Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527611 times)

Bhishma Kukreti

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मदन डुकलाण कि गढवाळि गजल

[ गढ़वळि  गजल विधा तै अग्वाडि बढ़ाणम मदन डुकलाण क काम भौत इ जादा च . मदन डुकलाण कि गजलों खासियत या च बल यूँ गजलों मा पहाड़ क सरोकार  त होंदी छन दगड मा गजलूं  पर गढवळी छाप पुरी तरां से रौंद. फिर गजलूं मा एक तीस हूंद ,  एक टीस हूंद; , रूमानियत हूंद, एक तरलता हूं, एक बौगाण (बहाव) हूंद .मदन कि  हरेक गजल बंचनेर तै चौन्कांदी जरूर च अर पाठक तै घड्याणो /सोचणो मजबूर करदी . कबीर कु उलटवासी या विरोधाभास दिखणायि त ल्याओ मदन डुकलाण कि गजल बाँचो  - भीष्म कुकरेती ]

  मिल त वो अपणो जीवन इनी भ्वाग भैजी

बचपन रौ नांगो  जवानी पसिना मा बौग भैजी I

अर जैका बान  मिल यो जोगी को भेष धारो

वो भी कबि णि मीलो , छौ मेरो भाग भैजी

जै बि दै गास-गफ्फा, वी बिल्कदों   कुकुर सि

आंदो च  नी समज मा दुनिया को राग भैजी

चौछड़ी   च हाई हाई, लुटालुटी  मची च शोषण

यख न धुंवा, न खारो , कन भारी आग भैजी

अब ये मुलक का ढिबरा  नि जळकदा-बिचळदा 

यो रंग को सफेद फैली गे बाग़ भैजी

अब ज्वान ल्वैइ परा बी कुचः रै चरक -फरक नी

जाणा छन अबट ये, लग कैकु दाग भैजी


(साभार- हिलांस, जन.फरवरी १९८९)

सर्वाधिकार @ मदन डुकलाण , देहरादून . २०१२ 

Bhishma Kukreti

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गढ़वाळी कविता-*********जिया कु काळ यु बसगाळ *******

                 कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

जिया कु काळ
यु बसगाळ
बादलोँ कु गडगडाट
पाणि कु तरपराट
जगा-जगा मा चूंदी भितरी
वींकु कडकडाट
कूड़ी का देखि कै हाल
मेरा गैरहाल
जिया कु काळ
यु बसगाळ

सर्र-सर्र औंदी कुयेड़ी
झर-झर झरदो पाणि
टूटीं छतुळी
भीजिगे ट्वपली कु छोर
कुर्ता कु कोर
बाटों मा जमीं सिंवाल
चरि तरफ उजाड़-बिजाड़
कखि गौं उजड़ना
मन्खी ज्यूंदी दबिणा
 हाल बदहाल
जिया कु काळ
यु बसगाळ

  डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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फुन्द्या .

[पूरण पंत एक व्यंगकार च पण जादातर कवितौं मा एक रोस, एक गुस्सा जरूर दिख्यांद ]

कविता: पूरण पन्त पथिक देहरादून उत्तराखंड


हमत अपणौ की छवीं लगाना छाया
खामखाँ ऐन बीचम कखा फुन्द्या .
फूल मुर्झैन धरती बी शरमाई गे
कन लग्यां छन कुहाल निरभागी फुन्द्या .
भत्त्याभंग कैरिकै उत्तराखंडौ  सर्रा
छत्त्यानाश पर मिस्याँ असगुनी फुन्द्या .
बिसरी कै  दूद अपणी ब्वे- इजा को
कन कना राज छन निगुरा फुन्द्या.
पितर कूड्यों की कैरिकी अहा कुदशा
माला पैरिकी,हैंसन लग्यां इ फुन्द्या .
मुखडी /जिकुड़ी की लापता ह्वैगे पछ्याण
लुंड -मुंड -तुण्ड यख बण्या छन फुन्द्या .
थकुळि  माँ आग पैदा अब होण लगे
ठट्टा समझण लग्याँ इ निरसा फुन्द्या .
बगत पूछलो जब बी छक्क्वेइ सवाल
कूण कख कुमच्याराकई लुकला फुन्द्या .
@ पूरण पन्त पथिक देहरादून उत्तराखंड

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चन्द्रशेखर करगेती
आओ पहाड़........
 
 अब वो लोग तो मत आना
 जिनके पास यहां से
 जाने के अलावा कोई चारा न था
 और आने को मन नी करता
 आओगे तो क्या करोगे ?
 रोटी रोजगार हालात
 सब कुछ वैसे ही हैं
 बल्कि उससे खराब ही हैं
 कुछ नौकरी वाले
 कुछ जायदाद वाले
 कुछ रिटायर वाले
 धंधे-पानी वाले
 जीप ट्रक बस वाले
 खड़िया वाले रेता वाले
 ठेकेदार एन जी ओ
 वाले तो आयेंगे ही
 विकास जो करना है
 बाकी लोग जायेंगे ही
 कुछ तो नीचे जाकर करना है
 खाली यहां क्यों मरना है
 आओ पहाड़
 पर वो तो मत ही आना
 जो पिकनिक मनाने आते हैं
 चार दिन रहकर
 बेरोजगारों को टेंशन दे जाते हैं
 आओ पहाड़
 नीचे से कमा के लाओ
 कुछ मदद करो हाथ बंटाओ
 तुम्हारी ही जैजाद है
 बनाओ सजाओ
 भरोषे से आओ
 पर यार अपने घर में
 टूरिस्ट बनकर मत आओ
 आओ पहाड़ आओ.....
 
 लेखक: दीप पाठक —

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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साँची माया सदानि त्यरा

कोरा मन सी लगान्दी गै

त्वैमा अर मैमा फरक इदगी छ

मै रोंदी गै अर तू रुलान्दी रै !


दोस त्यारू नि दोस म्यारू छै

बर्षों बीटि कुछ नि चितांदी गै

त्वैमा अर मैमा फरक इतगी छ

मै सुणदी रै अर तू सुणादी गै !


त्यरा बाना साथ कत्गों कु छोड़ी

यकुली आज गाणियों गणादी गै

त्वैमा अर मैमा फरक इतगी छ

मै झुरदी रै अर तू झुरान्दी गै !


रोई रोई ज्यू म्यारु ह्वै खारु

तू मुज्याँ खारा सुल्गांदी गै

त्वैमा अर मैमा फरक इतगी छ

मै जगदि रै अर तू जलान्दी गै !


प्रभात सेमवाल ( अजाण )सर्वाधिकार सुरक्षित

Bhishma Kukreti

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गंगल्वड़ा : अंतर्राष्ट्रीय स्तर कु महान कवि क कविता
कवि: मदन डुकलाण

[ मदन डुकलाण गढ़वळी साहित्य, नाट्य विधा, फिलम, पत्रिका संपादन आदि माँ एक जाण्यो-पछण्यो नाम च. मदन डुकलाण जु बि कविता लेखिन वो अन्तराष्ट्रीय स्तर कि कविता छन अर इकिसवीं सदी क महान कवियों मादे एक महान अन्तराष्ट्रीय कवि छन. तौळै कविता एक प्रतीकात्मक कविता च ज्वा गढवल्युं पर चमकताळ लगैक सचेत बि करद. कविता पुराणि भौण /ब्यूंत बि तुडदि अर दगड मा रौंस दीण कमि नि करदी. तौळै कविता बांची बंचनेर जाणि जाला कि मदन एक महान अंतर्राष्ट्रीय स्तर कु कवि छन -भीष्म कुकरेती]
 
गंगल्वड़ा

गंगल्वड़ा ही गंगल्वड़ा

लमडणा /टुटणा /फुटणा

घिल्मुंडि खाना

गाडू -गाडू /ब्वगणा

आपस मा फुंद्यानाथ बण्या

एक हैंकाक /मुंड पक्वड़णा

अर हौरू /ठोकर खाणो

रस्तों मा पवड्या

आंदा जांदा कुकुर जौमा

टंगडि खड़ी कै मुत्तणा

तबी ये बाच गडणा

न ऊंठ उफरणा बस चुपचाप सैणा

ये गंगल्वड़ा !

हे गढ़ माँ /
 
क्य ह्व़े तेरी कोख थै

तू निचंत

 गंगल्वड़ा ही पैदा नि कौर

सर्वाधिकार @ मदन डुकलाण

(साभार, हिलांस, मई, जून , १९८९

Bhishma Kukreti

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उबर  लुक्यूं रै (गढ़वळी कविता )

कवि   :पूरण पन्त पथिक


क्यों कनु  छै घ्याळ   छ्वारा ,अपणा वाबरा लुक्यूं रै


चुसणा  बी त्वे मिलणु   नी छ ,अपणा वाबरा लुक्यूं रै.
रीति बदले नीति -फर्ज .कर्म वाबरा लुक्यूं रै
मुस्द्वाल्यूं का पुटग राजनीति ,घुन्ता वाबरा लुक्यूं रै .
 
सुपिना बिंडी द्यखिन ट्वैन ,अपणा वाबरा लुक्यूं रै
बनिग्ये उत्तराखंड खुश तू ,अपणा वाबरा लुक्यूं रै.

मार बीडी सोड़   ,सरकारी दारु बि  घट्येली ले
झांझ मां तू टुण्ड ह्वैकै अपणा वाबरा लुक्यूं रै .
नौं कमाणा भली बात कन्दुदू बयालो सुणी कै
 मदघट मां नी बैठ छ्वारा ,अपणा वाबरा लुक्यूं रै.
कैको ,क्या, कनो किलै कैन घाम बी शर्मान्दो रै
जून-गैणा सन्ट ह्वेन अपणा वाबरा लुक्यूं रै .

अलगसी-कुसगोरी छ्वारा अपणा वाबरा लुक्यूं रै
ब्वे  का सौं त्वे घ्याळ  नि   कैरी अपणा वाबरा लुक्यों रै .
 रंद-मंदी घपळचौदस  सरसू -झैडु  बाघ ह्वै
क्यों भुत्ये बे छळयुं  छ्वारा अपणा वाबरा लुक्यों रै .
@पूरण पन्त पथिक देहरादून

Bhishma Kukreti

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देखिल्या : राम पुर तिराहा (महान कवि कि शहीदों तै  श्रधांजलि )


 कवि मदन डुकलाण

(गढ़वाळि क महान कवि मदन डुकलाण क कविता अंतर्राष्ट्रीय स्तर का हुन्दन। मदन डुकलाण कि गणत इकिसवीं सदी क महान अंतर्राष्ट्रीय कवियुं मा होंद. ये महान गढ़वाळि कवि न उत्तराखंड आन्दोलन टैम पर रामपुर तिराहा पर हुंईं दैसत कु बिरतांत बड़ो बढिया ढंग से करी. ल्या महान कवि क राम पुर तिराहा पर कुछ पंगत-भीष्म कुकरेती)



हक्क का बाना ह्वेंगीं शहीद हमरा लाल देखिल्या

वूनका जुल्म वूंकी दैसत का हाल देखिल्या .

त्वेन दे छे माया कि मीतै दगड्या ज्वा समळौण

ल्वे मा भीजी आज तर्र वो रुमाल देखिल्या

देखिके घैल मा बैण्यु कि कुंगळि क्वन्सि जिकुडि

गङ्गा जमुना मा बि आज ऐगे उमाळ देखिल्या ।

देखी ल्वेखाळ निहत्थों कु आज गांधी जनमबार मा

शिव का हिमालम ह्यूं बि आज ह्व़े गे लाल देखिल्या

सर्वाधिकार @ मदन डुकलाण देहरादून

(ग्वथनी गौं बटे , २००२ से साभार )

Bhishma Kukreti

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मेरा पहाड़ ........

कवि : पूरण पन्त पथिक
 
देवभूमि त्वैको ब्वदीन उत्तराखंड ,हिमवंत तेरो नाम केदारखंड
खंड ही खंड रैगैन वार बटी छ्वाड, मेरा पहाड़ ,मेरा पहाड़ .
गंडेळ  किदला जाना जीव बण्या छां ,माछौं को नों नी कखी , डौखा बण्या  छां
चौंर्या स्याल बिंडी ,हर्चिगैन काखड़  ,मेरा पहाड़ ...........

गंगा जमुना को मैत निरपाणी  डांडा, बुतण  लग्यां  सबी कांडा ही कांडा
पाणी सुख्युं ,धंद हर्चीं रगड़ - बगड़ ,मेरा पहाड़ ...........
गौली कै ह्यूं गदिन्युं रौल्युं समैगे ,ढुंगा रैडी-बोगी बोगी गंगल्वादा ह्वैगे
किलारोडी प्वाड्दीन भारी उखाड़ -पखाड,मेरा पहाड़ ...........

लापता खाडू का हम सिंग बण्या छां ,छोट्टू क्वी  रायो निछ ,ब़डा बण्या छां ,
किले जी होंद इनो ,बिजोग प्वाड, मेरा पहाड़ .............
@पूरण पन्त पथिक देहरादून

Bhishma Kukreti

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माठु-माठु
 कवि:  पूरण पन्त पथिक
भैजी क्यों छां,किले -कख तुम ,अटगणा  छां माठु -माठु
अट्ग्गा-भट्गी मां रैल्या कख तुम रिबडी-रिबडी माठु -माठु.
ढुंगा छां क्या गंगल्वाड़ा  -मवाळो मादेव  छौ क्या तुम
तुमतैं अपणो  कुछ पता बी ,बींगी जैल्या माठु-माठु .
बिन्सरी त होली ही ईं अँधेरी रात मां होण क्या?
भ्विंचळ  जब आलो तब तुम बींगी लेल्या माठु -माठु.

हैंसदा रावा ,रिन्गदा रावा ,औडुळो   अर ढाण्डु बि 
दिखालो औकात तुमतैं ,टक लगैक  माठु-माठु.
अहा दाज्यू ,सुपिना -गाणी-स्याणी,हर्ची गैन कख
पछ्याँन्दा नी तुम ,कबी-न कबी ,बींगी जैल्या माठु- माठु.

२-
हमत अपणो की छवीं लगाणा छाया ,खामखाँ ऐन बीचम फुन्द्या
बिसरी कै दूद अपणी ब्वे-इजा को ,राज छन कन लग्यां,बन्या फुन्द्या.

मुखडी की नी रईं छ पछ्याण ,लुंड अर तुंड बन्याँ यखा फुन्द्या .
फूल मुर्झैन ,धरती बी शरमाई ग्ये,हाल -बेहाल-कुहाल छन हुन्याँ

पित्रकूद्यों की कैरी कनी कुदशा ,पैरी माला ,हैंसन लग्यां फुन्द्या .
थकुली मां आग पैदा होण लाग्ये, ठट्टा समझन लग्यां इ फुन्द्या
वग्त जब पूछलो छक्क्वैकी सवाल ,कूण कै कुम्च्यारा लुकला फुन्द्या .
@पूरण पन्त पथिक देहरादून ३० सितम्बर 2012

 

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