Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527709 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' पहाड़ मा शैहरी देखिक,
 नेअथ बिगड़ जांदी,
 अपणो की सुध नि च,
 बीराणो तै चांदी ! बीराणो तै चांदी !
 
 हैंसदा खेलदा घरबार,
 छोड़ी आ जांदा,
 हरीं भरीं पुंगडी पटवाडी,
 शैहर मा क्या पौंदा !
 
 माकन किरयाकू,
 बिसैणु भी नि च,
 कोठियों मा धोणु भांडा,
 बथैण भी कै मु च !
 
 जगा जगा की ठोकरियों
 किस्मत जग्गैली,
 चला पहाड़ू मेरा भाइयों,
 मिन बाटु खुज्जाली ! ........गीत - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' जलना हो तो सूरज सा जल के देखो
 दूसरों की खुशियों पे
 दुःख जताने वालों,
 आसमां की तरह
 छत चाहाने वालों,
 क्यों तिनके तिनके पे
 इस कदर जलते हो.
 जब जलना ही है तो
 सूरज सा जल के देखो,
 धरती की छाती को
 फाड़ने वालों,
 चाँद की सतह पर
 पताका गाड़ने वालों,
 खुद के कदमो की
 जमीं को भी देखो,
 इरादे हैं तुम्हारे नेक तो
 सूरज सा बन के देखो
 हर ले हर तम
 दुसरे के घर का
 चिराग ही है अगर बनना
 तो येंसा बन के देखो
 जब जलना ही है तो
 सूरज सा जल के देखो !........रचना -राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Kamdev Sharma गौरैया का दर्द
 
 खूब चहकती खूब महकती, मैं तुम्हारे आँगन में,
 खूब फुदकती खूब इठलाती, मैं तुम्हारे बाँगन में।।
 
 रात के थके वासिन्दों को, हर सुबह नया तान सुनाती,
 हर खेतन हर पाखन में, इठल-इठल कर दाना चुगती।।
 
 पेड़ों के हर शाखों में, खूब उछलती खूब फाँदती,
 मुडेरों के हर कोनों में, बच्चों के संग दाना खोजती।।
 
 अब तो मेरे कान बहरे, न सुनती ना सुनाती,
 आँखों में हया का चश्मा, न देखती ना उड़ती।।
 
 प्रदूषण से होठ मेरे काले, गालों में पड़ गये गड्डे,
 पाखों के हर पोर में, रेडियेसन के बन गये अड्डे।।
 
 अब ना हँसती ना खेलती, अब तो केवल रोती हूँ,
 अब ना उड़ती ना घूमती, अब तो केवल मरती हूँ।।
 
 नोटः- ये मेरी कविता दिल्ली वालों को समर्पित है, क्योंकि दिल्ली राज्य ने गौरैया को विषेश राज्य-पक्षी का दर्जा दिया है।
 कामदेव उर्फ़ काम

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पस्वा
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 म्यार् मुल्का लोग
 ब्वगणान् पस्वों-पस्वों बटि
 कतनैं साक्यूं बटि
 लग्यूं च स्वैर्यो
 बणनीन् योजना बड़ि-बड़ि
 विकास कि
 
 पर् या बाण च चलणी
 ज्व निकास की
 ईं तैं थामा!
 घैंटा खामा!
 
 बूजा यूं दुळणू
 अगर इ दुंळणि नि बुजेली
 अर् या परम्परा इन्नि फळणी-फुलणी रैली
 
 त् भ्वाळ दिल्लि म् पहाड़
 या पहाड़ म् क्वी दिल्ली ह्वाली
 अर् कै दिन पहाड़ की संस्कृति
 सिंधु घाटि की तरअ
 इत्यास म् बुसे जालि
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 स्व. श्री सुरेन्द्र पाल जी की काव्य संग्रह "चुग्टि" © बटि. (चंग्टि/26)
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Semwal Prabhat पहाड़ अर गढ़वाल का हाल द्याखी पहाड़ अर गढ़वाल कि पीड़ा तेन कविता कु रूप देणा कोसिस करी .
 
 ऋषिकेश राजा राणी नेग्या
 देहरादूण नेता लोग !
 जाणी कुजाणी लिख्यों कन
 मेरा पहाड़ तेरु जोग !!
 
 कखि पहाड़ डामो मा डूभिगै
 कखि आयां रवाड़ा !
 कखि हरी भरी डांडी सुखिगै
 कखि बांजा विज्वाड़ा !!
 
 कखि रिती छ चोक तिबार
 कखि गों गुठियार !
 कखि सुखा छ धरा पन्यारा
 कखि सुखी नयार !!
 
 कैकी ब्वे की अंख्यों आंशु छ
 कैका बाबाजी उदास !
 कैकी सोंझडियों तें इकुलांश छ
 कैका दागडिया निरास !!
 
 
 प्रभात सेमवाल ( अजाण )सर्वाधिकार सुरक्षित

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मूसौँ की एक टोली तलवार लेकी भगणी छाई।
 तबरी बागल पूछी है मूसौ कख जाणा छँया तुम सब??
 तबरी एक मूसू बोली यार बाग भैजी
 उना हाथी की दूसरा नम्बर वली नौनी थै कैल परपोज कैरी
 अर नाम हमरू ऐग्या।
 
 ब्यै (ब्येई) का सौँ आज तो लाँसेँ बिछा देँगे लाँसेँ.......
 चखन्यौ बणा दिया इसने......
 by-मनोज बौल्या

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Garhwali Classes "गढ़वाली छुई"December 1ठहर गी आवाज कख्खी ...
 बण गी ख़ामोशी यख्खी ..
 
 पन्नों की आवाज से .....
 हवा थे आहसास व्हे गी ..
 कब तक यु राला कोरा ..
 दर्द यूँ का मन म रेगी ..
 
 ठहर गी आवाज कख्खी
 बण गी ख़ामोशी यख्खी
 
 मौसम भी अब बदलगी ..
 आसमां बरखा से भीग गी ..
 धरती उनि सुख्खी रैगी .
 शब्द कख बटे कि आला ..
 पन्नों का जु दर्द मिटला ...
 
 ठहर गी आवाज कख्खी ..
 बण गी ख़ामोशी यख्खी ...
 
 पैली जन हवा अब नि चलदी ..
 दिन भी अब रात लगदी ..
 जिन्दगी अब जिंदगी से खलदी ..
 बात कोई अब अच्छी नि लगदी..
 
 ठहर गी आवाज कख्खी ..
 बण गी खामोशी यख्खी
 
 रिश्ता किले टूटी गेनी ..
 अपणा सब किले बिखिर गेनी ...
 अलग च सबकी राह ,मन म च सबकी चाह ..
 रास्ता इन कोई ढुंडलु ,हमथे कि जु सबसे जुड़लु ...
 
 ठहर गी आवाज कख्खी ..
 बण गी खामोशी यख्खी ...
 
 मोड़ जिन्दगी का कभी त इन आला ..
 कोरा पन्नों म, पोड़लु जब अपणों कु साया
 शायद,खुश होलू तब वे कु मन ..
 चलली तब हाथ से वेकि रुकीं कलम ..
 वेकि रुकीं कलम ...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Garhwali Classes "गढ़वाली छुई"

खबेस की डैर !
 भूत पिचास, मसाण , हंत्या, सय्यद
 झनि क्या क्या हूंदा छाया बालपन मा
 एक से एक किस्सा भै साब
 अजकाळ  कि तमाम हारर फिलम  फेल
 क्या मज़ा आन्दु छायु
 दिक्कत बस एक ही हून्दी छे
 जब राती सु सू  लगदी छे
 अर्र 'भैर' हन्दू छायु
 घार से दूर, बियाबान मा
 तब हर रात हून्दी छे
 जिंदगी  की सब से बड़ी जंग
 अर्र फिर सुबेर
 व्हीं  जंग का किस्सा
 ठीक यख्म छायु
 यन्ना  आँखा, वन्ना दांत
 बाजा बाजा
 घैल भी  व्हे जांदा छाया
 तब हून्दी छे एंट्री
 जगरी जी की
 वो सब्बी केरेक्टर आज भी
 वखि  का वखी छन
 सिर्फ हम भैर व्हे ग्याँ
 निनानवे की दौड़ मा
 हम अफ्ही खबेस व्हे ग्याँ !
 sk:)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Garhwali Classes "गढ़वाली छुई" कविता शैलेन्द्र जोशी
 
 चला दी पेटा दी हिटा दी हे जी
 मेला लगियु चा जी सैणा श्रीनगर मा जी
 मिते चौपड़ वा गोला बाज़ार की घुमादी
 बतियों कु मेला चतुद्रशी वैकुंठ कु मेला जी
 भक्तो की भीर जी
 पुत्र आश मा औत सौजडियो कु खाडू दियू जी
 चला वी कमलेस्वर मा जी
 मिते फौंदी मुल्य्दी चूड़ी बिंदी लादी
 भली क्रींम पाउडर बुरुंसी लिपस्टिक मेला की समूण मा ल्या दी
 मिते जादू सर्कस बन बनी का खेल तमासा दिखा दी
 मिते चर्खी मा बैठे की घुमा दी
 मिते चौपड़ वा गोला बाज़ार की घुमा दी
 मिते सैणा श्रीनगर ले जा दी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 घुघूती बासुती घर में कन्टर मजी पिसियक फांक ना
 च्योल चेली हनी भल स्कुल ना
 फैमली छोडो असपताव मजी डाक्टर नहात
 कुनो अंग्रेज ले पिंछी कैल कदे शराब भली नहा
 अरे अंग्रेज पिछिया उनर जीवनस्तर देख छा
 बस यै हैगो मिहुनी हुनि पऊ न्हें ,भैंस हनी बऊ नहे
 कैल कदे शराब भली नहा ..तेरी तनखा शराब लैक नहा
 नानतिन भूख मरनी येक वील
 शराब तेरी लिजी भली नहा
 तेरी नेत भली नहात पिबेर टांकी जान्छे
 येक्वील यो चीज तेरी लिजी भली नहात

 

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