Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527703 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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From :B Mohan Negi

जु छा ब्याळि तक
पलायन पर
लेख, कविता
ग्रन्थ लिखणा,
अखबार छपणा ,
गीत बणाणा अर गाणा
वू देखिन मिन
पांच विस्वा जमीनै खातिर
तै देहरादून रिटणा....

Copyright@ B.Mohan Negi

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Write a comment...Optionsदिनेश ध्यानी कवि  पागल होंद
 ना ता आफू सेंदु
 ना होर्यों थें सीण देन्दु.
 कब्बि चलदा चलदा सेंद
 अर कब्बि सेंदा सेंदा चल्दा
 अध्धा रत्यों मा चडक उठदा
 कागज कलम खुज्यांद
 सिया मन्ख्यों नींद उचेटी
 लिखण कु बैठी जान्द. कवि पागल होंद....
 ना ता खाण कि फिकर
 ना काम काज कि चिंता
 अपरि धुन मा मगन
 सोच्णु अर बयाणु रैद
 अजीब सी मनखी
 सबसे अलग दिखेंद. कवि पागल होंद....
 ध्यानी.....२९ नवम्बर, २०१२. २-३० साय

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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माया का भेद

आँखी नी बोली
कनुडी नी सुणी
जिकोडी का भेद
गिचोडी ना खोली...२
जिकोडी का भेद
गिचोडी ना खोली.........२

माया संभाली
धेरी बस तै थै ही
ऐ मेरा गेल्या
तू ना जा मै छोडी...२
जिकोडी का भेद
गिचोडी ना खोली.........२

बिंदी दमकैली
चूड़ी खनकैली
खुठी की पैजनी
जब तू छमकैली...२
जिकोडी का भेद
गिचोडी ना खोली.........२

बैठ्युंच यख
हेरादा बाटों का फेरा
ऐ मेरा गेल्या
तू ऐजा दोउड़ी....२
जिकोडी का भेद
गिचोडी ना खोली.........२

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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" किन्गोड़ा कु बीज "

घैल पौडियूँ बुराँस कक्खी
सुध बुध मा नि चा फ्योंली भी
बौल्ये ग्यीं घुघूती भी देखा
फुर्र - फुर्र उडणी इन्हे फुन्हेय
छोड़ अपडा फथ्यला - घोलौं भी

लटुली फूली ग्यें ग्वीरालअक
हुयुं लापता कफ्फू हिलांस
पकणा छीं बेडू भी बस
अब लाचारी मा बारामास

सूखी ग्यीं अस्धरा भी पन्देरौं का अब
सरग भी नि गगडाणू चा
लमडणा छीं भ्यालौं - भ्यालौं मा निर्भगी काफल
कुई किल्लेय हम थेय नि सम्लाणु चा

जम्म खम्म पौडयां छीं छन्छडा
धार हुईँ छीं लम्मसट
व्हेय ग्याई निराश कुलैं की भी बगतल
मुख लुकै ग्याई सौंण कुयेडी भी सट्ट

रूणाट हुयुं डांडीयूँ कांठीयूँ कू
ज्यूडी - दथुड़ी बोटीं अंग्वाल
छात भिटवौली पूछणा स्यारा - पुन्गड़ा
हे हैल -निसूडौं कन्न लग्ग फिट्गार

गैल ग्याई ह्यूं हिमवंत कू
बस बोग्णी छीं आंखियुं अस्धार
अछलेंद अछलेंद बुथियांन्द वे थेय
द्याखा बुढेय ग्याई देब्ता घाम

हर्चिं ताल ढ़ोल क ,
बिसिग सागर दमौ महान
बौल मा छीं गीत माँगल - रासों -तांदी
समझा उन्थेय मोरयां समान

छोडियाल चखुलीयौंल भी अब बोलुणु
काफल पाको ! काफल पाको !
तब भटेय जब भटेय हे मनखी !
तील सीख द्यीं
अपडा ही गौं मा बीज किन्गोड़ा का सोंगा सरपट चुलाणा
बीज किन्गोड़ा का सोंगा सरपट चुलाणा ..........


स्रोत : हिमालय की गोद से , सर्वाधिकार सुरक्षित (गीतेश सिंह नेगी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविता शैलेन्द्र जोशी

चला दी पेटा दी हिटा दी हे जी
मेला लगियु चा जी सैणा श्रीनगर मा जी
मिते चौपड़ वा गोला बाज़ार की घुमादी
बतियों कु मेला चतुद्रशी वैकुंठ कु मेला जी
भक्तो की भीर जी
पुत्र आश मा औत सौजडियो कु खाडू दियू जी
चला वी कमलेस्वर मा जी
मिते फौंदी मुल्य्दी चूड़ी बिंदी लादी
भली क्रींम पाउडर बुरुंसी लिपस्टिक मेला की समूण मा ल्या दी
मिते जादू सर्कस बन बनी का खेल तमासा दिखा दी
मिते चर्खी मा बैठे की घुमा दी
मिते चौपड़ वा गोला बाज़ार की घुमा दी
मिते सैणा श्रीनगर ले जा दी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नंगू : ऐ ढंगू कख बिटी छैं औणी ?
ढंगू : यार मि त एक सांस्कृतिक परोगराम देखि औणु छंऊ , आ
हा हा हा ..क्या गीत छा:.... मांगल , खुदेड़ , माया, बान ,
जागर ,भक्ति, ब्यंग,कटाक्ष, ऐतिहासिक , गौरव ...भै
क्या बुन्न पूरू उत्तराखंड समायूं छ: भै ..आ हा मजा ऐगी , मै
तै भारी गर्व च अपणा उत्तराखंडी होण पै ...!!
ढंगू : अब तू बतौ तू कख बिटी छैं औणी ?? , और तू दारू पे
की छै औणी हैं ..तेरा गिच्चा बिटी भौत बास औणी छ ..!

नंगू : भै मि त एक सांस्कृतिक क्रियाक्रम देखि औणु छौं , आ
हाहा क्या दारू की गैलण छै , क्या दारू का गीत छा ,
सभी टल्ली छा वख ...
ठरकी बांद ..ठरकी बांद ..ठरकी बांद हे ....और
घघरा छोरी ..घघरा छोरी ..घघरा छोरी ..हा ...क्या बुन्न
द्वि पैग मिन भी लगै
देनी यार ....मेरा बिहारी दगड़या भी छा वख ,
बुन्ना छा , तुम्हारा उत्तराखंड मा त भारी मजा छ: भै ..
"

by [मनोज़ लख़ेड़ा]

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यकलु बानर
नौ रँगणि काखण बसि
य हमर पहाड
ऊँच निच धारा
टेड मेड बाँटा
कै छू घाम...कै छू छाँव
ठण्डो मिठो पानि क धार
सिढि दार खेतो मे काम
बेटि ब्वारि पहाडो क शान
लेख-सुन्दर कबडोला

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राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
पहाड़ मा शैहरी देखिक,
नेअथ बिगड़ जांदी,
अपणो की सुध नि च,
बीराणो तै चांदी ! बीराणो तै चांदी !

हैंसदा खेलदा घरबार,
छोड़ी आ जांदा,
हरीं भरीं पुंगडी पटवाडी,
शैहर मा क्या पौंदा !

माकन किरयाकू,
बिसैणु भी नि च,
कोठियों मा धोणु भांडा,
बथैण भी कै मु च !

जगा जगा की ठोकरियों
किस्मत जग्गैली,
चला पहाड़ू मेरा भाइयों,
मिन बाटु खुज्जाली ! ........गीत - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

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Parashar Gaur

फिर

व्याली रात कुई
चौका तीर / मिन्डलिम
लालटेन रखिगे
कखी ......
चूनों त नि आगे होला ?

तबित भोट मंगणु
अचानक रोशनी दिखैगे
फिर.....
छलणु आगे !

मि..... सुचुणु रौ
अपणा आप से पुछुणु रौ
की , अचानक
लालटेन लुडिकिगे
अन्ध्यरू हुयेगे
मि .. .....................
जखम छौ वखमै रैगेऊ
सुबेर सुणी ......की कुई म्यारो
भोट डालिगे ...!

पराशर गौड़

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आफू की खेती मेरा गढ़देश मा
********************************
बांगडा की थैली मी थे खाई जली
आपरा आपरी मा ही वा लगी राली
बेसुध बेधुन्ध कई माटूला कै जाली
कदग फूंके कदग फूंके वा मानली
बांगडा की थैली मी थे खाई जली
***********************************

आप का ध्यानी
 

 

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