Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527603 times)

Bhishma Kukreti

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असल्यात

(म्यार मनण च बल गढ़वळि व्यंग्य (चबो ड्या ) कविता मा द्वी धारा छन एक धारा  च डंडरियाळ वादी याने  जिकुडेळि  अर हैंक च बहुगुणावादी याने दिम्ग्या . डंडरियाळ वादी या जिकुडेळि चखन्योर्या कविता जिकुड़ी  या हृदय से निकळदन  जब कि दिम्ग्या या बहुगुणा वादी मा बुद्धि क आसरा जादा हूंद. बहुगुणावादी याने दिम्ग्या कवियुं मा कवि वौद्धिक  स्तर पर कवितौं तै लिजाण चाँद अर यां से कविता आम जनता से थ्वडा दूर बि ह्वाऊ त कवि फिर बि खुश च. पूरण पंत जी बि बौद्धिक व्यंग कवि च  अर कविता जन्माण मा बुद्धि तै जादा महत्व दींद. अर याँ से पंत की कवितौं तै समझणो बान बंचनेर  तै एक ख़ास बौद्धिक मानसिकता क स्तर पर जाण जरूरी च. अलंकारों से सजीं तौळै  कविता म्यार गढ़वळि व्यंग्यात्मक कवितौं भेद कु सबूत  च. -भीष्म कुकरेती] 


कवि -पूरण पंत पथिक
                -------------
 हमारा घार ऐल्या दगडम   हम कुणि क्या  ल्हैल्या जी
 तुम्हारा घार  औंला तब तुम हम सणि  क्या देल्या जी .
                             
 अपनों तमखू -साफी दगडम  अग्यल  पट्टा   लौंला जी
   एक अद्धा ठर्रा खीसाउन्द तुमारा उबरम  प्योंला जी .

   छुयुंक   की  कचबोळि बणौला  चटणी होलि हैकै निंदा कि जी

         ठुंगार कैतैं नंगी करला हम्वी सच्चा बन्दा

       लगढ़या हम छां दगड्या   वैका भूढ़ा-पकोढ़ा-स्वाळा  जी
    जो न हमसणि  सेवा लगालो वेका बल्द ख्वाला जी .

    हमारी भैंसी पक्वाडी हग्दन तुमारी भैंसी मोळ  जी
  जब तक  हम वित्वळदा  माछ  तब तक  तुम लगावा झौळ  जी .               
              @ पूरण पन्त पथिक देहरादून 

Bhishma Kukreti

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गढ़वाळी कविता-*****जुगराज रयाँ भग्यान****

       कवि- डॉ नरेन्द्र गौनियाल

जुगराज रयाँ भग्यान
ऊ सबि, जु अबी बि   
गौं मा रैकि
खेती-पाती कना छन
हैळ लगैकी
पहाडे धरती तै
हैरी-भैरी रखणा छन
 नवल़ा-धारों बिटि
पाणि ल्याणा छन
बणों मा गोर-बखरा चरांद
बंसुली बजाणा छन 
छ्वै लगैकी
लारा धूणा छन
भ्यूंल कु गाळण बणेकि
मुंड धूणा छन
जु दाना-दीवाना
अग्यलु जल़ेकि
आग पळचाणा छन
भैयाँ चिलम बणाणा छन
 कुटणा छन पिसणा छन
गोर-गोठ करणा छन
नौना पिट्ठू-गुलीडंडा ख्यलणा छन
नौनि बट्टा-गिट्टा ख्यलणा छन

जु बैद अबी बि
जड़ी-बूटी,चूरण-काढ़ा दीणा छन
जु औजी अबी बि
लारा सिलणा छन
ढोल बजाणा छन,चैत मंगणा छन
 जु रुडिया अबी बि
बांस-रिंगाळ कि कंडी
सुप्पी-ड्वलणि बणाणा छन
जु कोळी अबी बि
क्वलड़ा मा राडू-लया अटेरणा छन
जु लुहार अबी बि
अणसेल़ा मा कुटल़ा-दथड़ा पल्य़ाणा छन
जु नौनि-नौना
फुल संगरांद का दिन फूल ख्यलणा छन
 जें दादी का कंदुड़ा मा
मुरख्ला-मुंदड़ा छन
जें ब्वे का गौलुन्द हंसूळी
हाथों मा चांदी का धगुला छन
जें तिबारी मा अबी बि
बीरा भैणि अर सात भयों कि कथा लगणी छन
जु अबी बि थड्या-चौफुला लगाणा छन
जु अबी बि कंडाळी कु साग
मंडुवा कु टिक्कड़ खाणा छन 
जु प्रवासी रिटैर हूणा का बाद हर्बि
अपणी मातृभूमि पहाड़ मा आणा छन

     डॉ नरेन्द्र गौनियाल .सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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एक गढ़वाळी कविता -*******धाद*******

    कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

जागि जा
उठि जा
रात पुरेगे
बियण्या ऐगे
उज्यल़ू ह्वैगे
जु उठिगे
वैन पै
जु सियूँ रैगे
वैन ख्वै
सियाँ रैकि
सिर्फ
स्वीणा नि द्याखा 
जागि जा
उठि जा
अपणु हक़ ल्या
हैंका हक़ द्या

बुरा कि ना
भला कि हाँ
अत्याचार कु विरोध
सदाचार कु समर्थन
संगठन कि ताकत
अभ्यास कि योग्यता
लगन कि क्षमता
एकटक ध्यान कि सफलता

लगि जा
काम-धंधा पर
उठि जा
जागि जा
यी च रैबार
यी च फ़रियाद
यी च सौगात
यी च धाद
  डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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***********जै भारत जै उत्तराखंड ********

             कवि- डॉ नरेन्द्र गौनियाल

जै भारत जै उत्तराखंड,
चोरों का राज मा डंड ही डंड.
नौकरी-चाकरी फुंड ही फुंड,
लगी भली बि उतणदंड.

बात विकास की दूर ही दूर,
तुष्टिकरण मा हुयाँ छें चूर.
भ्रष्टाचार मा घुंडा-घुंड,
सत्ता मद मा हुयाँ छें टुन्ड.

हाथी का दांत दिखाणा का,
भितर वल़ा छें खाणा का.
आतंकी घुसेणा झुंडा-झुंड,
लड़दा-भिड़दा फ़्वड़दा मुंड.

घुसपैठी विदेशी आणा छन,
कमजोर देश तै करणा छन.
भितर घुस्यां छन कूणा-कूण,
अपणा धर्याँ छन बूणा-बूण.

कबी जात-पात की बात कना,
कबी सम्प्रदाय की बात कना.
समाज च हूणू डुंडा-डुन्ड,
राष्ट्रवाद ह्वै फुंडा-फुंड. 

कबी देश मा आलो रामराज,
धर्मी मन्खी तै मीललो ताज.
दुश्मन भाजला फुंड ही फुंड,
मारि की खतला मुंड ही मुंड.  जै भारत० 

     डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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अपसंस्कृति क परेशानी दर्शांदी बालेन्दु बडोला कि गढ़वळि कविता

     बालेन्दु बडोला गढ़वळि साहित्य मा आधुनिक कथौं अर लोक कथों संकलनऔ बान जादा जणे जान्दन. ओबालेंदु जीन कविता बि गंठेन. ईं कविता मा बडोला जे सांस्कृतिक  गिरावट कि बात करणा छन अर कविता मजक्या अर चबोड्या  भौण  मा च. एकी शब्द का द्वी अर्थ वळी या कविता चिरडांदि बि च, हसांदि  बि च अर ए मेरा बुबा सिखांदी बि च . या च बडोला जी की करामत. कविता छन्दहीन  भौण मा च 


लवलीन

कवि: बालेन्दु बडोला


बुबा निकज्जू पहाड़ पर

भगती मा लवलीन,

अर छोरा देहरादून मां,

कै छोरी का लव-लीन

गहर- गिरस्ती , संस्कृति समाज -

देस, फर्ज भूल गीन

इन म्वार यूँ 'लवलीन' कु

कि कख जाणा अब मीन   

Copyright @ Balendu Badola, Ghimndpur, Bhabhar, Kotdwaar

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Vijendra Rawat
नोट----यह कविता मैंने तब लिखी थी जब 12वी क्लास में मेरे साथ पढ़ने वाला मेरा एक मित्र घर में तंग हाली के कारण बिना परीक्षा दिए घर से नौकरी के लिए कहीं शहर भाग गया था और फिर आज तक नहीं लौटा और उसकी आजतक कोई खोज-खबर भी नहीं है...उसकी बूढी माँ आज भी उसके लिए आंसू बहा रही है.....उसी समय आज के करीब 30 साल पहले मैंने एक कविता लिखने का प्रयास किया था..कविता कि कुछ पंक्तिया आज भी मुझे याद है....एक लम्बे अंतराल के बाद काफी कुछ बदला पर पहाड़ के लिए उन पंक्तियों के अर्थ नहीं बदले!!

----उत्तराखंड बनाम पहाड़.
थके पंखों की गर्म हवा, गरम लू का प्रहार,
तब उनको याद आती है इसकी सिर्फ वर्ष में एक बार.
उत्तराखंड, जो शान्ति का पुंज है पर इसमे अशांत चहरे तैनात हैं.
गंगा- यमुना जिनको छोड़ के प्यासे, छुप-छुपकर बह ज़ाती है.
मां, बच्चे के लिए जहां, लोरी के बदले अश्रु बहाती है.
रोटी, जहां बच्चों को शहरों की गलियों में भटकाती है.
सूनी आँखों में इंतजार भर मां-बहिने रात बिताती हैं.
सूखा, आपदा व गरीबी जगान नित मारती है क्रूर दहाड़.
अधखिली कलियाँ ही मुरझा जाती है,
वही है उत्तराखंड बनाम पहाड़...................!!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जनता की दुई तरफ हार चा .......
BY- शैलेन्द्र जोशी

चुनों दा अंदा बद्री बोलंदा
आपदा विपदा कख हर्चीं जांदा
कांग्रेश की ठीक नि नीयत
बुबा की कुर्शी मा बेटा साकेत
यी लोक तंत्र च या राज तंत्र
देशकी राजनीती मा बात होनी विकल्प
पर यी दुई नोऊ छन विफल
वोट देन भै कै दल
जनता टिरी क्या पूरा भारत मा लाचार चा
जनता की दुई तरफ हार चा

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उनके गीतों और रचनाओं में समाता उत्तराखंड,
उनकी अभिव्यक्ति में निर्विकार पहाड़ी जीवन
हर शब्द में झलकती उत्तराखंडी संस्कृति
सुर में पहाड़ की वेदना
ताल में दर्द
प्रखर उत्तराखंडी आवाज
जिस आवाज से
हडकंप मचता राजसत्ता में
कुशासन की कुर्सी हिलती
उस कंठ से निकलती
माँ बेटियों की संवेदनाएं
प्रेमी दिलों की चंचलता
दिखता मनमोहक उत्तराखंडी छटा का विह्ंगम दृश्य
किस ओर उनकी नजर नहीं जाती
कण कण में होते क्षण क्षण में होते
हर जगह व्याप्त उनकी उपस्थिति
ऊँचे हिवांली काठियों में
रोंतेली घाटियों में
कल कल करती श्वेत गंगा यमुना के प्रवाह में
बिपुल पहाड़ी गाँव में विचरण करती लय
सुरों से सुमन खिलते जवान दिलों में
फिर अठ्लेलियाँ लेता बूढा जीवन
झूम उठती माँ की ममता
हे गढ़ पुरुष उत्तराखंडी शिरमोर
तुझे कोटि कोटि प्रणाम

Poem by बलबीर राणा
१४ सितम्बर २०१२

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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September 20
एक गढ़वाली कवी की कविता

कविता मेरी सारी चुष्णा पर, ध्यान लगावा सुणण मा !
सूणदा छा त टक लग्यै की, नी सुणदै त चुष्णा मा !!

बडो फरक च ये चुष्णा कु, भेद समझण सुणणा मा !
कना-कनो की 'मौ' चली ग्यैन, चूषणे, चूषणम, चुष्णा मा !!

चुष्णा आंदु काम हमारा, जांण तलक सी हूणा सी !
कोर्ट कचहरी दफ्तर जथ्गा, मुहर च लगदी चुष्णा की !!

गुरु द्रोरण भी जांणदा छाया, बिकट शक्ति तै चुष्णा की !
एकलव्य सी गुरु भेंट मा, मांगी तौन चुष्णा ही !!

चूषणे कविता लेखी पुगडा मा, रेग्यु कलम घुष्णI मा !
ऐग्ये बरखा, रुझी गे कागज़, कविता चली गे चुष्णा मा

 

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