Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527703 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Manish Mehta
कहाँ गया वो पहाड़ !
कविता - मनीष मेहता !

'कुछ मेरे अपने थे जो,
दूर चले गये है,
परदेश कही,
सुना है खुद को अब,
परदेशी कहने लगे है.
साथ खेले थे जिनके,
इस बिरान पड़े आँगन में,
किलकारियाँ गुंजा करती थी जहाँ,
गिरते-संभलते बचपन की,
अब सुने-सुने से दिखते है,
उजड़े-उजड़े ये आँगन !
दादी अब किस्से-कहानियाँ नहीं सुनाती,
ना दादा जी घोडा बनते,
सुबहा-शाम खिड़की में बस,
टकटकी लगाये है देखते,
आँसू भी अब सुख गए है,
चेहरे की झुर्रियों की तरहा,

न कागज़ की नाव है बनती,
और न बरसात के पानी में छपछप,
अब ना लिम्खाव के लड्डू घूमते,
न मिट्टी में कोई कंचे खेलता,
न गुड्डे-गुड्डियों की शादी में नाचते,

पुरी कविता पढने के लिए इस लिंक का प्रयोग करे -

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Geetesh Singh Negi
‎(१) ब्याली
डांडी कांठी हैरी हैरी ,चांदी कु हिमाल
ठण्डु ठण्डु पाणि गदिनियुं कु ,गंगा जी का छाल
रंगीलो कुमौं च मेरु ,छबीलू गढ़वाल
रौन्तेलु च मुल्क म्यारू ,रौन्तेलु पहाड़

पिंगली च फयोंळी जक्ख ,रंगीलू बुरांस
घुगती बस्दिन जक्ख , बसद कफ्फु हिलांस
खित खित हैन्स्दी जक्ख , डालियुं डालियुं ग्वीराल
गीत लगान्दी खुदेड घसेरी , वल्या पल्या स्यार
रंगीलो कुमौं च मेरु ,छबीलू गढ़वाल
रौन्तेलू च मुल्क म्यारू ,रौन्तेलु पहाड़

देब्तों कु वास जक्ख ,या धरती महान
धारौं धारौं मा पंवाडा भडौं का ,च बीरौं की शान
वीर माधो ,वीर रिखोला ,वीर कालू महान
वीर बाला तीलू यक्ख ,गढ़ चौन्दकोट शान
सिंह गब्बर ,सिंह दरबान ,सिंह जसवंत जक्ख ज्वान
वीरौं मा कु बीर भड , बीर कफ्फु चौहान
बीरौं की च धरती या बीरौं की च शान
रंगीलो कुमौं च मेरु ,छबीलू गढ़वाल
रौन्तेलु च मुल्क म्यारू ,रौन्तेलु पहाड़ .......

(२) आज

लूटी गईं सब डान्डी कांठी ,चूस गईं सब ह्युं हिंवाल
बिसिग ग्याई पाणि गदिनियुं कु , हे ब्वे मच ग्याई बबाल
बूसै ग्याई फ़्योंली पिंगली , रुणु च बुरांस
ठगैणी च घुगती साख्युं भटयै , ठगैणु च कफ्फु - हिलांस
पुल पुल रुणा छीं यक्ख , डालियुं डालियुं फूल ग्वीराल
गीत लगाणी खैरी का बूढडि , कब आलु मी काल
फूल गयीं लटूली मेरी , बुस्याँ रै गईँ जोग भाग
कन्नू कैरिक कटण हे विधाता ,बड़ी भरी च या उक्काल
बड़ी भरी च या उक्काल
बूढैय ग्याई कुमौं सरया ,बूढैय ग्याई गढ़वाल
कन्नू कैरिक कटण हे विधाता ,बड़ी भरी च या उक्काल

ठेकदरौं की धरती या ,
ठेकदरौं कु यक्ख राज
धारौं धारौं मा अड्डा दारु का ,
दारु मा चलणु यक्ख सब काज
दारू मा नचणा छीं अब देबता ,
दारू मा ही नचणी बरात
बरसी दारू मा ,जागर दारु मा ,
प्रमुख दारू मा ,पटवरी दारू मा
परधान जी का दस्खत दारु मा
मनरेगा का पैसा दारू मा
कन्न प्वाड अकाल गौं मा
सरया बिलोक रुझ्युं दारू मा

कक्ख हरच माधो ,कक्ख ग्याई बीरू
कक्ख हरच भुल्ला पप्पू ,कक्ख हरच तीरू
खाली छीं चौक यक्ख ,खाली छीं खिलहाण
कुछ ता कारा छूचो , कन्न चिपट यू मसाण
खाली छीं गौं यक्ख ,खाली छीं गुठियार
खुदेणु च कुमौं यखुली ,खुदेणु गढ़वाल
तुम्हरी ही छुईं " गीत " ,अब तुम्हरी ही जग्वाल ........
खुदेणु च कुमौं यखुली ,खुदेणु गढ़वाल
स्रोत :म्यार ब्लॉग हिमालय की गोद से ,सर्वाधिकार सुरक्षित (गीतेश सिंह नेगी )

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविता शैलेन्द्र जोशी

चला दी पेटा दी हिटा दी हे जी
मेला लगियु चा जी सैणा श्रीनगर मा जी
मिते चौपड़ वा गोला बाज़ार की घुमादी
बतियों कु मेला चतुद्रशी वैकुंठ कु मेला जी
भक्तो की भीर जी
पुत्र आश मा औत सौजडियो कु खाडू दियू जी
चला वी कमलेस्वर मा जी
मिते फौंदी मुल्य्दी चूड़ी बिंदी लादी
भली क्रींम पाउडर बुरुंसी लिपस्टिक मेला की समूण मा ल्या दी
मिते जादू सर्कस बन बनी का खेल तमासा दिखा दी
मिते चर्खी मा बैठे की घुमा दी
मिते चौपड़ वा गोला बाज़ार की घुमा दी
मिते सैणा श्रीनगर ले जा दी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविता शैलेन्द्र जोशी

चला दी पेटा दी हिटा दी हे जी
मेला लगियु चा जी सैणा श्रीनगर मा जी
मिते चौपड़ वा गोला बाज़ार की घुमादी
बतियों कु मेला चतुद्रशी वैकुंठ कु मेला जी
भक्तो की भीर जी
पुत्र आश मा औत सौजडियो कु खाडू दियू जी
चला वी कमलेस्वर मा जी
मिते फौंदी मुल्य्दी चूड़ी बिंदी लादी
भली क्रींम पाउडर बुरुंसी लिपस्टिक मेला की समूण मा ल्या दी
मिते जादू सर्कस बन बनी का खेल तमासा दिखा दी
मिते चर्खी मा बैठे की घुमा दी
मिते चौपड़ वा गोला बाज़ार की घुमा दी
मिते सैणा श्रीनगर ले जा दी

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गढवाळ की धै
नरेन्द्र सिह नेगी
हमारी पछाण
हमारू मान
हमारू सम्मान
हमारी जान
गंगा जन छाळू मन
पनध्येरा जन बगदू प्रेम
फ्योळी जन हैसदू बसंत
हिमाळै जनु चमकदू प्रेम
पाडे पिडा मा भभरान्दी जिकुडे आग

नरेन्द्र सिह नेगी जी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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त्वे सि दूर एकि खुद क्या होंदी
आज मैन जाणी !
अपड़ा मन अप्वे जब समझे निपै
फिर त्वेतें माणी !!

तू मेरी सदानि हि रै पर मै कभि
तेरु ह्व़े नि पाई!
आज जब तेरा ओणा आस नि रै
अपडु भरोषु नि राई !!

मेरी हर बात तें भलू-भलू बताणु
याद आज फिर आणु !
मेरा हर राग तें बार-बार सुनाणु
अभिबी मै भूली नि पाणु !!

मेरा खातिर दुनियां छोड़ी जाणकि
करीं सों अर करार !
आज फिर मैतेनं याद आणु अपडुनि
विंकू सचु स्यु प्यार .!!

प्रभात सेमवाल (अजाण )सर्वाधिकार सुरक्षित

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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"इनी मेरी क़ज़ाण च:"
********************
मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
देखि नी होलि कभी कैन , इनी मेरी कजाण च
भैंसी सी खबड़ी वींकी, हाथी जनी चाल च
चमड़ी वींकी इन कोंगऴी, जनी गैंडा की खाल च
आँखा वींका ढढू जना, गधी सी आवाज च
जुवाँ मुंड पर इथ्गा छन, दिन रात की खाज च
मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च ..
*********************************************
मुखड़ी वींकी इनी प्यारी , जन खरस्यण्या कखड़ू हो
टंगड़ी वींकी मोटी इथ्गा, जन सुख्यूं सी लखड़ू हो
सुप्पा जन कान वींका, तिमला जन नाक च
कुकुर सी भुकुण मा वींकी, अपणी अलग धाक च
मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
*********************************************
धम्म -धम्म जांदी जन, पैलवान क्वी तगड़ू हो
लट्ला वींका इन कुसज्जा , जन बाड़ी कु झंकड़ू हो
रंग वींकू क्या बतौण, जन फुक्यूं सी अरसा होंद
गलोड़ा वींका तिड़याँ इन, जन कट्ठऱ बगोट हो
थौऴ मा जाणै सिरड़ी गड़ी, मिन वा अब सजाण च
मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
**********************************************
लम्बै वींकी इन ज्यादा, जन घौर की जन्दरी हो
मोटै इन च जन बोल्यो, क्वी लपेट्यीं मंदरी हो
पथा द्वि-एक भात खैकी ,आराम से सेंदी च
नींद मा रौंदी जब, बाघ सी वा घुरदी च
दगड़ी सेण बडू मुश्किल ,सेयाँ मा लतौंदी च
मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
********************************************
झुमका पैरदी कान पर , जन मंदिरअ घंडलू हो
गौऴा पर माळा पैरदी , जन भैंसा कु संगळू हो
बाँदर सी खिर्स्येंदी वा, जब वीं मै पै गुस्सा आँद
सूपर्णखा सी दिखेंदी वा, जब मै वींका धोरा जांद
इन सैंदिस्ट खबेश से ,हराम सेण खाण च
मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
*******************************************
कमर वींकी बरीक इन, जन डाळा कू गोळ हो
कपड़ा वीं पै इन लगदा ,जन रजै कू खोळ हो
भूत सी हैसण वींकू , थकलू जन खंगड़ौंद च
बचाण वींकू बकि बात कू , कागु जनी बसदी च ,
छुयूं मा सब हौरी जांदन, इन भारी बबाल च
मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
***********************************************
मामला ब्यो कु हो त भुलौं, कै हैंकै कभी नी सुण
गढ़-कुमौ सरू एक हवे जाऊ पर अपणी कजाण अफ़ी ढूंढ़ण,
नी ढुंढल्या त कैन न कैन तुमतै फंसै देंण,
बिना दहेज़ कु कैन अपणु आईटम थमै देंण
जन मै सैणु तुम नि सैयां , इन मेरी इच्छा च
कवी तुम तै नी पुछू ,दिदौं कन तुम्हारी कजाण च
__/\___/\____/\____/\____/\____/\_____
मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
*******************************
(अविनाश ध्यानी)
ग्राम -लिही (पौड़ी गढ़वाल)

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घुघूती बासुती 

यां डान छोड़ी
धार छोड़ी
खेती सार छोड़ी
त्यार धी त्यार छोड़ी
भरी भाकर छोड़ी
इज बाबुक प्यार छोड़ी
तैली सिमार छोड़ी
बैसी जौनार छोड़ी
झोड़ चाचरी चैतक बहार छोड़ी..
छोड़ी कारबार फिर लै जमुने पडल इजा तुम्कुनी पहाड़ उनै पडल ...
याँ नै तुकुनी मच्छर बुकाल ना घाम लागोल ..
पहाड़ में तुकुनी के नि होल ...
के लै होल पहाडै त्यर काम लागोल यें सज आली येन आराम लागोल ...
बीमारी लै के होल जुकाम लागोल ....
किलै रे याँ नि आली हिमाली हाव
धारक उकाव ,
मौनक जाव,
काव कमाव ,
घुघुति माव,
नीमू नारिंग अखोडक डाव .
जाड लागी आंग कुणी फिर लै तुकुनी ततुडै पडल ......
इजा तुम्कुनी पहाड़ उनै पडल
लेखक -नाम मिकुणी पत् नहात एक दगडियल सुना

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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सपोडा सपोड़ किले कनु छै,
सब मिलालु त्वे हे जरूर।
जु भी होलु भाग मा तेरा,
एक दिन मिललू त्वे जरूर।।

बगत कभी रुक्युं नि रैंदु,
आदत येकी मनखी जनि च,
सब कुछ च त्वेमा हे मनखी,
बस एक धीरज की कमि च।।

पालु नि रैंदु सदनी चमकुणु,
घाम औण मा गली जान्द।
पाप कु घाडू कतगा भी संभाल,
एक दिन फट्ट फूटी जान्द।।

सुबाटू जा रे तू हे मनखी,
फूलों कु बाटू बण्यों त्वेकू।
सब कुछ मिली जालु त्वेथे,
रकऱयाट हुयुं किले त्वेकू।।

अपरी गलती थै माणी ले,
कैर प्रायश्चित और सुधारी ले,
धर्म से विमुख न ह्वे कभी,
रावत अनूप की बात जाणी ले।।

कविता जारी है ....
मेरी कविता संग्रह
"मेरु मुल्क मेरु पराण" बिटि:-
©2012 अनूप रावत "गढ़वाली इंडियन"

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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फिरदा ही रैग्युं

फिरदा फिरदा ही रैग्युं ओं
फिरदा फिरदा ही रैग्युं ..२
क्ख्क भी नी लग्युं क्ख्क भी जी मेरु
फिरदा फिरदा ही रैग्युं ...२

कुछ ना पाई मिल कुछ भी आपरा बाण
मी भीतर भैर करदा ही रैग्युं ओं
फिरदा फिरदा ही रैग्युं ..२

ना हो सको जी को ना मात्रभूमी को
जिकोडी रेघ मा अलजद ही रैग्युं ओं
फिरदा फिरदा ही रैग्युं ..२

ना नकद ना उधार चल गै पल्या पर
अपरो परयो को मोल चुकद ही रैग्यु जी
फिरदा फिरदा ही रैग्युं ..२

ना रै मेर पास ना तेर पास कुछ भी
सब लुटगै अब भी और तब भी सरण लग्युं रों
फिरदा फिरदा ही रैग्युं ..२

फिरदा फिरदा ही रैग्युं ओं
फिरदा फिरदा ही रैग्युं ..२
क्ख्क भी नी लग्युं क्ख्क भी जी मेरु
फिरदा फिरदा ही रैग्युं ...२

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

 

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