नंगू : ऐ ढंगू कख बिटी छैं औणी ?
ढंगू : यार मि त एक सांस्कृतिक परोगराम देखि औणु छंऊ , आ
हा हा हा ..क्या गीत छा:.... मांगल , खुदेड़ , माया, बान ,
जागर ,भक्ति, ब्यंग,कटाक्ष, ऐतिहासिक , गौरव ...भै
क्या बुन्न पूरू उत्तराखंड समायूं छ: भै ..आ हा मजा ऐगी , मै
तै भारी गर्व च अपणा उत्तराखंडी होण पै ...!!
ढंगू : अब तू बतौ तू कख बिटी छैं औणी ?? , और तू दारू पे
की छै औणी हैं ..तेरा गिच्चा बिटी भौत बास औणी छ ..!
नंगू : भै मि त एक सांस्कृतिक क्रियाक्रम देखि औणु छौं , आ
हाहा क्या दारू की गैलण छै , क्या दारू का गीत छा ,
सभी टल्ली छा वख ...
ठरकी बांद ..ठरकी बांद ..ठरकी बांद हे ....और
घघरा छोरी ..घघरा छोरी ..घघरा छोरी ..हा ...क्या बुन्न
द्वि पैग मिन भी लगै
देनी यार ....मेरा बिहारी दगड़या भी छा वख ,
बुन्ना छा , तुम्हारा उत्तराखंड मा त भारी मजा छ: भै ..
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by [मनोज़ लख़ेड़ा]