ़वाली कवी की कविता
कविता मेरी सारी चुष्णा पर, ध्यान लगावा सुणण मा !
सूणदा छा त टक लग्यै की, नी सुणदै त चुष्णा मा !!
बडो फरक च ये चुष्णा कु, भेद समझण सुणणा मा !
कना-कनो की 'मौ' चली ग्यैन, चूषणे, चूषणम, चुष्णा मा !!
चुष्णा आंदु काम हमारा, जांण तलक सी हूणा सी !
कोर्ट कचहरी दफ्तर जथ्गा, मुहर च लगदी चुष्णा की !!
गुरु द्रोरण भी जांणदा छाया, बिकट शक्ति तै चुष्णा की !
एकलव्य सी गुरु भेंट मा, मांगी तौन चुष्णा ही !!
चूषणे कविता लेखी पुगडा मा, रेग्यु कलम घुष्णI मा !
ऐग्ये बरखा, रुझी गे कागज़, कविता चली गे चुष्णा मा